गुरु कृपा रूपी रक्षा कवच

एक दिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम सरयू नदी में स्नान कर जब बाहर निकले तो हनुमान जी ने देखा कि प्रभु की कमर पर पांच अंगुलियों का एक नीला निशान स्पष्ट दिखाई दे रहा है । आश्चर्यचकित होकर हनुमान जी सोचने लगे कि मेरे प्रभु की कमर पर इतनी गहरी चोट का निशान कहां से आया ? मेरे रहते हुए किसने प्रभु को चोट पहुंचाई है ।

जैसी वीर माता अजंना वैसे महावीर पुत्र हनुमान

माता अंजना लक्ष्मणजी के मन के भाव ताड़ गईं और बोली—‘ऐसा लगता है कि छोटे राजकुमार को मेरे दूध पर संदेह हो रहा है । मैं इन्हें अभी अपने दूध का प्रभाव दिखाती हूँ ।’ यह कह कर माता ने अपने स्तन से दूध की एक धार सामने के पर्वत पर छोड़ी । दूध की धार से वह समूचा पर्वत फट गया । यह देख कर सभी आश्चर्यचकित रह गए ।

गायत्री मन्त्र के चमत्कारी चौबीस अक्षर

गायत्री वेदजननी गायत्री पापनाशिनी। गायत्र्या: परमं नास्ति दिवि चेह च पावनम्।। (शंखस्मृति) अर्थात्--‘गायत्री वेदों की जननी है। गायत्री पापों का नाश करने वाली है। गायत्री से...

श्रीराम के लिए हनुमानजी ने धारण किए विविध रूप

वानर होने पर भी दास्य-भक्ति के प्रताप से हनुमानजी देवता बन गए।

सबसे बड़ा मूर्ख कौन ?

अंतकाल में जब बोलने की भी शक्ति नहीं होगी, प्राण-पखेरु इस देह रूपी पिंजरे को छोड़ कर उड़ गया होगा, तब सभी लोग कहेंगे—‘राम नाम सत्य है’; परंतु जब तक शरीर में शक्ति है, देह में आत्मा है, तब तक ‘रामनाम’ लेने की सीख कोई नहीं देता । यही इस संसार की सबसे बड़ी मूर्खता है ।

प्रभु श्रीराम का राजा दशरथ को ज्ञानोपदेश

प्रभु श्रीराम के ज्ञानपूर्ण वचन सुन कर वहां बैठे वसिष्ठ जी, विश्वामित्र जी और सभी ब्रह्मज्ञानियों को अत्यंत आश्चर्य हुआ कि ऐसा बृहस्पति जी भी नहीं बोल सकते, ऐसे अपूर्व वचन ये कुमार बोल रहा है । कितना ज्ञान है इस किशोर में ? विश्वामित्र जी ने राम जी से कहा—‘राम ! जो जानने योग्य है, वह सब कुछ तुम जान ही चुके हो । अब कुछ विशेष जानना बाकी नहीं है ।’

श्रीहनुमंतलला का अलौकिक बालचरित्र

हनुमंतलला का बालपन भी कितना दिव्य था । सदाचारिणी, परम तपस्विनी, सद्गुणी माता अंजना अपने दूध के साथ श्रीरामकथा रूपी अमृत उन्हें पिलाती थीं । हनुमंतलला उस कथा को सुनकर भाव-विभोर हो जाते । कथा कहते हुए यदि माता सो जाती को हनुमंतलला उन्हें हाथों से झकझोर कर और रामकथा सुनाने के लिए हठ करते थे |

श्रीरामनवमी व्रत व पूजन विधि

श्रीराम सर्वात्मा व विश्वमूर्ति हैं । उनका जीवन-मंत्र था—‘बहुतों के साथ चलने में ही सच्चा सुख है, अल्प में नहीं । अपने को शुद्ध करो, ज्ञान का विस्तार करो, सद्भाव व समभाव से जीवन को राममय बनाओ, स्वयं आनन्दित रहो और दूसरों को भी आनन्दित करते रहो—यही सच्चा रामत्व है ।’

गीता-जयन्ती पर अपने कल्याण के लिए क्या करें ?

श्रीमद्भगवद्गीता में कुल अठारह (18) अध्याय हैं जो महाभारत के भीष्मपर्व में निहित हैं । इनमें जीवन का इतना सत्य, इतना ज्ञान और इतने ऊंचे सात्विक उपदेश भरे हैं, जिनका यदि मनुष्य पालन करे तो वह उसे निकृष्टतम स्थान से उठाकर देवताओं के स्थान पर बैठा देने की शक्ति रखते हैं । गीता का अभ्यास करने वाला तो स्वयं तरन-तारन बन जाता है ।

कैवल्य मुक्ति किसे कहते हैं ?

एक चीनी की गुड़िया थी । एक बार उसके मन में समुद्र को नापने की इच्छा हुई; इसलिए उसने अपने भाई-बहिनों को इकट्ठा किया और कहा कि मैं समुद्र की गहराई नापने जा रही हूँ । जब मैं नाप लेकर बाहर आऊंगी तब आप लोगों को समझाऊंगी कि समुद्र कितना गहरा है ? ऐसा कह कर वह समुद्र में कूद गई । लेकिन इसके बाद वह कभी बाहर न आ सकी और समुद्र में ही मिल गई । इसी तरह प्राणी बिन्दु है और परमात्मा सिंधु है । जब बिंदु सिंधु में समा जाए तो वह परमात्मा से एकरूप हो जाता है, उसी को कैवल्य मुक्ति कहते है ।