भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, बुधवार व रोहणी नक्षत्र की अंधियारी अर्धरात्रि में मथुरा नगरी के कारागार में अज्ञान रूपी अंधकार का नाश करके षोडश कला से सम्पन्न यदुवंश के चन्दमा पूर्ण पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण देवकी के गर्भ से प्रकट हुए । इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का प्रादुर्भाव होने के कारण इस उत्सव में मुख्य रूप से भगवान की सेवा (उनका विशिष्ट श्रृंगार), व्रत व जागरण किया जाता है ।  इस दिन मन्दिरों, गली-मोहल्लों व घरों में भगवान श्रीकृष्ण की लीला की झांकियां सजायी जाती हैं । लड्डूगोपाल का श्रृंगार करके उनका पालना सजाया जाता है और रात्रि में जन्म के बाद उन्हें पालने में झुलाया जाता है ।

जन्माष्टमी की व्रत-पूजन विधि

▪️जन्माष्टमी को पूरा दिन व्रत रखने (रात्रि के बारह बजे तक) का विधान है । पूरा दिन व्रत न रख सकें तो दिन में फलाहार कर सकते हैं । यदि समस्त पापों को समूल नष्ट करना चाहते हैं तो उत्सव के अन्त तक व्रत रखें, फिर वैष्णवों को भोजन कराकर तब भगवान के प्रसाद को ग्रहण करना चाहिए । इस प्रकार व्रत करने से मनुष्य अपने कुल की २१ पीढ़ियों का उद्धार कर देता है ।

▪️इस दिन प्रात:काल स्नानादि करके सुन्दर व स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान के सामने संकल्प करें—‘हे पुण्डरीकाक्ष ! आपके चरणकमल ही एकमात्र मेरा सहारा हैं । मैं आपकी प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए जो भी उपचार उपलब्ध हैं, उनसे श्रद्धा-भक्तिपूर्वक जन्माष्टमी का व्रत व पूजन करुंगा ।’

▪️घर के द्वार और घर में स्थित मन्दिर के द्वार को आम और अशोक की बन्दनवार बना कर सजायें । द्वार पर केले के स्तम्भ व मंगल-कलश लगायें ।

▪️दिन में लड्डूगोपाल या भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को शंख में जल भरकर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ या ‘ॐ नमो नारायणाय’ या ‘गोपीजनवल्लभाय नम:’ या ‘श्रीकृष्णाय नम:’ का उच्चारण करते हुए शुद्ध जल से व पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद व बूरा) से स्नान करायें । भगवान को पंचामृत-स्नान कराने से मनुष्य के सारे पाप दूर हो जाते हैं।

▪️जन्माष्टमी महोत्सव पर भगवान को ऋतु अनुकूल सुन्दर पोशाक, केसर युक्त चंदन का तिलक व श्रृंगार धारण कराकर दर्पण दिखाना चाहिए क्योंकि बालकृष्ण अपने रूप पर ही मोहित होकर रीझ जाते हैं । 

▪️बच्चे की भांति उन्हें सुन्दर खिलौने—गाय, मोर, हंस, बतख, झुनझना, फिरकनी, गेंद-बल्ला, झूला आदि सजाकर प्रसन्न करना चाहिए ।

▪️श्रीलड्डूगोपाल को तुलसी की मंजरियां, चंदन का इत्र व कमल का पुष्प अर्पण कर प्रसन्न करें क्योंकि इससे मनुष्य इस लोक में समस्त वैभव प्राप्त करके मृत्यु के बाद उनके परम धाम को प्राप्त करता है । भगवान बालकृष्ण को श्यामा तुलसी की श्याम मंजरी अति प्रिय हैं ।

▪️इसके बाद धूप-दीप व कपूर आदि से आरती उतारें ।

▪️श्रीलड्डूगोपाल को माखन-मिश्री, दूध-दही, फल, मिठाई आदि का भोग लगावें ।

▪️दिन में भगवान की मूर्ति के सामने बैठकर कीर्तन-भजन करें और उनके नामों का उच्चारण करें । उनके ११ नाम इस प्रकार हैं—

१. ॐ कृष्णाय नम:
२. ॐ विष्णवे नम:
३. ॐ अनन्ताय नम:
४. ॐ गोविन्दाय नम:
५. ॐ गरुड़ध्वजाय नम:
६. ॐ दामोदराय नम: 
७. ॐ हृषीकेशाय नम:
८. ॐ पद्मनाभाय नम:
९. ॐ मुकुन्दाय नम:
१०. ॐ प्रभवे नम:
११. ॐ वृन्दावन विहारिणे नम:

कैसे करें भगवान का जन्मोत्सव ?

▪️रात्रि में बारह बजे श्रीकृष्ण के गर्भ से जन्म लेने के प्रतीक रूप में खीरा को बीच से दो टुकड़ों में चीर लें परन्तु खीरा नीचे से जुड़ा होना चाहिए । उस खीरे के बीच में लड्डूगोपाल को बिठाकर निकाल लें । इस तरह भगवान का जन्म करायें । जन्म के बाद पंचामृत में तुलसी डालकर स्नान करायें, वस्त्र व श्रृंगार धारण करायें ।

▪️जन्म के बाद भगवान को पालने में विराजित करें । फिर शंख व घण्टाध्वनि के साथ भगवान की कपूर आदि से आरती करें । 

▪️प्रसूति के समय खाये जाने वाले मेवा के पाग, मूंगफली, मखाने, खरबूजे व काशीफल के बीजों की नमकीन, पंजीरी, नारियल की बर्फी, छुहारे, अनार, कूटू व सिंघाड़े के व्यंजन आदि तरह-तरह के फलाहारी पकवानों का भोग लगाएं ।

▪️लड्डूगोपाल को पलना झुलाते समय श्रीकृष्ण जन्म व बधाइयों के पद गायें ।

▪️भगवान का प्रसाद सबको बांटें ।

▪️पूरे दिन के व्रती को रात्रि में चन्द्रमा को अर्घ्य देना चाहिए। 

चन्द्रमा को अर्घ्य देने का मन्त्र

इसके लिए शंख में जल, गंध, पुष्प व फल डालकर ‘सोमाय सोमेश्वराय सोमपतये सोमसम्भवाय सोमाय नमो नम:’ कह कर चन्द्रमा को अर्घ्य दें ।

▪️पूरे दिन का व्रत रखने वाला फलाहारी प्रसाद खाकर भगवान की मूर्ति के पास ही भूमि पर शयन करें । यदि हो सके तो रात्रि जागरण करें व गोपाल सहस्त्रनाम आदि का पाठ करे ।

▪️दूसरे दिन स्नान आदि से निवृत होकर नंदोत्सव करे । इसे व्रज में ‘दधिकांदो’ के रूप में मनाया जाता है । यह उत्सव बहुत आनन्द देने वाला होता है । इस दिन भगवान पर कपूर, हल्दी, दही, घी, तेल, जल और केसर मिला कर चढ़ाते हैं और फिर इसे ‘भगवान की छी-छी’ कहकर भक्तगण आपस में एक दूसरे पर छिड़कते हैं । 

नंदोत्सव के दिन श्रीकृष्ण-जन्म की बधाइयां गायी जाती हैं ।

जन्माष्टमी व्रत-पूजन का माहात्म्य

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी हिन्दुओं का महान पर्व है । इस दिन व्रत-पूजन से मनुष्य के जन्म-जन्मान्तर के पाप नष्ट हो जाते हैं, सुख की वृद्धि होती है व  सहस्त्र एकादशियों के व्रत का फल मिलता है । धर्म में आस्था रखने वाला कोई भी व्यक्ति जन्माष्टमी का व्रत-पूजन कर अपनी अभीष्ट वस्तु प्राप्त कर सकता है । जन्माष्टमी का उत्सव निराशा में आशा का संचार करने वाला है ।

श्रीकृष्ण के प्रादुर्भाव के पांच हजार से भी अधिक वर्ष बीत चुके हैं, परन्तु आज भी भक्तजन इस मंगलमयी तिथि की पूजा, जन्म-महोत्सव के आयोजन तथा व्रत का पालन करके अपने-आप को धन्य करते हैं ।

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