रावण के मानस रोगों की हनुमान जी द्वारा चिकित्सा

अनेक बार बाहर से सुखी और समृद्ध लगने वाले लोग अंदर से अशान्ति की आग में जल रहे होते हैं । रावण के पास अकूत धन-वैभव और अपरिमित शक्ति थी; किंतु उसमें तमोगुण की अधिकता के कारण काम, क्रोध और अहंकार कूट-कूट कर भरा था। इस कारण उसके जीवन में सच्चे सुख का अभाव था ।

दीवाली पूजन में कुबेर पूजा क्यों?

नवनिधियों के स्वामी कुबेर राजाधिराज कुबेर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की धन-सम्पदा के स्वामी होने के साथ देवताओं के भी धनाध्यक्ष (treasurer) हैं। संसार के गुप्त या...

श्रीरामनवमी व्रत व पूजन विधि

श्रीराम सर्वात्मा व विश्वमूर्ति हैं । उनका जीवन-मंत्र था—‘बहुतों के साथ चलने में ही सच्चा सुख है, अल्प में नहीं । अपने को शुद्ध करो, ज्ञान का विस्तार करो, सद्भाव व समभाव से जीवन को राममय बनाओ, स्वयं आनन्दित रहो और दूसरों को भी आनन्दित करते रहो—यही सच्चा रामत्व है ।’

रावण ने श्रीराम से ही नहीं कौसल्या से भी निभाया वैर

संसार में सभी भयों में मृत्य का भय सबसे बड़ा माना गया है । सांसारिक विषयी पुरुष के लिए शरीर ही सब कुछ होता है; इसीलिए मृत्यु निकट जान कर मनुष्य अपना विवेक और धैर्य खो देता है । न तो उसे अच्छे-बुरे का ज्ञान रहता है, न ही उसे भूख-प्यास लगती है; साथ ही रात-दिन का चैन भी समाप्त हो जाता है ।

गीता-जयन्ती पर अपने कल्याण के लिए क्या करें ?

श्रीमद्भगवद्गीता में कुल अठारह (18) अध्याय हैं जो महाभारत के भीष्मपर्व में निहित हैं । इनमें जीवन का इतना सत्य, इतना ज्ञान और इतने ऊंचे सात्विक उपदेश भरे हैं, जिनका यदि मनुष्य पालन करे तो वह उसे निकृष्टतम स्थान से उठाकर देवताओं के स्थान पर बैठा देने की शक्ति रखते हैं । गीता का अभ्यास करने वाला तो स्वयं तरन-तारन बन जाता है ।

जानकी जी की रुदन लीला

भगवान शंकर और श्रीरामजी में अनन्य प्रेम है । जब-जब भगवान पृथ्वी पर अवतरित होते हैं, तब-तब भोले-भण्डारी भी अपने आराध्य की मनमोहिनी लीला के दर्शन के लिए पृथ्वी पर उपस्थित हो जाते हैं । भगवान शंकर एक अंश से अपने आराध्य की लीला में सहयोग करते हैं और दूसरे रूप में उनकी लीलाओं को देखकर मन-ही-मन प्रसन्न होते हैं ।

निर्जला एकादशी : विशेष पूजा विधि एवं कथा

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी ‘निर्जला एकादशी’ के नाम से जानी जाती है । अन्य महीनों की एकादशी को फलाहार किया जाता है; परंतु जैसा कि इस एकादशी के नाम से स्पष्ट है, इसमें फल तो क्या जल भी ग्रहण नहीं किया जाता है । इसलिए गर्मी के मौसम में यह एकादशी बड़े तप व कष्ट से की जाती है । यही कारण है कि इसका सभी एकादशियों से अधिक महत्व है ।