सच्चा ज्ञान : अष्टावक्र और राजा जनक संवाद

राजा जनक को ‘ज्ञान’ देकर अष्टावक्रजी चले गए और उस ज्ञान को धारण कर राजा जनक ‘देही’ से ‘विदेही’ बन गए । राजा जनक और ऋषि अष्टावक्र के बीच का संवाद ‘अष्टावक्र गीता’ के नाम से जाना जाता है ।

सूर्य चालीसा के चालीस दोहों में छिपा है सभी मुश्किलों का...

प्रतिदिन शुद्ध जल से स्नान करके भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्य के सामने खड़े होकर सूर्य चालीसा का पाठ करने से मनुष्य के सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं । उसे सुख-समृद्धि तो मिलती ही है, साथ ही उसे हर कार्य में सफलता भी प्राप्त होती है ।

दिव्य वृक्ष पीपल की पूजा क्यों और कैसे की जाती है...

भगवान श्रीकृष्ण का विभूतिस्वरूप होने के कारण पीपल दिव्य वृक्ष है और उन्हीं की तरह संसार को कर्मयोग की शिक्षा देता है । पीपल के पत्ते तब भी हिलते रहते हैं, जब अन्य पेड़ों के पत्ते नहीं हिलते हैं । इसी कारण पीपल को ‘चल-पत्र’ भी कहते हैं अर्थात् जिसके पत्ते लगातार वायु से तरंगित होते रहते हैं ।

हिन्दू धर्म में माथे पर तिलक क्यों लगाया जाता है ?

जब हमारे आराध्य, चाहें वह भगवान विष्णु हों या श्रीकृष्ण, श्रीराम हों या सदाशिव, सभी तिलकधारी हैं, तो आराधक कैसे बगैर तिलक के रह सकता है ? वैष्णव खड़े तिलक (उर्ध्वपुण्ड्र) की दो समानान्तर रेखाओं को श्रीमन्नारायण के दोनों चरणकमल मानते हैं । उनका विश्वास है कि मस्तक पर तिलक रूपी चरणकमल धारण करने से मृत्यु के बाद उन्हें उर्ध्वगति (विष्णुलोक) की प्राप्ति होगी ।

एकादशी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा : विधि

एकादशी तिथि को पूजन और व्रत करने वाले मनुष्य को काम, क्रोध, अहंकार, लोभ और चुगली जैसी बुराइयों का त्याग कर इन्द्रिय-संयम का पालन करना चाहिए; तभी उसका व्रत और पूजा पूर्ण होगी; अन्यथा वह निष्फल हो जाएगी । व्रत-पूजन पूरी श्रद्धा और भाव से करना चाहिए ।

हिन्दू धर्म में सिर पर शिखा या चोटी क्यों रखी जाती...

शिखा या चोटी रखना हिन्दुओं का केवल धर्म ही नहीं है, यह हमारे ऋषि-मुनियों की विलक्षण खोज का चमत्कार है । हिन्दू...

भगवान का आशीर्वाद है चरणामृत

शालग्राम शिला या भगवान की प्रतिमा के चरणों से स्पर्श किए व उनके स्नान के जल को ‘चरणामृत’ या ‘चरणोदक’ कहते हैं; इसलिए चरणामृत को भगवान का आशीर्वाद माना जाता है । हिन्दू धर्म में चरणामृत को अमृत के समान और अत्यंत पवित्र माना गया है ।

‘राम’ नाम लिखे तुलसीपत्र की महिमा

सबका पालनहार एक ‘राम’ ही है । संसारी प्राणी तो दान ही दे सकते हैं; परन्तु मनुष्य की जन्म-जन्म की भूख-प्यास नहीं मिटा सकते हैं । वह तो उस दाता के देने से ही मिटेगी । इसलिए मांगना है तो मनुष्य को भगवान से ही मांगना चाहिए, अन्य किसी से मांगने पर संसार के अभाव मिटने वाले नहीं हैं । लेकिन मनुष्य सोचता है कि मैं कमाता हूँ, मैं ही सारे परिवार का पेट भरता हूँ । यह सोचना गलत है । इसलिए देने वाले के नेत्र सदैव नीचे और लेने वाले के ऊपर होते हैं ।

पूजा में धूप-दीप प्रज्ज्वलित करने का क्या महत्व हैं ?

किसी भी देवता के पूजन में धूप-दीप प्रज्ज्वलित करने का बहुत महत्व है । पूजा के सरलतम रूप जिसे पंचोपचार पूजन कहते हैं; उसमें भगवान का पांच ही चीजों से पूजन करने का विधान है और ये पांच उपचार हैं—१. गंध, २. पुष्प, ३. नैवेद्य, ४. धूप और ५. दीप ।

सुख-समृद्धि देने वाले पांच देवता

यदि पंचायतन में देवों को अपने स्थान पर न रखकर दूसरी जगह स्थापित कर दिया जाता है तो वह साधक के दु:ख, शोक और भय का कारण बन जाता है ।