hanuman anjani mata

भारत में महान पुत्रों को जन्म देने वाली वीर माताएं ही थीं; इसलिए उन्हें महाशक्ति और वीरसपूती कहा जाता है । बालक पर सर्वाधिक प्रभाव माता के जीवन और उसकी शिक्षा का पड़ता है । महावीर हनुमान को जन्म देने वाली माता अंजना कोई साधारण स्त्री नहीं हो सकती हैं । वे परम तपस्विनी और वीर थीं ।

वीर माता अंजना ही हनुमान जैसे महावीर को जन्म दे सकती है

यह सिंहनी हैं सिंह-सा ही जनती हैं,
सदा संतति सपूत पै सदा से बलिहारी हैं ।
सबल महा हैं इन्हें अबल गिनो न कभी,
वीर बहिनें हैं वीर माताएं हमारी हैं ।। (श्री ‘कृपाण’ जी)

अपने पूर्वजन्म में माता अंजना देवराज इन्द्र की सभा में पुंजिकस्थली नामक अप्सरा थीं । एक बार महर्षि दुर्वासा इन्द्र की सभा में पधारे । दुर्वासा अपने क्रोध के लिए प्रसिद्ध थे; इसलिए सभा में उपस्थित सभी लोग शान्त खड़े थे । पुंजिकस्थली किसी कार्यवश एक-दो बार सभा-भवन से बाहर गईं और आईं । इससे क्रोधित होकर महर्षि दुर्वासा ने उन्हें शाप देते हुए कहा—‘तू बंदरिया के समान चंचल है, अत: वानरी हो जा ।’

पुंजिकस्थली द्वारा बहुत अनुनय-विनय करने पर महर्षि दुर्वासा ने शाप का परिहार करते हुए कहा—‘तू स्वेच्छा से स्वरूप धारण कर सकेगी और तीनों लोकों में तेरी गति होगी अर्थात् कहीं भी आ-जा सकेगी ।’

पुंजिकस्थली ने वानरों में श्रेष्ठ विरज के यहां जन्म लिया और वानरराज केसरी से उनका विवाह हुआ । केसरी को भी वरदान मिला था कि उन्हें—‘इच्छानुसार रूप धारण करने वाला, पवन के समान पराक्रमी तथा रुद्र के समान शत्रुओं के लिए असह्य पुत्र प्राप्त होगा ।’

इस वरदान के कारण वानरराज केसरी और माता अंजना के यहां स्वयं भगवान रुद्र ने अंशावतार धारण किया और महावीर हनुमान प्रकट हुए ।

वीर माता अंजना ने दिखाई अपने दूध की ताकत : कथा

लंका विजय के बाद भगवान श्रीराम अपने भाई भरत से मिलने के लिए अधीर हो रहे थे; इसलिए विभीषण ने उन्हें मन की इच्छानुसार चलने वाला पुष्पक विमान दिया । उसे लेकर भगवान श्रीराम माता सीता, लक्ष्मणजी, सुग्रीव व अंगद आदि मुख्य-मुख्य वानरों को साथ लेकर अवधपुरी की ओर चल दिए । रास्ते में कुछ देर के लिए पुष्पक विमान किष्किन्धा पर उतरा । तब हनुमानजी ने श्रीराम से प्रार्थना की—‘प्रभो ! यहां समीप में ही कांचनगिरि पर मेरी माता अंजना रहती हैं, आज्ञा हो तो मैं उनके दर्शन कर आऊँ ।’

श्रीराम ने कहा—‘आंजनेय ! हमने ऐसा कौन-सा अपराध किया है जो तुम हमें अपनी माता के दर्शन नहीं करा रहे हो । अंजना केवल तुम्हारी ही मां नहीं है, वे हमारी मां भी हैं; वे तो जगन्माता हैं । हमें भी कृपा करके उनके पास ले चलो; क्योंकि ऐसी वीर-प्रसूति (वीर पुत्र को जन्म देने वाली) मां के दर्शनों से तो महान पुण्य प्राप्त होता है ।’

श्रीराम के मुख से यह सुनकर हनुमानाजी थोड़ा लज्जित हो गए । तब तक पुष्पक विमान माता अंजना के आश्रम तक पहुंच गया । हनुमानजी ने आगे जाकर माता को साष्टांग प्रणाम किया । माता अपने पुत्र को इतने दिनों बाद देखकर अत्यंत प्रसन्न हुई और उन्हें गोद में बैठा कर उनका सिर सूंघने लगी । इतने में ही श्रीराम, लक्ष्मण, सीताजी और अन्य वानर भी वहां पहुंच गए । 

हनुमानजी ने सबका परिचय देते हुए माता से कहा—‘मां ! ये भगवान श्रीराम हैं, ये उनके अनुज लक्ष्मण हैं और ये माता जानकी हैं ।’ 

प्रभु श्रीराम को देखकर माता अंजना अपने सौभाग्य पर गर्व कर कहने लगीं—‘मैं ही यथार्थ में पुत्रवती हूँ, जो मेरे पुत्र ने भगवान के चरणों में अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया और उसी के कारण आज जगत के स्वामी मेरे यहां पधारे हैं ।’

हनुमानजी ने माता के चरण दबाते हुए कहा—‘वन में राक्षसराज लंकाधिपति रावण माता सीता को हर कर ले गया था । असंख्य वानरों और भालुओं की सेना जुटा कर श्रीराम ने समुद्र पर पुल बनाया और लंका के राजा रावण का वध किया । अब माता सीता को वहां से छुड़ाकर हम सब लोग अयोध्यापुरी जा रहे हैं ।’

इतना सुनते ही माता अंजना की त्यौरियां चढ़ गईं, मुख लाल हो गया, आंखें क्रोध से अंगार बन गईं । उन्होंने तमकते हुए कहा—‘हनुमान ! तूने मेरे दूध को लज्जित कर दिया । अरे मूर्ख ! इतने छोटे-से कार्य के लिए श्रीराम को इतना कष्ट सहना पड़ा । तूने मेरा दूध पिया था । तू अकेला जाकर उस राक्षसराज रावण को पकड़ लाता, नहीं तो उस लंकापुरी को ही उखाड़ लाता, रावण को मच्छर की तरह मसल डालता । तूने मेरे दूध को लज्जित कर दिया । धिक्कार है तुझ पर ।’

ऐसा कह कर माता अंजना ने हनुमानजी को गोदी से नीचे फेंक दिया । यह देख कर वहां उपस्थित सभी लोग चकित रह गए कि अभी-अभी में माताजी को क्या हो गया ।

श्रीराम ने माता से कहा—‘माते ! तुम्हारा पुत्र सब कुछ करने में समर्थ है । वह अकेला ही रावण को मार सकता था, वह अकेला ही लंका को उखाड़ कर समुद्र में डुबो सकता था; किन्तु उस स्थिति में केवल तुम्हारे पुत्र का ही नाम होता, केवल उसी की प्रसिद्धि होती, फिर जगत के कल्याण के लिए रामचरित कैसे लिखा जाता ? मैंने जगत में लीला का विस्तार करने के लिए ही ऐसा किया है । आप हनुमान पर प्रसन्न हों, इन्होंने जो कुछ भी किया, मेरी इच्छा से, मेरी आज्ञा से किया है । आप इन्हें पहले की तरह ही प्यार करें ।’

श्रीराम की बात सुन कर माता अंजना प्रसन्न हो गईं । उन्होंने माता जानकी सहित दोनों भाइयों की पूजा की और हनुमानजी को बहुत आशीर्वाद दिया ।

माता अंजना ने दिखाई अपने दूध की शक्ति

लक्ष्मणजी के मन में शंका हुई कि ‘माता अंजना बार-बार अपने दूध की प्रशंसा कर रही है, इनके दूध में ऐसी क्या विशेषता है ?’ 

माता अंजना लक्ष्मणजी के मन के भाव ताड़ गईं और बोली—‘ऐसा लगता है कि छोटे राजकुमार को मेरे दूध पर संदेह हो रहा है । आप समझ नहीं पा रहे हैं कि यह बुढ़िया बार-बार अपने दूध का गुणगान क्यों कर रही है ? मैं इन्हें अभी अपने दूध का असाधारण प्रभाव दिखाती हूँ ।’

यह कह कर माता ने अपने स्तन से दूध की एक धार सामने के पर्वत पर छोड़ी । फिर तो जैसे वज्रपात हो गया । दूध की धार से भयानक शब्द के साथ वह समूचा पर्वत फट गया । यह देख कर सभी आश्चर्यचकित रह गए और ‘माता अंजना की जय’ की गर्जना करने लगे ।

माता अंजना ने लक्ष्मणजी से कहा—‘लखनलाल ! मेरा यही दूध हनुमान ने पिया है । मेरा दूध कभी व्यर्थ नहीं जा सकता है ।’

माता ने हनुमानजी को आशीर्वाद देते हुए कहा—‘बेटा ! तू सदा अत्यंत श्रद्धा-भक्तिपूर्वक प्रभु श्रीराम एवं माता जानकी की सेवा करते रहना ।’

माता की जय-जयकार करते हुए सभी लोग पुष्पक विमान पर आरुढ़ होकर अयोध्या चले गए ।

अबला कहता कौन तुझे है,
तू है सबला बल की खान ।
तेरे सम्मुख सकल जगत है
नाक रगड़ता धर कर कान ।। (पं, श्रीरामवचन द्विवेदी)

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