श्रीराधा ने अपने प्रिय भक्त के लिए जब खीर बनाई

जब भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम की लालसा सभी भोगों और वासनाओं को समाप्त कर प्रबल हो जाती है, तभी साधक का व्रज में प्रवेश होता है । यह व्रज भौतिक व्रज नहीं वरन् इसका निर्माण भगवान के दिव्य प्रेम से होता है ।

अभयदाता श्रीराम

विधि—किसी भी प्रकार का भय उत्पन्न होने पर इन चौपाइयों में से किसी एक या अधिक का जप करने से मनुष्य का भय समाप्त हो जाता है । प्रात:काल स्नान आदि करके एक चौकी पर श्रीरामजी की मूर्ति या चित्रपट रखकर उसका पंचोपचार—गंध, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप, नैवेद्य आदि से पूजन करें । फिर किसी भी चौपाई का १०८ बार (एक माला) जप करें । यह जप लगातार ३१ दिनों तक करें ।

श्रीराम के लिए हनुमानजी ने धारण किए विविध रूप

वानर होने पर भी दास्य-भक्ति के प्रताप से हनुमानजी देवता बन गए।

वास्तु देवता कौन हैं ?

वास्तुदेवता की पूजा के लिए वास्तु की प्रतिमा तथा वास्तुचक्र बनाया जाता है । वास्तुचक्र अनेक प्रकार के होते हैं । अलग-अलग अवसरों पर भिन्न-भिन्न पद के वास्तुचक्र बनाने का विधान है । वास्तु कलश में वास्तुदेवता (वास्तोष्पति) की पूजा कर उनसे सब प्रकार की शान्ति व कल्याण की प्रार्थना की जाती है ।

भाव, भक्ति एवं भजनपूरित एक वर्ष

जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है, उसी का सब है जल्वा, जो जहाँ में आशकारा है। गुनह बख्शो, रसाई दो, बसा लो अपने कदमों...

तुलसीदास चंदन घिसें, तिलक देत रघुबीर

तुलसीदासजी को जब होश आया तो बिन-पानी की मछली की तरह भगवान की विरह-वेदना में तड़फड़ाने लगे । सारा दिन बीत गया, पर उन्हें पता ही नहीं चला । रात्रि में आकर हनुमानजी ने उन्हें दर्शन दिए और उनकी दशा सुधारी ।

देने से चलती है दुनिया

कलियुग का कल्पवृक्ष है दान । जिस प्रकार कल्पवृक्ष के नीचे जो भी वस्तु की याचना की जाती है, वह पूरी होती है, उसी तरह विभिन्न वस्तुओं के दान से मनुष्य की कौन-सी इच्छा पूरी होती है, पढ़ें एक ज्ञानवर्धक लेख ।

श्री रामचरितमानस के सात काण्ड और उनकी शिक्षा

श्री रामचरितमानस मनुष्य की सबसे बड़ी मार्गदर्शक है । इसके सात काण्ड मनुष्य को अनमोल शिक्षा देकर उसकी सभी प्रकार की उन्नति कराने वाले सोपान हैं । गोस्वामी तुलसीदास जी ने इन्हें सोपान इसलिए कहा है क्योंकि ये राम जी के चरणों तक पहुंचने की सीढ़ियां हैं ।

आह्लादिनी शक्ति श्रीराधा की अलौकिक लीला

भगवान श्रीकृष्ण की बाललीलाएं तो हमें चमत्कृत करती ही हैं; पुराणों में श्रीराधा की भी ऐसी अलौकिक लीलाएं पढ़ने को मिलती हैं, जिनसे यह सिद्ध होता है कि श्रीराधा वास्तव में कोई साधारण गोपी नहीं; बल्कि श्रीकृष्ण की तरह ही ‘परा देवता’ हैं । जानें, श्रीराधा का एक ऐसा ही अलौकिक लीला प्रसंग—‘श्रीराधा का अलौकिक भोजन और दुर्वासा ऋषि ।‘

कलियुग का खेल

जैसे द्वार की देहरी पर रखा दीपक कमरे में और कमरे के बाहर भी प्रकाश फैला देता है, वैसे ही यदि तुम अपने बाहर और भीतर प्रकाश चाहते हो तो जीभ की देहरी पर राम-नाम का मणिद्वीप रख दो ।