नित्य सूर्यपूजा क्यों करनी चाहिए?

जिस मनुष्य को राज्यसुख, भोग, अतुल कान्ति, यश-कीर्ति, श्री, सौन्दर्य, विद्या, धर्म और मुक्ति की अभिलाषा हो, उसे सूर्यनारायण की पूजा-आराधना करनी चाहिए। सूर्यपूजा से मनुष्य की सभी आपत्तियां एवं आधि-व्याधि दूर हो जाती हैं।

कैसे करें नवरात्रि में कलश की स्थापना ?

कलश-स्थापन क्यों किया जाता है? कौन-से योग व नक्षत्रों में कलश-स्थापन नहीं करना चाहिए?

प्रात:काल स्मरण किए जाने वाले कल्याणकारी श्लोक

प्रात:काल की अमृतबेला परमात्मा से बातचीत करने का समय है । इस समय सोकर उठते समय यदि परमपिता परमात्मा का नाम-स्मरण कर लिया जाए तो वह मनुष्य के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है ।

श्रीराधा कृष्ण के साक्षात् दर्शन कराने वाला ‘श्रीराधा कृपाकटाक्ष स्तवराज’

श्रीराधा कृपाकटाक्ष स्तोत्र के भक्तिपूर्वक पाठ से श्रीराधाजी प्रकट होकर प्रसन्नतापूर्वक वरदान देती हैं अथवा अपने चरणों का महावर (जावक) भक्त के मस्तक पर लगा देती हैं। वरदान में केवल ‘अपनी प्रिय वस्तु दो’ यही मांगना चाहिए। तब भगवान श्रीकृष्ण प्रकट होकर दर्शन देते है और प्रसन्न होकर श्रीव्रजराजकुमार नित्य लीलाओं में प्रवेश प्रदान करते हैं। इससे बढ़कर वैष्णवों के लिए कोई भी वस्तु नहीं है।

‘अन्न-धन’ देने वाली मां अन्नपूर्णा : स्तोत्र

माता अन्नपूर्णा की आराधना करने से मनुष्य को कभी अन्न का दु:ख नहीं होता है; क्योंकि वे नित्य अन्न-दान करती हैं । यदि माता अन्नपूर्णा अपनी कृपादृष्टि हटा लें तो मनुष्य दर-दर अन्न-जल के लिए भटकता फिरे लेकिन उसे चार दाने चने के भी प्राप्त नहीं होते हैं । मां अन्नपूर्णा की प्रसन्नता के लिए भगवान आदि शंकराचार्य कृत एक सुन्दर स्तोत्र ।

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत

स्वामी रामकृष्ण परमहंसजी ‘टाका माटी’ के खेल का अभ्यास किया करते थे । वे एक हाथ में ‘टाका’ यानी सिक्का और दूसरे में मिट्टी का ढेला लेते और ‘टाका माटी’, ‘टाका माटी’ कहते हुए उन्हें दूर फेंक देते थे । ऐसा अभ्यास वे पैसे के प्रलोभन से बचने के लिए अर्थात् पैसा और मिट्टी एक बराबर समझने के लिए करते थे ।

गान करने पर त्राण करने वाली श्रीगायत्री चालीसा

गायत्री मन्त्र केवल यज्ञोपवीत धारियों को जपना चाहिए या सभी उसका जप कर सकते हैं; इस पर तो एक राय नहीं है । इसलिए जिन्होंने गुरु दीक्षा नहीं ली है या जो यज्ञोपवीतधारी नहीं हैं; वे ‘गायत्री चालीसा’ का पाठ कर सकते हैं ।

सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:

मानव जीवन की दो प्रधान भावनाएं हैं—स्वार्थ भावना और परहित भावना । स्वार्थ भावना मनुष्य के हृदय को संकीर्ण और निम्न स्तर का बना देती है; लेकिन परहित की भावना मनुष्य के हृदय को उज्ज्वल कर विशाल बना देती है । दूसरों के दु:ख दूर करने से स्वयं में आनन्द का आभास होता है । परमात्मा को भी ऐसे ही मनुष्य अत्यंत प्रिय होते हैं । इस प्रकार की प्रार्थना करने वाले मनुष्यों की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं ।

भय से मुक्ति के लिए गौ स्तुति

गाय की सेवा करने से जीते-जी तो हर प्रकार का सुख, संतोष और शांति प्राप्त होती ही है, गोदान करने से मरने के बाद यमराज का भय नहीं रहता है ।