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भगवान श्रीकृष्ण के 108 नाम

भगवान के भक्त को भगवान जितने प्यारे लगते हैं, उनका नाम भी उसे उतना ही प्यारा लगता है; क्योंकि तेज:स्वरूप श्रीकृष्ण ही नामरूप में प्रकट होते हैं । अत: भगवान का नाम हमारी जिह्वा पर आ गया तो स्वयं भगवान ही हमारी जिह्वा पर आ गए ।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाने की परम्परा कब शुरु हुई ?

एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा—‘हे अच्युत ! आप कृपा करके यह बतायें कि जन्माष्टमी (आपका जन्मदिन) महोत्सव मनाने की परम्परा कब शुरु हुई और इसका पुण्य क्या है ?’

व्रत की थाली में 56 भोग

उपवास सबसे बढ़िया और मजेदार काम है, इससे एक तो रोज की दाल-रोटी से छुट्टी मिल जाती है; दूसरे फलाहार के नाम पर नये-नये पकवान खाने को मिल जाते हैं । हमारे देश में इतने फल, कंद और मसाले होते हैं कि फलाहारी खाने का ही एक छोटा शब्दकोश बन जाए ।

नंदोत्सव के बधाई गीत

भगवान के जन्म महोत्सव पर बधाइयां गाना भगवान की सेवा ही है अत: यह भक्ति का ही एक अंग है । बधाइयों में भगवान के प्राकट्य पर व्रजवासियों के आनंद का गायन किया जाता है ।

इस बार कुछ अलग तरीके से मनायें जन्माष्टमी

भगवान श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिए इस बार हम ऐसी इको-फ्रेन्डली जन्माष्टमी मनायें जो वातावरण को प्रदूषित न करें । जानिए कैसे ?

जन्माष्टमी का व्रत-पूजन कैसे करें ?

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन व्रत-पूजन से मनुष्य के जन्म-जन्मान्तर के पाप नष्ट हो जाते हैं व सहस्त्र एकादशियों के व्रत का फल मिलता है । धर्म में आस्था रखने वाला कोई भी व्यक्ति जन्माष्टमी का व्रत-पूजन कर अपनी अभीष्ट वस्तु प्राप्त कर सकता है ।

रक्षाबन्धन पर्व : इतिहास एवं पूजा विधि

रक्षाबन्धन का अर्थ है रक्षा का भार जिसका तात्पर्य है कि मुसीबत में भाई बहन का साथ दे या बहन भाई का साथ दे । द्रौपदी ने भगवान कृष्ण को अपनी धोती का चीर (कच्चा धागा) बांधा था और मुसीबत पड़ने पर श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा की ।

भगवान विट्ठल और भक्त कूर्मदास

भगवान भक्त का ‘प्रेम’ ही चाहते हैं, बस प्रेम से उन्हें पुकारने, उनका नित्य स्मरण करने और उनके वियोग में विकल रहने की आवश्यकता है, उन्हें रीझते देर नहीं लगती, कोई पुकार करके तो देखे । यदि मनुष्य उनसे सच्चा प्रेम करें, तो वे अवश्य उसके हो जायेंगे फिर उसका जीवन ही धन्य हो जायेगा ।

भगवान विष्णु का शयनोत्सव

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु ने आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी के दिन शंखासुर दैत्य का वध किया और युद्ध में किए गए परिश्रम से थक कर वे क्षीरसागर में अनन्त शय्या पर शयन करने चले गए ।

स्त्रियां अपने मन में कोई बात क्यों नहीं छिपा पाती हैं...

एक प्रसिद्ध कहावत है कि ‘स्त्रियों के पेट में कोई बात नहीं पचती है ।’ यह केवल कहावत नहीं है वरन् सच्चाई है जिसका वर्णन महाभारत के शान्तिपर्व में है ।