प्रभु श्रीराम का राजा दशरथ को ज्ञानोपदेश

प्रभु श्रीराम के ज्ञानपूर्ण वचन सुन कर वहां बैठे वसिष्ठ जी, विश्वामित्र जी और सभी ब्रह्मज्ञानियों को अत्यंत आश्चर्य हुआ कि ऐसा बृहस्पति जी भी नहीं बोल सकते, ऐसे अपूर्व वचन ये कुमार बोल रहा है । कितना ज्ञान है इस किशोर में ? विश्वामित्र जी ने राम जी से कहा—‘राम ! जो जानने योग्य है, वह सब कुछ तुम जान ही चुके हो । अब कुछ विशेष जानना बाकी नहीं है ।’

सूर्य देव को लाल चंदन और कनेर के पुष्प अत्यंत प्रिय...

भगवान सूर्य ने विश्वकर्मा के कथनानुसार अपने सारे शरीर में इनका लेप किया, जिससे उनकी सारी वेदना मिट गयी । उसी दिन से लाल चंदन और कनेर (करवीर) के पुष्प भगवान सूर्य को अत्यंत प्रिय हो गए और उनकी पूजा में प्रयुक्त होने लगे ।

महर्षि वाल्मीकि और उनका आदिकाव्य ‘वाल्मीकीय रामायण’

सरस्वतीजी कवित्व की शक्ति हैं । सरस्वतीजी की प्रेरणा से ही उनके मुख की वह वाणी, जो उन्होंने क्रौंची को सान्त्वना देने के लिए कही थी, छन्दमय (कविता) बन गयी । यह श्लोक देवी सरस्वती के कृपा प्रसाद से ही महर्षि वाल्मीकि के मुख से निकला था । वेदों की बात तो अलग है; परन्तु अब तक लोक में छन्द में बद्ध रचना का प्रारम्भ नहीं हुआ था । पहली बार वाल्मीकिजी के मुख से छन्द में बद्ध पद्य (कविता) फूट पड़ी थी ।

राम हैं वैद्य और राम-नाम है रामबाण औषधि

त्रेता में केवल एक रावण था, लेकिन कलियुग में अनगिनत बीमारियां रूपी रावण हैं । उन रावणों पर विजय पाने के लिए राम की शक्ति की आवश्यकता है और वह शक्ति ‘रामनाम’ में निहित है क्योंकि त्रेता में स्वधामगमन से पहले श्रीराम ने अपनी सारी शक्तियां अपने नाम में संन्निहित कर दी थीं ।

आह्लादिनी शक्ति श्रीराधा की अलौकिक लीला

भगवान श्रीकृष्ण की बाललीलाएं तो हमें चमत्कृत करती ही हैं; पुराणों में श्रीराधा की भी ऐसी अलौकिक लीलाएं पढ़ने को मिलती हैं, जिनसे यह सिद्ध होता है कि श्रीराधा वास्तव में कोई साधारण गोपी नहीं; बल्कि श्रीकृष्ण की तरह ही ‘परा देवता’ हैं । जानें, श्रीराधा का एक ऐसा ही अलौकिक लीला प्रसंग—‘श्रीराधा का अलौकिक भोजन और दुर्वासा ऋषि ।‘

मनुष्य का सच्चा साथी कौन है?

नाशवान संसार में केवल धर्म ही अचल है और मनुष्य का सच्चा साथी है।

वात्सल्यमूर्ति हनुमान और उनके पुत्र मकरध्वज

हनुमानजी जब सूक्ष्म रूप धारण कर पाताललोक के द्वार के अंदर प्रवेश करने जा रहे थे तो उस वानर ने गर्जते हुए कहा—‘तुम कौन हो? सूक्ष्म रूप धारण कर तुम चोरी से द्वार के अंदर प्रवेश नहीं कर सकते । मेरा नाम मकरध्वज है और मैं परम पराक्रमी बजरंगबली हनुमान का पुत्र हूँ ।’ हनुमानजी ने आश्चर्यचकित होकर कहा—‘हनुमान का पुत्र ? हनुमान तो बाल ब्रह्मचारी हैं । तुम उनके पुत्र कहां से आए ?’

श्रीहनुमान को भगवान श्रीराम का आलिंगनदान

भगवान श्रीराम ने हनुमानजी के बुद्धिकौशल व पराक्रम को देखकर उन्हें अपना दुर्लभ आलिंगन प्रदान किया। भगवान श्रीराम हनुमानजी से कहते हैं--‘संसार में मुझ परमात्मा का आलिंगन मिलना अत्यन्त दुर्लभ है। हे वानरश्रेष्ठ! तुम्हे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है। अत: तुम मेरे परम भक्त और प्रिय हो।’

वाल्मीकीय रामायण की ‘राम गीता’

जो रात बीत जाती है, वह लौट कर फिर नहीं आती, जैसे यमुना जल से भरे हुए समुद्र की ओर जाती ही है, उधर से लौटती नहीं । दिन-रात लगातार बीत रहे हैं और इस संसार में सभी प्राणियों की आयु का तीव्र गति से नाश कर रहे हैं; ठीक वैसे ही, जैसे सूर्य की किरणें ग्रीष्म ऋतु में जल को तेजी से सोखती रहती हैं । तुम अपने ही लिए चिन्ता करो, दूसरों के लिए क्यों बार-बार शोक करते हो ?

रावण जिसने श्रीराम से शत्रुता कर पाई परम गति

कई बार मन में यह प्रश्न उठता है कि रावण जैसा प्रकाण्ड विद्वान जिसने अपने शीश अर्पण कर भगवान शिव को प्रसन्न किया, ‘शिव ताण्डव स्तोत्र’ जैसे काव्य की रचना की; वह सीताहरण जैसे निन्दनीय कर्म को कैसे कर सकता है ? क्या वह इतना अज्ञानी था या इसके पीछे उसका कोई गुप्त उद्देश्य था ?