bhagwan vishnu shayan

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु ने आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी के दिन शंखासुर दैत्य का वध किया और युद्ध में किए गए परिश्रम से थक कर वे क्षीरसागर में अनन्त शय्या पर शयन करने गए । 

भगवान विष्णु चार मास तक शयन क्यों करते हैं ?

इससे सम्बन्धित एक कथा है—पूर्व काल में योगनिद्रा ने अपनी तपस्या से भगवान श्रीहरि को प्रसन्न करके प्रार्थना की कि भगवन् ! आप मुझे अपने अंगों में स्थान दीजिए । भगवान ने  देखा कि मेरा सारा शरीर तो किसी-न-किसी वस्तु या परिकर से सुशोभित है—लक्ष्मीजी हृदयस्थल में विराजमान हैं, शंख, चक्र, शांर्गधनुष व असि बाहुओं में अधिष्ठित हैं, सिर पर मुकुट है, कानों में मकराकृत कुण्डल हैं, कन्धों पर पीताम्बर है, नाभि के नीचे के अंग वैनतेय (गरुड़) से घिरे हैं । अब तो केवल नेत्र ही बचे हैं । इसलिए श्रीहरि ने आदर के साथ योगनिद्रा को नेत्रों में स्थान दे दिया और कहा कि—‘तुम वर्ष में चार मास मेरे नेत्रों में रहोगी ।’ 

तब से देवशयनी एकादशी से देव प्रबोधिनी एकादशी तक भगवान विष्णु एक स्वरूप में क्षीरसागर में शयन करते हैं और दूसरे स्वरूप में चार मास की अवधि तक पाताल लोक में राजा बलि के यहां निवास करते हैं । इसीलिए चातुर्मास्य भगवान विष्णु का योगनिद्रा काल कहा जाने लगा । साथ ही अन्य देवतागण भी प्रसुप्त अवस्था में रहते हैं इसलिए यह कहा जाता है कि ‘देव सो गए हैं ।’ यही कारण है कि इस काल में कोई मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है ।

कैसे मनायें भगवान विष्णु का शयनोत्सव ?

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को, जिसे ‘देवशयनी’ या ‘हरिशयनी एकादशी’ कहते है और जब सूर्य मिथुन राशि पर हों, तब भगवान का शयनोत्सव मनाना चाहिए ।

▪️इसके लिए भगवान विष्णु की एक प्रतिमा जो कि शंख चक्र, गदा, पद्म व पीताम्बर धारण किए हो, लें और उसे आसन पर स्थापित करें । जिनके पास भगवान विष्णु की मूर्ति न हो, वे चित्रपट से भी पूजा कर सकते हैं या फिर लड्डूगोपाल की पूजा कर सकते हैं ।

▪️भगवान के शयन के लिए एक सुन्दर पलंग लें जिस पर सफेद चादर बिछी हो व सफेद तकिया व ओढ़ने के लिए सफेद चादर रखा हो । भगवान की शय्या को सफेद पुष्पों से सजायें ।

▪️इसके बाद भगवान को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद व शर्करा) से स्नान करायें फिर स्वच्छ जल से स्नान करायें ।

▪️प्रतिमा को साफ वस्त्र से पोंछ कर पीताम्बर व यज्ञोपवीत पहनायें ।

▪️भगवान के सारे शरीर पर केसर व कपूर मिश्रित चंदन का लेप करें । जो मनुष्य भगवान के श्रीअंग पर चंदन का लेप करता है वह सूर्य के समान तेजस्वी होता है ।

▪️तत्पश्चात् भगवान को मुकुट, हार आदि आभूषण धारण करायें ।

▪️पुष्पमाला व तुलसीदल अर्पित करें । भगवान का सुन्दर पुष्पों विशेषकर चम्पा के फूलों से श्रृंगार करने से मनुष्य को सालोक्य मुक्ति की प्राप्ति होती है ।

▪️धूप-दीप दिखायें । धूप घ्राणेन्द्रिय को तृप्त करने का मुख्य साधन है अत: भगवान को धूप निवेदित करने से वह शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं । भगवान को दीप निवेदित करने से समस्त पाप जलकर भस्म हो जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है ।

▪️भगवान को फल, मिठाई आदि का भोग निवेदित करें ।

▪️भगवान की आरती उतारें व प्रणाम करें । 

▪️भगवान की प्रदक्षिणा करें । भगवान विष्णु की चार परिक्रमा करने से सम्पूर्ण जगत और समस्त तीर्थों की परिक्रमा हो जाती है ।

▪️अब भगवान की प्रतिमा या चित्रपट को शयन कराना चाहिए । शयन कराते समय इस मन्त्र से प्रार्थना करें—

सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम् ।
विबुद्धे त्वयि बुध्येत जगत् सर्वं चराचरम् ।। (रामार्चनचन्द्रिका)

अर्थात्—जगन्नाथजी (सारे संसार के नाथ, पालनकर्ता) ! आपके सो जाने पर यह सारा जगत सो जाता है तथा आपके जागने पर सम्पूर्ण चराचर जगत जाग उठता है ।

▪️भगवान का शयनोत्सव गायन-वादन के साथ मनाना चाहिए । भगवान को शयन कराते समय यह भजन अवश्य गायें—

नैंनों में नींद भर आई रमनबिहारीजी के ।
कौन बिहारीजी को दूध पिलावे, कौन खवाबै मलाई बिहारीजी को ।
देव बिहारीजी को दूध पिलावें, कमलाजी खिलावें मलाई बिहारीजी को ।
कौन बिहारीजी की सेज बिछावे, कौन करे गुणगाई बिहारीजी की ।
देव बिहारीजी की सेज बिछावें, भक्त करें गुणगाई बिहारीजी की ।
कौन बिहारीजी के चरण दवाबे, कौन तो चंवर ढुलाबे बिहारीजी के ।
लक्ष्मी बिहारीजी के चरण दवाबें, सखियां तो चंवर ढुलावें बिहारीजी के ।।

▪️इस प्रकार भगवान श्रीहरि की पूजा कर भगवान का शयनोत्सव मनाना चाहिए ।

▪️किसी वेदपाठी ब्राह्मण से इस दिन ‘पुरुष सूक्त’ का पाठ करवाएं तो अति उत्तम है ।

▪️शयनोत्सव के बाद ब्राह्मण को फल, मिठाई, दक्षिणा आदि का दान करें ।

▪️इस दिन स्वयं भी फलाहार करें ।

▪️चूंकि इस दिन से भगवान एक स्वरूप में राजा बलि के यहां पाताल में निवास करते हैं अत: भगवान को शयन कराने के बाद स्वयं भूमि पर शयन करे तो इसका महान पुण्य माना जाता है ।

▪️भगवान विष्णु की प्रतिमा को शय्या पर स्थापित कर उन्हीं के सामने चातुर्मास्य में जो नियम लेना चाहते हैं, उनका संकल्प करें । सबसे बड़ा नियम वाणी पर नियन्त्रण या संयम का है—कम बोलें, सही बोलें । यह नियम तो प्रत्येक व्यक्ति को लेना चाहिए ।

अंत में भगवान शंकराचार्य द्वारा रची गई ‘षट्पदी’ की कुछ पक्तियों का मानसिक जप अवश्य करें—

अविनयमपनय विष्णो दमय मन: शमय विषयमृगतृष्णाम् ।
भूतदयां विस्तारय तारय संसारसागरत: ।।

अर्थात्—हे भगवन् ! मेरी उद्दडता दूर कीजिये, मेरे मन का दमन कीजिये और विषयों की मृगतृष्णा को शान्त कर दीजिये, प्राणियों के प्रति मेरा दयाभाव बढ़ाइये और इस संसार-समुद्र से मुझे पार लगाइये ।

सत्यपि भेदापगमे नाथ तवाहं न मामकीनस्त्वम् ।
सामुद्रो हि तरंग: क्वचन समुद्रो न तारंग: ।।

अर्थात्—हे नाथ ! मुझमें और आपमें भेद न होने पर भी मैं ही आपका हूँ, आप मेरे नहीं हैं; क्योंकि तरंग ही समुद्र की होती है, तरंग का समुद्र कहीं नहीं होता है ।

इस तरह जगत के पालनहार भगवान विष्णु का भक्तिपूर्वक पूजन कर लेने से मनुष्य को ज्ञान और अंत में मोक्ष प्राप्त हो जाता है ।

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