भगवान शंकर के पूर्णावतार काल भैरव

भैरव: पूर्णरूपो हि शंकरस्य परात्मन:’ । (शिवपुराण)

भगवान शंकर के पूर्णावतार काल भैरव का अवतार मार्गशीर्ष (अगहन) मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथी को हुआ था । इस दिन इनकी पूजा अत्यन्त फलदायी है । साथ ही मंगलवार की अष्टमी और चतुर्दशी को काल भैरव के दर्शन करने का विशेष महत्व है । इनकी उपासना से—

  • मनुष्य की विपत्तियों का नाश होता है,
  • कामनाओं की पूर्ति होती है,
  • लम्बी आयु मिलती है,
  • साथ ही मनुष्य यशस्वी और सुखी रहता है ।

ब्रह्माजी के गर्वहरण के लिए भगवान शंकर का भैरव अवतार

एक बार अति प्राचीनकाल में सुमेरु पर्वत पर ब्रह्मा, विष्णु, सभी देवता व ऋषिगण बैठे थे । उस समय ऋषियों ने ब्रह्माजी से पूछा—‘अविनाशी परम तत्त्व क्या है ?’ भगवान शिव की माया में मोहित होकर ब्रह्माजी अंहकार में भरकर आत्मप्रशंसा से बोले—‘मैं ही सारे जगत का कर्ता, धर्ता व हर्ता हूँ, मुझसे बड़ा कोई नहीं है ।’ सभा में उपस्थित विष्णुजी को उनकी आत्मप्रशंसा अच्छी नहीं लगी । उन्होंने स्वयं को जगत का कर्ता व परमपुरुष बताया । इस प्रकार ब्रह्मा व विष्णुजी में विवाद हो गया ।

जब सभी ने वेदों की राय जानीं तो उन्होंने शिव को ही परमतत्त्व बताया । इस पर ब्रह्मा और विष्णुजी ने वेदों पर बिगड़ते हुए कहा—‘भला, अशुभ वेषधारी, दिगम्बर, रात दिन शिवा के साथ रमण करने वाले शिव परमतत्त्व कैसे हो सकते हैं ?’ तब प्रणव ने भी मूर्तरूप धारणकर शिव को परमतत्त्व बताया । किन्तु इसे सुनकर भी ब्रह्मा व विष्णु का मोह दूर नहीं हुआ तो उस स्थान पर आकाश को छूने वाली एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई । उसे देखकर ब्रह्माजी पहले की तरह अहंकार में भरकर बोले—‘मुझसे डरो मत, तुम तो मेरे मस्तक से पैदा हुए थे । रोने के कारण मैंने तुम्हारा नाम रुद्र रखा था । तुम मेरी शरण में आ जाओ ।’

ब्रह्मा को दण्डित करने के लिए भगवान शंकर ने क्रोध में भरकर अपने तेज से ‘भैरव’ नामक दिव्य पुरुष उत्पन्न किया और बोले—

‘काल भी तुमसे डरेगा, इसलिए तुम्हारा नाम ‘काल भैरव’ होगा । तुम काल के समान शोभायमान हो, इसलिए तुम्हारा नाम ‘कालराज’ होगा । तुम क्रोध में दुष्टों का मर्दन करोगे, इसलिए तुम्हारा नाम ‘आमर्दक’ होगा । भक्तों के पापों को दूर करने के कारण ‘पापभक्षण’ कहलाओगे । सबसे पहले तुम इस ब्रह्मा को दण्ड दो । सभी पुरियों में श्रेष्ठ मेरी जो मुक्तिदायिनी काशीपुरी है, आज से तुम वहां उसके अधिपति बनकर रहोगे ।’

भगवान शंकर की आज्ञा पाकर काल भैरव ने अपनी बायीं ऊंगली के नाखून से ब्रह्माजी के पांचवें मुख को काट डाला । (पहले ब्रह्माजी के पांच मुख थे) । ब्रह्मा-विष्णु भयभीत होकर शंकरजी के शतरुद्रिय मन्त्रों का जप करने लगे और उनका अंहकार नष्ट हो गया ।

वह पांचवा मुख (कपाल) काल भैरव के हाथ में आकर चिपक गया । ब्रह्मदेव का सिर काटने से ब्रह्महत्या स्त्री रूप धारण करके उनका पीछा करने लगी । भगवान शंकर ने उन्हें प्रायश्चित के रूप में कापालिक व्रत धारण करने व भिक्षावृत्ति अपनाने के लिए कहा ।

भिक्षाटन करते हुए भगवान भैरव घूमते-घूमते वाराणसीपुरी के ‘कपालमोचन तीर्थ’ पहुंचे । वहां आते ही उनके हाथ से कपाल छूटकर गिर गया और ब्रह्महत्या पाताल में प्रविष्ट हो गयी । तब से इस तीर्थ में आकर स्नान करने व देवताओं व पितरों का तर्पण करने से मनुष्य को ब्रह्महत्या से छुटकारा मिल जाता है ।

भगवान शंकर के भैरव अवतार के प्रसंग के पाठ से मनुष्य जेल आदि के भयंकर संकट से छूट जाता है ।

काशीपुरी (वाराणसी) के अधिपति हैं काल भैरव

कालभैरव काशीपुरी (वाराणसी) के अधिपति, क्षेत्रपाल व नगरपाल हैं । वाराणसी की आठ दिशाओं में आठ भैरव स्थित हैं, जिनके नाम हैं—

  1. रुरु भैरव,
  2. चण्ड भैरव,
  3. असितांग भैरव,
  4. कपाल भैरव,
  5. क्रोध भैरव,
  6. उन्मत्त भैरव,
  7. संहार भैरव, व  
  8. भीषण भैरव ।

भगवान काल भैरव को प्रिय पूजन-सामग्री

रोली, सिन्दूर, रक्तचंदन, लाल फूल, गुड़, उड़द का बड़ा, धान का लावा (खील), गन्ने का रस, तिल का तेल, लोहबान, लाल वस्त्र, केला, सरसों का तेल—इन सामग्रियों से काल भैरव का पूजन करने से वे शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं ।

प्रदक्षिणा

प्रतिदिन भैरवजी की आठ परिक्रमा करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं ।

51 शक्तिपीठों की रक्षा करते हैं काल भैरव

देवी के 51 शक्तिपीठों की रक्षा कालभैरव भिन्न-भिन्न नाम व रूप धारण करके करते हैं और भक्तों की प्रार्थना मां दुर्गा तक पहुंचाते हैं ।

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