yashodha krishna deepak

शास्त्रों में दिन के अवसान (अन्त) और रात के आगमन अर्थात् दिन और रात के संधि काल को, जब आकाश में न सूर्य हो और न तारे, संध्या काल या सायं काल माना गया है । साधारण भाषा में सूर्यास्त के समय को संध्या काल कहते हैं । हिन्दू धर्म में संध्या काल में भगवान के सामने व तुलसी चौबारे में दीपक जलाने का विधान है, इसी को ‘सांध्य दीप’ कहते हैं ।

संध्या काल में दीप जलाने का महत्व

शास्त्रों में लक्ष्मी प्राप्ति, पापों के नाश, आरोग्य की प्राप्ति व अविद्या रूपी अंधकार (शत्रुओं) के नाश के लिए सांध्य दीप जलाने का बहुत महत्व बताया गया है ।

दीपक जलाते समय रखें इस बात का ध्यान

  • दीपक को दीवट या थोड़े से चावलों पर ही रखकर जलाना चाहिए । सीधे जमीन पर दीपक जलाकर नहीं रखना चाहिए । इसका कारण यह बताया गया है कि यदि कभी भूल वश दीपक बढ़ (बुझ) जाए तो चावलों या दीवट में रखे होने पर उसका दोष नहीं माना जाता है ।
  • दीपक जलाने के बाद उसे प्रकाश रूप परमात्मा मान कर इस मन्त्र से नमस्कार करना चाहिए—

नमस्कार का मन्त्र

दीपो ज्योति: परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दन: ।
दीपो हरतु मे पापं सांध्यदीप ! नमोस्तु ते ।।
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुख सम्पदम् ।
शत्रुबुद्धि विनाशं च दीपज्योति नमोऽस्तु ते ।।

अर्थात्—हे सांध्य दीप ! आपकी ज्योति (प्रकाश) परब्रह्म परमात्मा है, आपका प्रकाश भगवान जनार्दन का रूप है । यह प्रकाश मेरे पापों का नाश कर दे, मैं आपको नमस्कार करता हूँ । हे सांध्य दीप ! आपका प्रकाश मंगलकारी, कल्याण करने वाला, आरोग्य व सुख-सम्पत्ति देने वाला और शत्रु की बुद्धि भ्रष्ट करने वाला है, मैं आपको नमस्कार करता हूँ ।

पूज्य संत श्रीरामचन्द्र डोंगरेजी महाराज द्वारा सांध्य दीप जलाने की सुन्दर व्याख्या

पूज्य सन्त श्रीरामचन्द्र डोंगरेजी महाराज ने संध्या समय दीपक जलाने की बहुत सुन्दर व्याख्या की है । भगवान सूर्य बुद्धि के देवता हैं । सूर्य अस्त होने पर मनुष्य की बुद्धि-विवेक कमजोर हो जाते हैं और वासनाएं प्रबल हो जाती हैं । संध्या काल प्रदोष काल है । इस समय शंकरजी की पूजा होती है । इसीलिए संध्या काल में भक्ति करने (जप, कीर्तन, भजन, आरती) का बहुत महत्व है ।

संध्या समय भगवान के नाम का दीपक जलाना चाहिए । भगवान को दीपक की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि परमात्मा स्वयं प्रकाशमय है ।  भगवान का श्रीअंग करोड़ों सूर्यों के प्रकाश के समान है—‘कोटिसूर्य समप्रभ’ । इसलिए भगवान जहां विराजते हैं वहां अंधेरा आता ही नहीं है । दीपक के प्रकाश की आवश्यकता मानव को है । मानव के मन में अज्ञान का, वासना का अंधकार रहता है । इसलिए भगवान के समक्ष दीपक जलाकर प्रार्थना करनी चाहिए मेरे अंदर आपका प्रकाश (सद्बुद्धि) सदैव बनी रहे ।

प्राय: हम कहते हैं दीपक जोड़ दो अर्थात् जला दो । इसका सीधा अर्थ है कि अपने मन-बुद्धि को प्रकाश रूपी परमात्मा से जोड़ देना । जब बुद्धि परमात्मा से जुड़ जाती है, तब वह सद्बुद्धि हो जाती है । जहां सद्बुद्धि है वहां धर्म है, जहां धर्म है वहीं लक्ष्मी निवास करती है ।

विशेष बात : संध्या काल में क्या न करें ?

संध्या काल प्रकाश रूप परमात्मा से जुड़ने का समय है इसलिए इस समय न तो खाना खाना चाहिए क्योंकि इससे अस्वस्थता आती है, न पढ़ना चाहिए क्योंकि पढ़ा हुआ याद नहीं रहता और न ही काम भावना रखनी चाहिए क्योंकि ऐसे समय के बच्चे आसुरी गुणों के होते हैं । यह समय केवल भगवान से जुड़ने और उनको स्मरण करने का है ।

संध्या आरती

संतों ने भगवान की आरती की तरह संध्या काल की आरती का भी बहुत महत्व बताया है, इसे ‘संध्या आरती’ कहते हैं । एक बहुत ही सुन्दर व भावपूर्ण संध्या आरती पाठकों की सुविधा के लिए दी गयी है । इसको यदि कंठस्थ करके सांध्य दीप जलाते समय गा लिया जाए तो मन में बहुत शान्ति मिलती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है

व्रज में संध्या काल को संजा कहते हैं, चूंकि यह व्रज में गाया जाने वाला भजन है इसलिए इसमें संध्या के लिए ‘संजा’ शब्द का प्रयोग हुआ है । इस संध्या आरती में साधक अपने मन को सांध्य दीप जलाकर ईश्वर को स्मरण करने के लिए कह रहा है ।

संध्या आरती (भजन)

मन रे तू संजा सुमिरन कर ले,
अरे मन संजा सुमिरन कर ले ।
भोले मन संजा सुमिरन कर ले ।।
काहे को दिवला काहे की बाती,
काहे को घृत जले दिन-राती ।
अरे मन संजा तू …….।।
सोने का दिवला कपूर की बाती,
सुरही (गाय) का घृत जले दिन-राती ।
दीपक जोड़ धरौ मन्दिर में, जगमग होय उजालो,
अरे मन संजा तू …….।।
मेरे ही अंगना तुलसी को बिरवा, जाय ही सींचों करो रे,
संजा, सवेरे और दुपहरी तीनों वक्त हरि कू भजो रे ।
चोरी, बुराई पर-घर निंदा इन तीनन से बचो रे ।।
अरे मन संजा तू …….।।
जा काहू को लेनो और देनो, याही जनम चुकता कर ले,
पाप-पुण्य की बांधि गठरिया, अपने ही सिर पर रखो रे ।
मात-पिता और गुरु अपने की, इनकी सेवा कर ले ।।
अरे मन संजा तू …….।।
काहे की नाव, काहे को खेवा, कौन लगावै बेड़ा पार रे,
सत्य की नाव, धर्म को खेवा, कृष्ण लगावें बेड़ा पार रे ।।
अरे मन संजा तू …….।।
काहे के चंदा, काहे के सूरज, कौन बसै संसार रे ।
सत्य के चंदा, धर्म के सूरज, पाप बसै संसार रे ।।
अरे मन संजा तू …….।।

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