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भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए कार्तिक मास में आकाशदीप का दान

कार्तिक मास में प्रतिदिन प्रात:काल स्नान करके कोमल तुलसीदलों से भगवान विष्णु या दामोदर कृष्ण की पूजा करके रात्रि में आकाशदीप देते (प्रज्ज्वलित करते) हैं । इसके लिए एक लम्बे बांस में लालटेन रखकर उसमें ‘आकाशदीप’ जलाते हैं, अथवा भगवान के मन्दिर के मुंडेर पर एक मास तक दीपदान किया जाता है । दीप प्रज्ज्वलित करते समय इस मन्त्र का उच्चारण किया जाता है—

दामोदराय विश्वाय विश्वरूपधराय च ।
नमस्कृत्वा प्रदास्यामि व्योमदीपं हरिप्रियम् ।।

अर्थात्—मैं सबमें स्थित और विश्वरूपधारी भगवान दामोदर को नमस्कार करके यह आकाशदीप देता हूँ, जो भगवान को अत्यन्त प्रिय है ।’

महालक्ष्मी सहित भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए शरद पूर्णिमा से पूरे मास आकाशदीप प्रज्जवलित करना चाहिए इससे मनुष्य यम की यातना से मुक्त हो जाता है और अपने परिवार के साथ सभी प्रकार के भोगों को भोग करके अंत में विष्णुलोक को प्राप्त होता है ।

भगवान दामोदर (विष्णु) की प्रसन्नता के लिए  रात्रि के समय मन्दिरों, गलियों, तुलसी के बिरवों, पीपल के पेड़ के नीचे, बिल्ववृक्ष के नीचे, नदियों के किनारे, सड़क पर और सोने के स्थान आदि पर दीपक जलाया जाता है इससे सब प्रकार का वैभव व लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । जो मनुष्य कीटों और कांटों से भरे ऊबड़खाबड़ रास्तों पर दीपदान करता है, वह नरक में नहीं पड़ता है ।

कार्तिक मास में पितरों के लिए दीपदान

नम: पितृभ्य: प्रेतेभ्यो नमो धर्माय विष्णवे ।
नमो यमाय रुद्राय कान्तारपतये नम: ।।

अर्थात्—पितरों को नमस्कार है, प्रेतों को नमस्कार है, धर्मस्वरूप विष्णु को नमस्कार है, यमराज को नमस्कार है तथा कठिन पथ में रक्षा करने वाले भगवान रुद्र को नमस्कार है ।’

इस मन्त्र से जो मनुष्य पितरों के लिए आकाश दीप दान करता है, उसके पितर उत्तम गति को प्राप्त होते हैं ।

कार्तिक मास में दीपदान की महिमा

—त्रेतायुग में हरिद्वार में देवशर्मा नामक एक विद्वान ब्राह्मण थे जो सूर्य की आराधना करके सूर्य के समान तेजस्वी हो गए । उनकी गुणवती नामक एक पुत्री थी । कार्तिक के महीने में वह प्रात:काल स्नान करती थी, दीपदान और तुलसी की सेवा तथा भगवान विष्णु के मन्दिर में झाड़ू दिया करती थी । प्रतिवर्ष कार्तिक-व्रत का पालन करने से मृत्यु के बाद वह वैकुण्ठ लोक गयी । गुणवती ने सभी कर्मों को परमपति भगवान विष्णु को समर्पित किया था, इसलिए अगले जन्म में वह सत्यभामा हुईं । उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को पति के रूप में प्राप्त किया, भगवान से उनका कभी वियोग नहीं हुआ और उनके घर में स्थिर लक्ष्मी का वास हुआ ।

—कार्तिक मास में दीपदान से जन्म-जन्मान्तर के पाप नष्ट हो जाते हैं ।

—जो मनुष्य कार्तिक मास में दीपदान करने में असमर्थ हों, वे दूसरों के बुझे हुए दीप जलाकर अथवा हवा आदि से दूसरों के द्वारा जलाए गए दीपों की रक्षा कर वही पुण्य प्राप्त कर सकते हैं ।

तीन दिवसीय दीपोत्सव मनाने का कारण

कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या—इन तीन दिनों तक दीपोत्सव मनाया जाता है ।

वामनावतार में भगवान विष्णु ने सारी पृथ्वी तीन पग में नाप ली । राजा बलि के दान से प्रसन्न होकर भगवान वामन ने बलि से वर मांगने को कहा । तब राजा बलि ने प्रार्थना की कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या—इन तीन दिनों तक प्रतिवर्ष पृथ्वी पर मेरा राज्य रहे । उस समय जो मनुष्य यमराज के लिए दीपदान करे तो उसे कभी यम की यातना न सहनी पड़े साथ ही इन तीन दिनों तक दीपावली मनाने वाले का घर लक्ष्मीजी कभी न छोड़ें । भगवान ने वर देते हुए कहा—‘जो मनुष्य इन तीन दिनों में दीपोत्सव करेगा, उसे छोड़कर मेरी प्रिया लक्ष्मी कहीं नहीं जाएंगी ।’

कार्तिक मास में तीन दिवसीय दीपोत्सव में दीपदान की विधि

कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी : धनतेरस

कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी धनतेरस को सायंकाल मिट्टी के दीपक में नई रूई की बत्ती बनाकर तिल से तेल से भर दें और खील से पूज कर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके अपने द्वार पर दीप और नैवेद्य दान करें, इससे यमराज प्रसन्न होते हैं और अकालमृत्यु और अपमृत्यु का नाश होता है । दीप दान का मन्त्र है—

मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह ।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यज: प्रीयतामिति ।।

अर्थात्—त्रयोदशी को दीपदान करने से मृत्यु, पाश, दण्ड, काल और लक्ष्मी के साथ यम प्रसन्न हों ।

नरक चतुर्दशी

इस दिन तेल में लक्ष्मी व जल में गंगा निवास करती हैं । अत: माना जाता है कि प्रात:काल स्नान करने से मनुष्य यमलोक का मुंह नहीं देखता । इस दिन प्रदोष के समय तिल के तेल से भरे हुए चौदह दीपकों की पूजा करके उन्हें जला लें और ‘यममार्गान्धकार निवारणार्थे चतुर्दश दीपानां दानं करिष्ये’ अर्थात् ‘यममार्ग के अंधकार को दूर करने के लिए मैं ये चौदह दीपक दान करता हूँ’—यह संकल्प करके ये दीपक ब्रह्मा, विष्णु, महेश के मन्दिर, बाग-बगीचों, तालाब के किनारे, गली, घुड़शाला और सूनी जगहों आदि पर रख दें । इस दीपदान से यमराज प्रसन्न होते हैं ।

इस दिन चार बत्तियों के दीपक को जलाकर पूर्व की ओर मुख करके दान करने से मनुष्य की सद्गति होती है, नरक नहीं मिलता है ।

कार्तिकी अमावस्या :  दीपावली

दीपकों की पंक्ति लगा देने को  ‘दीपावली’ और जगह-जगह दीपकों को गोलाकार आकृति में सजा देने को ‘दीपमालिका’ कहते हैं । दीपावली सजा कर इस तरह प्रार्थना करें—

‘दीपक की ज्योति में विराजमान महालक्ष्मी ! तुम ज्योतिर्मयी हो । सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि, सोना, और तारा आदि सभी ज्योतियों की ज्योति हो; तुम्हें नमस्कार है । आप मेरे लिए वरदायिनी हों ।’

कार्तिके मास्यमावास्या तस्यां दीपप्रदीपनम् ।
शालायां ब्राह्मण: कुर्यान् स गच्छेत् परमं पदम् ।।

अर्थात्—कार्तिक की अमावस्या को दीपावली और दीपमालिका सजाने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होकर उसके घर में स्थायी रूप से निवास करती हैं और वह मृत्युपर्यन्त परम पद प्राप्त करता है ।

इस दिन लक्ष्मी-पूजन करते समय एक थाली में तेरह या छब्बीस तेल के दीपकों के बीच में चौमुखा दीपक रखकर दीपमालिका का पूजन करें फिर उन्हें प्रज्ज्वलित करके घर में विभिन्न स्थानों पर रख दिया जाता है ।  चौमुखा दीपक रात भर जलाना चाहिए । इसके अतिरिक्त चौराहे पर, श्मशाम में, गोशाला में, नदी किनारे, वृक्षों की जड़ों में, चबूतरों पर और प्रत्येक घर में दीपक जलाकर रखना चाहिए ।

देवप्रबोधनी एकादशी

इस दिन भगवान विष्णु के आगे कपूर का दीपक जलाने से मनुष्य के कुल में जन्मे सभी व्यक्ति विष्णुभक्त होते हैं और मोक्ष प्राप्त करते हैं ।

कार्तिक पूर्णिमा

कार्तिक पूर्णिमा की संध्या को मत्स्यावतार हुआ था । इस दिन सायंकाल में यह मन्त्र बोलते हुए दीपदान करें—

‘कीटा: पतंगा मशकाश्च वृक्षे जले स्थले ये विचरन्ति जीवा: ।
दृष्ट्वा प्रदीपं न हि जन्मभागिनस्ते मुक्तरूपा हि भवन्ति तत्र ।।

यह कहकर दीपदान करने से मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता है।

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