देने से चलती है दुनिया

कलियुग का कल्पवृक्ष है दान । जिस प्रकार कल्पवृक्ष के नीचे जो भी वस्तु की याचना की जाती है, वह पूरी होती है, उसी तरह विभिन्न वस्तुओं के दान से मनुष्य की कौन-सी इच्छा पूरी होती है, पढ़ें एक ज्ञानवर्धक लेख ।

श्रीहनुमंतलला का अलौकिक बालचरित्र

हनुमंतलला का बालपन भी कितना दिव्य था । सदाचारिणी, परम तपस्विनी, सद्गुणी माता अंजना अपने दूध के साथ श्रीरामकथा रूपी अमृत उन्हें पिलाती थीं । हनुमंतलला उस कथा को सुनकर भाव-विभोर हो जाते । कथा कहते हुए यदि माता सो जाती को हनुमंतलला उन्हें हाथों से झकझोर कर और रामकथा सुनाने के लिए हठ करते थे |

राम हैं वैद्य और राम-नाम है रामबाण औषधि

त्रेता में केवल एक रावण था, लेकिन कलियुग में अनगिनत बीमारियां रूपी रावण हैं । उन रावणों पर विजय पाने के लिए राम की शक्ति की आवश्यकता है और वह शक्ति ‘रामनाम’ में निहित है क्योंकि त्रेता में स्वधामगमन से पहले श्रीराम ने अपनी सारी शक्तियां अपने नाम में संन्निहित कर दी थीं ।

भगवान श्रीकृष्ण की विभिन्न बाँसुरियां

‘श्रीकृष्ण’ शब्द का अर्थ है ‘सबको अपनी ओर आकर्षित करने वाला।’ श्रीकृष्ण बाँसुरी की दिव्य मधुर ध्वनि से समस्त जीवों को अपनी ओर आकर्षित...

क्या आपको स्वप्न में साँप दिखायी देते हैं?

युधिष्ठिर को राजसूय यज्ञ का वह पुण्य क्यों नहीं मिला जो एक ब्राह्मण परिवार ने भूखे अतिथि को केवल सत्तू के दान से प्राप्त किया ।

चौबीस देवताओं के चौबीस गायत्री मन्त्र

देवताओं की गायत्रियां वेदमाता गायत्री की छोटी-छोटी शाखाएं है, जो तभी तक हरी-भरी रहती हैं, जब तक वे मूलवृक्ष के साथ जुड़ी हुई हैं। वृक्ष से अलग कट जाने पर शाखा निष्प्राण हो जाती है, उसी प्रकार अकेले देव गायत्री भी निष्प्राण होती है, उसका जप महागायत्री (गायत्री मन्त्र) के साथ ही करना चाहिए।

वाल्मीकीय रामायण की ‘राम गीता’

जो रात बीत जाती है, वह लौट कर फिर नहीं आती, जैसे यमुना जल से भरे हुए समुद्र की ओर जाती ही है, उधर से लौटती नहीं । दिन-रात लगातार बीत रहे हैं और इस संसार में सभी प्राणियों की आयु का तीव्र गति से नाश कर रहे हैं; ठीक वैसे ही, जैसे सूर्य की किरणें ग्रीष्म ऋतु में जल को तेजी से सोखती रहती हैं । तुम अपने ही लिए चिन्ता करो, दूसरों के लिए क्यों बार-बार शोक करते हो ?

विश्व-विजेयता रावण बाली से क्यों हार गया ?

अभिमान, घमण्ड, दर्प, दम्भ और अहंकार ही सभी दु:खों व बुराइयों के कारण हैं । जैसे ही मनुष्य के हृदय में जरा-सा भी अभिमान आता है, उसके अन्दर दुर्गुण आ जाते हैं और वह उद्दण्ड व अत्याचारी बन जाता है । लंकापति रावण चारों वेदों का ज्ञाता, अत्यन्त पराक्रमी और भगवान शिव का अनन्य भक्त होते हुए भी अभिमानी होने के कारण किष्किन्धा नरेश बाली से अपमानजनक पराजय को प्राप्त हुआ ।

श्रीराम : ‘अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ’

भगवान श्रीराम के जन्मस्थान का दर्शन करने से प्रतिदिन सहस्त्रों कपिला गायों के दान का फल मिलता है । माता-पिता और गुरु-भक्ति का जो फल है, वह जन्मस्थान के दर्शन करने मात्र से मिल जाता है ।

सहस्त्रनाम-तुल्य ‘श्रीराम’-नाम और भगवान श्रीराम के १०८ नाम

भगवान के सहस्त्रनामों के समान फलदायी ‘श्रीराम’ के १०८ नाम