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गुरु-भक्ति से युगल स्वरूप के दर्शन : भक्ति कथा
युगलस्वरूप के साक्षात् दर्शन करने से श्रीविट्ठलविपुलदेव के नेत्र स्तब्ध और देह जड़ हो गई, नेत्रों से प्रेमाश्रु बहने लगे । मुख से बोल निकले—‘हे रासेश्वरी ! आप करुणा करके मुझे अपनी नित्यलीला में स्थान दो । अब मेरे प्राण संसार में नहीं रहना चाहते हैं ।’
भगवत्सेवा से बढ़कर है संत-सेवा
गृहस्थ में रहकर यदि मनुष्य अपने वर्णाश्रम धर्म के अनुसार जीविका उपार्जन करता हुआ भगवान के भजन के साथ संत-सेवा और दान-पुण्य आदि कर्म करता रहे तो इससे भगवान बहुत प्रसन्न होते हैं ।
नामदेवजी की अद्भुत परीक्षा
नामदेवजी विसोबा के पांव इधर-उधर करने लगे किन्तु वे जहां भी विसोबा का पांव रखते थे वहीं पर शिवलिंग प्रकट हो जाता था और इस प्रकार सारा मन्दिर शिवलिंग से भर गया । नामदेव यह देखकर आश्चर्य में पड़ गये और गुरु के चरणों में गिर पड़े ।
पुण्डरीक जिसके लिए भगवान श्रीकृष्ण ईंट पर खड़े हैं
महाराष्ट्र के शोलापुर में चन्द्रभागा (भीमा) नदी के तट पर पंढरपुर मन्दिर है जहां श्रीकृष्ण पण्ढरीनाथ, विट्ठल, विठोबा और पांडुरंग के नाम से जाने जाते हैं और महाराष्ट्र के संतों के आराध्य हैं । यह महाराष्ट्र का प्रधान तीर्थ है ।
एक यशोदा कलियुग की
मां लीलावती और उसके बालकृष्ण दोनों ही लाड़ लड़ाते हुए एक-दूसरे की इच्छा पूरी करने लगे । लीलावती ने सदा-सदा के लिए अपने बालकृष्ण को पा लिया और बालकृष्ण ने भी उसका दुग्धपान कर उसे कलियुग में दूसरी यशोदा मां का दर्जा दे दिया ।
भगवान रंगनाथ की प्रेम-पुजारिन आण्डाल
जैसे ही आण्डाल ने मन्दिर में प्रवेश किया, वह भगवान की शेषशय्या पर चढ़ गयी । चारों ओर दिव्य प्रकाश फैल गया और लोगों के देखते-ही-देखते आण्डाल सबके सामने भगवान श्रीरंगनाथ में विलीन हो गयी ।
अहंकार से बचने के लिए क्या कहती है गीता
अर्जुन को लगता था कि भगवान श्रीकृष्ण का सबसे लाड़ला मैं ही हूँ । उन्होंने मेरे प्रेम के वश ही अपनी बहिन सुभद्रा को मुझे सौंप दिया है, इसीलिए युद्धक्षेत्र में वे मेरे सारथि बने । यहां तक कि रणभूमि में स्वयं अपने हाथों से मेरे घोड़ों के घाव तक भी धोते रहे । यद्यपि मैं उनको प्रसन्न करने के लिए कुछ नहीं करता फिर भी मुझे सुखी करने में उन्हें बड़ा सुख मिलता है ।
भगवान कहां रहते हैं
मनुष्य की आत्मा में स्थित सत्यस्वरूप परमात्मा उसे अच्छे-बुरे की पहचान करा देता है । इसी बात को कबीरदासजी ने इस प्रकार कहा है—‘तेरा साहिब है घर मांही, बाहर नैना क्यों खोले ।’
वैशाखमास में सत्तू दान की महिमा
युधिष्ठिर को राजसूय यज्ञ का वह पुण्य क्यों नहीं मिला जो एक ब्राह्मण परिवार ने भूखे अतिथि को केवल सत्तू के दान से प्राप्त किया ।
रात्रि में सोते समय करें यह उपाय, जाग्रत होंगी आन्तरिक शक्तियां
इस प्रयोग का विलक्षण प्रभाव यह होगा कि मां जगदम्बा तुमसे प्रेम करेंगी, तुम उन्हें भूल भी जाओ पर वे तुम्हें कभी नहीं भूलेंगी; क्योंकि पुत्र चाहें कुपुत्र क्यों न हो, माता कभी कुमाता नहीं होती है।