bhagwan ram worshiping bhagwan ram parvati

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम सदा देना ही जानते हैं, लेना नहीं । प्रभु श्रीराम के चरित्र में दो गुण विशेष रूप से देखने को मिलते हैं—शरणागतवत्सलता और अभयदान । श्रीराम जिसे एक बार आश्रय दे देते हैं, उसे फिर कभी त्यागते नहीं—

तुलसी अजहूँ राम भजु छाँड़ि कपट-छल छाँह ।
सरनागत की राम ने कब नहिं पकरी बाँह ।।

अभयदान भगवान श्रीराम का प्रमुख जीवन-व्रत है । वे समस्त जीवों को अभयदान देते हैं । वाल्मीकि रामायण (६।१८।३३) में उन्होंने स्पष्ट घोषणा की है—

सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते ।
अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम ।।

अर्थात्—जो एक बार भी शरण में आकर ‘मैं तुम्हारा हूँ’—ऐसा कहकर मुझसे रक्षा की प्रार्थना करता है, उसे मैं समस्त प्राणियों से अभय कर देता हूँ । यह मेरा सदा के लिए व्रत है ।

श्रीरामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदासजी ने भगवान श्रीराम के अभयदान का बहुत सुन्दर वर्णन किया है । जैसे—

श्रीराम के अवतार धारण करने की भविष्यवाणी से ही पूरी पृथ्वी और सारा देवलोक निर्भय हो गया—

जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा ।
तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा ।।
हरिहउँ सकल भूमि गरुआई ।
निर्भय होहु देव समुदाई ।।
तब ब्रह्माँ धरनिहि समुझावा ।
अभय भईँ भरोस जियँ आवा ।। (राचमा १।१८७।१,७,९)

श्रीराम ने रावण का वध करके अपने अवतार के समय हुई भविष्यवाणी को सच कर दिया—

कृपादृष्टि करि बृष्टि प्रभु अभय किए सुर बृंद ।
भालु कीस सब हरषे जय सुखधाम मुकुंद ।।  (राचमा ६।१०३)

विश्वामित्र ऋषि को अभयदान—विश्वामित्र ऋषि के आश्रम की ओर जाते हुए श्रीरामजी ने एक ही बाण से ताड़का का वध कर दिया और विश्वामित्र ऋषि को अभयदान दिया—

प्रात कहा मुनि सन रघुराई ।
निर्भय जग्य करहु तुम्ह जाईं ।। (राचमा १।२१०।१)

सुग्रीव को अभयदान—जब हनुमानजी प्रभु श्रीराम को सुग्रीव की व्यथा-कथा सुनाते हुए कहते हैं—

नाथ सैल पर कपिपति रहई ।
सो सुग्रीव दास तव अहई ।।
तेहि सन नाथ मयत्री कीजै ।
दीन जानि तेहि अभय करीजे ।। (राचमा ४।४।२-३)

सुग्रीव की व्यथा सुनकर श्रीरामजी की भुजाएं फड़क उठीं और एक ही बाण से वालि का वध करके सुग्रीव को अभयदान दिया ।

विभीषण को अभयदान—रावण के अत्याचार से पीड़ित विभीषण जब त्राहि-त्राहि करते हुए श्रीराम की शरण में आए—

श्रवन सुजसु सुनि आयहुँ प्रभु भंजन भव भीर ।
त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ।। (राचमा ५।४५)

श्रीरामजी उन्हें हृदय से लगा लिया । तब विभीषण कहते हैं—हे रामजी ! आपके चरणारविन्दों के दर्शन कर अब मैं कुशलपूर्वक हूँ, मेरे भारी भय मिट गये ।

परन्तु श्रीरामजी को बारम्बार विभीषण की ही चिन्ता है—

लछिमन के उर सक्ति लगी नहिं सोच है रावण सीय हरे को ।
बारहिं बार कहें रघुनाथ मोहि सोच बिभीषण बाँह गहे को ।।

भय-नाश के लिए मानस के मन्त्र और विधि

‘राम’ का नाम जपने वाले को भय कहां ?  राम-नाम भय दूर करता है । संसार की पीड़ा से भयभीत मनुष्य को श्रीरामचरितमानस की इन चौपाइयों का निरन्तर जाप-स्मरण कर श्रीराम से अभय की याचना करनी चाहिए—

१.
भजेउ राम आपु भव चापू ।
भव-भय-भंजन नाम प्रतापू ।। (राचमा १।२४।६)

२.
अब मैं कुसल मिटे भय भारे ।
देखि राम पद कमल तुम्हारे ।। (राचमा ५।४७।५)

३.
तुम्ह कृपालु जा पर अनुकूला ।
ताहि न व्याप त्रिविध भव सूला ।। राचमा ५।४७।६)

जप विधि—किसी भी प्रकार का भय उत्पन्न होने पर इन चौपाइयों में से किसी एक या अधिक का जप करने से मनुष्य का भय समाप्त हो जाता है । प्रात:काल स्नान आदि करके एक चौकी पर श्रीरामजी की मूर्ति या चित्रपट रखकर उसका पंचोपचार—गंध, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप, नैवेद्य आदि से पूजन करें । फिर किसी भी चौपाई का १०८ बार (एक माला) जप करें । यह जप लगातार ३१ दिनों तक करें । इसके बाद इन चौपाइयों का मानसिक जप करते रहें । इस प्रयोग से भय से छुटकारा मिल जाता है ।