भगवान गणेश को तुलसी क्यों नहीं चढ़ाई जाती इसके पीछे एक प्रसंग है जिसमें श्रीगणेश ने तुलसी को शाप दिया है—
ब्रह्मकल्प की बात है, एक दिन परम सुन्दरी तुलसी भगवान नारायण का ध्यान करती हुई गंगाजी के तट पर पहुंची । गंगातट पर ही अत्यन्त सुन्दर पीताम्बरधारी नवयौवन सम्पन्न, चंदन की खौर लगाए, रत्न आभूषणों से सज्जित श्रीगणेश ध्यानमग्न बैठे थे । पार्वतीनन्दन श्रीगणेश को देखकर तुलसी का ध्यान उनकी ओर आकृष्ट हो गया ।
श्रीगणेश से मजाक करते हुए तुलसी ने कहा—‘गज के समान मुख वाले, शूपकर्ण, एकदन्त, लम्बोदर ! संसार के सारे आश्चर्य आपके सुन्दर शरीर में ही एकत्र हो गए हैं । किस तपस्या का फल है यह ?’
श्रीगणेश का ध्यान भंग होने पर आंखे खोलते हुए उन्होंने तुलसी से पूछा—‘कौन हो तुम और यहां क्यों आई हो ? किसी की तपस्या में विघ्न डालना सही नहीं है । इससे अमंगल ही होता है ।’ तुलसी ने कहा—‘मैं धर्मात्मज की पुत्री हूँ । अपने लिए मनचाहा पति पाने के लिए तपस्या कर रही हूँ । आप मुझे पत्नी के रूप में स्वीकार कर लीजिए ।’
श्रीगणेश मे कहा—‘माता ! विवाह बड़ा दु:खदायी होता है । विवाह से तत्त्वज्ञान समाप्त हो जाता है और यह संशय को जन्म देता है । तुम मेरी ओर से अपना मन हटाकर किसी अन्य पुरुष को अपना पति वरण कर लो, किन्तु मुझे क्षमा करो ।’
तुलसी ने लम्बोदर को शाप देते हुए कहा—‘तुम्हारा विवाह अवश्य होगा ।’
श्रीगणेश ने भी तुलसी को शाप देते हुए कहा—‘देवि ! तुम्हें भी असुर पति प्राप्त होगा और उसके बाद महापुरुषों के शाप से तुम वृक्ष हो जाओगी ।’
पार्वतीनन्दन श्रीगणेश के अमोघ शाप के भय से तुलसी उनकी स्तुति करने लगीं । तब श्रीगणेश ने उन्हें सान्त्वना देते हुए कहा—‘तुम पुष्पों की सारभूता होकर नारायणप्रिया बनोगी । यों तो सभी देवता तुमसे संतुष्ट होंगे किन्तु श्रीहरि के लिए तुम विशेष प्रिय होओगी । तुम्हारे द्वारा श्रीहरि की अर्चना कर मनुष्य मुक्ति प्राप्त करेंगे किन्तु मेरे लिए तुम त्याज्य रहोगी ।’
कालांतर में तुलसी वृन्दा के नाम से दानवराज शंखचूड़ की पत्नी हुईं । शंखचूड़ भगवान शंकर के त्रिशूल से मारा गया और उसके बाद नारायणप्रिया तुलसी कलांश से वृक्ष भाव को प्राप्त हो गयीं ।
इसलिए श्रीगणेश को तुलसी नहीं चढ़ाई जाती है ।