diwali lakshmi ganesh goddess

कार्तिक कृष्ण अमावस्या—दीपावली के दिन शुभ मुहुर्त में देवी महालक्ष्मी के साथ गणेशजी और अन्य देवी-देवताओं जैसे—शंकरजी, हनुमानजी, दुर्गाजी, सरस्वतीजी आदि की मिट्टी की नयी प्रतिमाओं का विशेष पूजन किया जाता है ।

देवी महालक्ष्मी के साथ गणेशजी का पूजन क्यों ?

भगवान नारायण की पत्नी देवी महालक्ष्मी संसार की समस्त चल व अचल, दृश्य व अदृश्य—सभी प्रकार की सम्पत्तियों, सिद्धियों एवं निधियों की स्वामिनी हैं ।

श्रीगणेशजी सिद्धि और बुद्धि के पति हैं । जो उनकी उपासना करता है उन्हें वे अपने कार्य में सिद्धि (पूर्णता) प्रदान करते हैं साथ ही बुद्धि (ज्ञान शक्ति) देते हैं । श्रीगणेश के वाम भाग में सिद्धि और दक्षिण भाग में बुद्धि की संस्थिति बतायी गयी है । भगवान गणेश शुभ-लाभ के पिता हैं । साथ ही समस्त अंगलों के विनाशक और सद्बुद्धि के दाता हैं । पूजन की थाली में मंगलस्वरूप श्रीगणपति का स्वास्तिक-चिह्न बनाकर उसके अगल-बगल में दो-दो खड़ी रेखाएँ बना देते हैं । स्वास्तिक-चिह्न श्रीगणपति का स्वरूप है और दो-दो रेखाएँ उनकी पत्नी सिद्धि और बुद्धि एवं पुत्र लाभ और क्षेम (शुभ) हैं ।

श्रीगणेश असाधारण बुद्धि व विवेक से सम्पन्न होने के कारण अपने भक्तों को सद्बुद्धि व विवेक प्रदान करते हैं । इसीलिए हमारे ऋषियों ने मनुष्य के अज्ञान को दूर करने, बुद्धि शुद्ध रखने व काम में एकाग्रता प्राप्त करने के लिए बुद्धिदाता श्रीगणेश की सबसे पहले पूजा करने का विधान किया है ।

यदि लक्ष्मीजी का अकेले पूजन किया जाए तो उसमें बहुत से अनर्थ छिपे हो सकते हैं ।

लक्ष्मीजी का वाहन उल्लू है । धन-समृद्धि की कामना करने वाले लोग जब नारायण को भूलकर केवल लक्ष्मी की उपासना करते हैं तो लक्ष्मीजी उनके पास उल्लू पर सवार होकर आती हैं । पक्षियों में उल्लू को मनहूस और अमंगल की चेतावनी देने वाला माना जाता है । उल्लू पर सवार लक्ष्मी अपने साथ अनेक प्रकार की दुष्प्रवृत्तियां, बुरे व्यसन और बुरे विचार लाती हैं । प्राय: देखा जाता है कि जिन घरों में ज्यादा धन-सम्पत्ति होती है, वहां लोगों में आलसीपन, शराब, जुआ, सट्टा, चारित्रिक दुर्बलता, अहंकार, क्रोध और निर्दयता आदि बुराइयां होती है ।

लक्ष्मीजी के स्वरूप में उनका एक हाथ सदैव धन की वर्षा करता हुआ दिखाई देता है । इसका भाव है कि समृद्धि की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को सदैव सत्कार्यों और परोपकार के लिए मुक्त हस्त से दान देना चाहिए । दान से लक्ष्मीजी संतुष्ट और प्रसन्न होती हैं । 

मनुष्य के अंदर ऐसी विवेकपूर्ण बुद्धि भगवान गणेश से ही आती है । देवी लक्ष्मी व श्रीगणेश का साथ में पूजन करने से ही सभी प्रकार के मंगल, आनन्द व कल्याण की प्राप्ति होती है ।

दीपावली-पूजन में देवी लक्ष्मी के साथ अन्य देवी-देवताओं की पूजा क्यों?

इस सम्बन्ध में एक कथा है कि राजा बलि का प्रताप जब सारे संसार में फैल गया तो उसने सभी देवताओं को बन्दी बना लिया था । उसके कारागार में लक्ष्मी सहित सभी देवी-देवता बंद थे । कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या को वामन रूपधारी भगवान विष्णु ने जब बलि को बांध लिया तो सभी देवी-देवताओं ने उसके कारागार से मुक्त होकर क्षीरसागर में जाकर शयन किया । इसलिए दीपावली के दिन लक्ष्मी के साथ उन सभी देवताओं का पूजन कर उन सबका अपने घर में शयन का प्रबन्ध करना चाहिए जिससे वे लक्ष्मीजी के साथ वहीं निवास करें ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here