नित्य पाठ के लिए मां भवानी का शरणागति स्तोत्र : भवान्यष्टकस्तोत्रम्

मैं अपार भवसागर में पड़ा हूँ, महान दु:खों से भयभीत हूँ, कामी, लोभी, मतवाला तथा घृणायोग्य संसार के बन्धनों में बँधा हुआ हूँ, हे भवानि! अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो।

सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:

मानव जीवन की दो प्रधान भावनाएं हैं—स्वार्थ भावना और परहित भावना । स्वार्थ भावना मनुष्य के हृदय को संकीर्ण और निम्न स्तर का बना देती है; लेकिन परहित की भावना मनुष्य के हृदय को उज्ज्वल कर विशाल बना देती है । दूसरों के दु:ख दूर करने से स्वयं में आनन्द का आभास होता है । परमात्मा को भी ऐसे ही मनुष्य अत्यंत प्रिय होते हैं । इस प्रकार की प्रार्थना करने वाले मनुष्यों की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं ।

जीवन में एक नियम लेना जरुरी है

जिस प्रकार नदी का लक्ष्य होता है समुद्र; उसी तरह मानव जीवन का लक्ष्य है भगवान । जीवन में सब कुछ प्राप्त कर लेने पर भी मनुष्य अपने अंदर एक अनजाने अभाव का अनुभव करता है । वह ‘कुछ’ खोज रहा है, ‘कुछ’ चाह रहा है, वह ‘किसी’ को देखना-मिलना चाहता है; परन्तु जानता नहीं कि वह ‘कोई’ कौन है, कहां है, कैसा है ? भगवान की प्राप्ति ही संसार की सबसे बड़ी उपलब्धि है । इसके लिए जीवन में कोई एक नियम लेना जरुरी है । एक रोचक कथा ।

प्रात:काल स्मरण किए जाने वाले कल्याणकारी श्लोक

प्रात:काल की अमृतबेला परमात्मा से बातचीत करने का समय है । इस समय सोकर उठते समय यदि परमपिता परमात्मा का नाम-स्मरण कर लिया जाए तो वह मनुष्य के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है ।

श्रीकृष्ण कृपा और भक्ति देने वाला ‘श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र’

श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र (कृष्णाष्टक) भगवान श्रीशंकराचार्य द्वारा रचित बहुत सुन्दर स्तुति है । बिना जप, बिना सेवा एवं बिना पूजा के भी केवल इस स्तोत्र मात्र के नित्य पाठ से ही श्रीकृष्ण कृपा और भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमलों की भक्ति प्राप्त होती है।

नित्य सूर्यपूजा क्यों करनी चाहिए?

जिस मनुष्य को राज्यसुख, भोग, अतुल कान्ति, यश-कीर्ति, श्री, सौन्दर्य, विद्या, धर्म और मुक्ति की अभिलाषा हो, उसे सूर्यनारायण की पूजा-आराधना करनी चाहिए। सूर्यपूजा से मनुष्य की सभी आपत्तियां एवं आधि-व्याधि दूर हो जाती हैं।

आरोग्य प्राप्ति के लिए सूर्य उपासना

सूर्य देव की कृपा से हम सौ वर्षों तक देखते रहें, सौ वर्षों तक श्रवण शक्ति से संपन्न रहें, सौ वर्षों तक प्रवचन करते रहें, सौ वर्षों तक अदीन रहे, किसी के अधीन होकर न रहें, सौ वर्षों से भी अधिक देखते, सुनते, बोलते रहें, पराधीन न होते हुए जीवित रहें । (यजुर्वेद)

वेद में परमात्मा की स्तुति : पुरुष सूक्त

वेदों में मनुष्य के कल्याण के लिए ‘सूक्त’ रूपी अनेक मणियां हैं । सूक्त में देवी या देवता विशेष के ध्यान, पूजन तथा स्तुति का वर्णन होता है । इन सूक्तों के जप और पाठ से सभी प्रकार के क्लेशों से मुक्ति मिल जाती है, व्यक्ति पवित्र हो जाता है और उसे मनो अभिलाषित की प्राप्ति होती है । विराट् पुरुष के वैदिक स्तवन पुरुष सूक्त की बड़ी महिमा है । इसके नित्य पाठ से मनुष्य परम तत्त्व को जानने में सक्षम होता है और उसकी मेधा, प्रज्ञा और भक्ति की वृद्धि होती है ।

कैसे करें नवरात्रि में कलश की स्थापना ?

कलश-स्थापन क्यों किया जाता है? कौन-से योग व नक्षत्रों में कलश-स्थापन नहीं करना चाहिए?