विभिन्न कार्यों को करते समय भगवान के विभिन्न नामों का स्मरण

विभिन्न रुचि, प्रकृति और संस्कारों के मनुष्यों के लिए भगवान ने स्वयं को अनेक नामों से व्यक्त किया है । प्रत्येक नाम का अर्थ वह परमात्मा ही है। भगवान विविध नामों में और विचित्र रूपों में अवतीर्ण होकर विचित्र भाव और रस के खेल खेलकर माया से मोहित सांसारिक जीवों को अपनी ओर आकर्षित करते है और उनको सब प्रकार के दुखों से मुक्त करके अपना परमानन्द देने का प्रयास करते हैं । इससे अधिक उनकी करुणा का परिचय क्या हो सकता है ?

नवग्रह : मन्त्र और व्रत-विधि

जन्मकुण्डली के प्रतिकूल ग्रहों को अनुकूल करना बहुत आवश्यक है । इसके लिए शास्त्रों में नवग्रह उपासना का विधान बताया है जिसमें रत्न और यंत्र धारण करना, व्रत और जप करना व विभिन्न औषधियों के स्नान आदि उपाय बताए गए हैं । नवग्रहों की पीड़ा निवारण में व्रत-नियम शीघ्र ही फल देने वाले हैं ।

सुख-दु:ख और भगवत्कृपा

दु:ख के समय का कोई साथी नहीं होता बल्कि लोग तरह-तरह की बातें बनाकर दु:ख को और बढ़ा देते हैं । ऐसी स्थिति में यह याद रखें कि निन्दा करने वाले तो बिना पैसे के धोबी हैं, हमारे अन्दर जरा भी मैल नहीं रहने देना चाहते । ढूंढ़कर हमारे जीवन के एक-एक दाग को साफ करना चाहते हैं । वे तो हमारे बड़े उपकारी हैं जो हमारे पाप का हिस्सा लेने को तैयार हैं ।

गायत्री मन्त्र के द्रष्टा महर्षि विश्वामित्र

महर्षि विश्वामित्र के समान पुरुषार्थी ऋषि शायद ही कोई और हो l वे अपनी सच्ची लगन, पुरुषार्थ और तपस्या के बल पर क्षत्रिय से ब्रह्मर्षि बने । ब्रह्माजी ने बड़े आदर से इन्हें ब्रह्मर्षि पद प्रदान किया । सप्तर्षियों में अग्रगण्य हुए और वेदमाता गायत्री के द्रष्टा ऋषि हुए ।

कार्तिकमास में दीपदान

महालक्ष्मी सहित भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए शरद पूर्णिमा से पूरे मास आकाशदीप प्रज्जवलित करना चाहिए इससे मनुष्य यम की यातना से मुक्त हो जाता है और अपने परिवार के साथ सभी प्रकार के भोगों को भोग करके अंत में विष्णुलोक को प्राप्त होता है ।

चातुर्मास्य में करें ये कार्य, पायें पुण्य अपार

चातुर्मास्य के चार महीने हल्का सात्विक भोजन करें, शरीर को साफ-सुथरा रखें, भगवान की भक्ति को अपनायें जो आन्तरिक शान्ति देती है, थोड़ा दान-पुण्य करें जिससे आत्मा को संतुष्टि मिलती है, थोड़ा स्वाध्याय (पुराणों का पढ़ना) करें जिससे मनुष्य चिन्तामुक्त हो जाता है ।

बच्चे का मुण्डन संस्कार क्यों कराया जाता है ?

यह समय बच्चे के दांत निकलने का होता है इसके कारण शरीर में कई तरह की परेशानियां होती हैं । बच्चे का शरीर निर्बल होकर उसके बाल झड़ने लगते हैं । ऐसे समय में बच्चे का मुण्डन कराना बहुत लाभकारी होता है ।

पूजा में धूप-दीप प्रज्ज्वलित करने का क्या महत्व हैं ?

किसी भी देवता के पूजन में धूप-दीप प्रज्ज्वलित करने का बहुत महत्व है । पूजा के सरलतम रूप जिसे पंचोपचार पूजन कहते हैं; उसमें भगवान का पांच ही चीजों से पूजन करने का विधान है और ये पांच उपचार हैं—१. गंध, २. पुष्प, ३. नैवेद्य, ४. धूप और ५. दीप ।

हिन्दू धर्म में सिर पर शिखा या चोटी क्यों रखी जाती...

शिखा या चोटी रखना हिन्दुओं का केवल धर्म ही नहीं है, यह हमारे ऋषि-मुनियों की विलक्षण खोज का चमत्कार है । हिन्दू...