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‘लक्षवर्ति’ शब्द दो अक्षरों से मिल कर बना है—‘लक्ष’ अर्थात् लाख और ‘वर्ति’ का अर्थ है दीपक की बाती; इसलिए ‘लक्षवर्ति’ दान-व्रत में भगवान की प्रसन्नता के लिए एक लाख घी या तेल में भीगी बत्तियां प्रज्ज्वलित की जाती हैं । 

शास्त्रों में लक्ष्मी प्राप्ति, पापों के नाश, आरोग्य की प्राप्ति, लोक-परलोक के सुधार व अविद्या रूपी अंधकार (शत्रुओं) के नाश के लिए दीपक जलाने का बहुत महत्व बताया गया है और यदि एक लाख बाती से दीपक प्रज्जवलित किए जाएं तो उससे प्राप्त होने वाले पुण्य की महिमा तो कही ही नहीं जा सकती है ।

लक्षवर्ति दान-व्रत विधि

▪️ यह लक्षवर्ति दान-व्रत किसी भी पुण्य महीने में—जैसे पुरुषोत्तम मास, कार्तिक, माघ, वैशाख या श्रावण मास में किया जा सकता है । 

▪️ यदि पूरे महीने में इस दान-व्रत को पूर्ण करना है तो इसके लिए ३,३०० बत्तियां प्रतिदिन घी या तेल में भिगोकर दीपक में प्रज्जवलित कर सकते हैं । तीसवें दिन ४,४०० बत्तियां प्रज्ज्वलित करें ।

▪️ या दस-दस हजार की दस आवृत्तियां करके दस दिन में भी इस दान-व्रत को पूरा किया जा सकता है ।

▪️ इसके लिए रुई की लम्बी बाती ली जाती है, जो बाजार में सहजता से उपलब्ध है । 

▪️ तीन सौ बाती को मिलाकर एक मोटी बाती बना लें l

▪️ इस तरह ११ दीपकों में प्रत्येक में ३,३०० बाती सजा कर अपनी सामर्थ्यानुसार घी या तेल से भर दें । 

▪️ दीपकों को एक पंक्ति में सजा कर संध्या समय अपने इष्ट मन्दिर में या घर पर प्रज्ज्वलित करें । 

▪️ लक्षवर्ति दीपदान पूरा होने पर उद्यापन व ब्राह्मण भोजन अवश्य करें । 

उद्यापन के लिए १ दीपक (चांदी या पीतल का अपनी श्रद्धानुसार) और घी या तेल ब्राह्मण को दान करें और ब्राह्मण को भोजन कराएं । 

विशेष

अधिक मास में इस व्रत का बहुत फल है क्योंकि पुरुषोत्तम मास के सम्बन्ध में भगवान श्रीकृष्ण का कथन है—

‘इसका फलदाता, भोक्ता और अधिष्ठाता—सब कुछ मैं हूँ; इसीलिए इस मास का नाम पुरुषोत्तम है ।’ 

इस महीने में केवल ईश्वर के उद्देश्य से जो कुछ भी स्नान, पूजन, दान-पुण्य या शरीर को तपा कर पुण्य-कर्म किए जाते हैं, उनका अक्षय फल होता है और मनुष्य के सभी अनिष्ट दूर हो जाते हैं ।

▪️ कार्तिक मास में श्रीराधा दामोदर की प्रसन्नता के लिए यह दान-व्रत किया जा सकता है । या तुलसीजी के आगे भी दीप प्रज्ज्वलित किये जा सकते हैं ।

▪️ देवी मां के लिए यदि लक्षवर्ति दान-व्रत करना चाहते हैं, तो नवरात्रि में इस पुण्यकर्म को कर सकते हैं ।

▪️ यदि भगवान शिव इष्ट हैं और उनकी प्रसन्नता के लिए लक्षवर्ति दान-व्रत करना चाहते हैं, तो श्रावण मास में करें । दीप प्रज्ज्वलित करते समय इस प्रकार प्रार्थना करें—

विरुपाक्ष महेशान विश्वरूप महेश्वर ।
मया कृतां लक्षपूजां गृहीत्वा वरदो भव ।।

अर्थात्—हे विरुपाक्ष ! महेश !  विश्वरूप !  महेश्वर !  मेरी लक्षपूजा स्वीकार कर मुझे वर दो ।

लक्षवर्ति दान-व्रत से मिलने वाले विशेष फल

▪️ इस लक्षवर्ति दान-व्रत के अनुष्ठान से देवलोक की प्राप्ति होती है ।

▪️ विधिपूर्वक इस दान-व्रत को करने से मनुष्य के तीनों जन्मों—पूर्व जन्म, वर्तमान जन्म और पुनर्जन्म—के पाप दूर हो जाते हैं ।

▪️ मानव जीवन के समस्त उपद्रव—निर्धनता, कलह, शत्रुभय आदि शांत हो जाते हैं ।

▪️ मनुष्य जीवनपर्यन्त सब प्रकार से सुखी होता है ।

▪️ इसको करने से गोहत्या, ब्रह्महत्या, मद्यपान, और पराये धन के अपहरण के पापों का नाश होता है ।

पुण्य के काम में धन व्यय करने से वह घटता नहीं बल्कि बढ़ता है । जैसे छोटे से बीज में महान वट वृक्ष छिपा रहता है, उसी प्रकार शुभ समय में किया गया छोटा-सा भी पुण्य महान फल देता है ।

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