एकाम्रेश्वर जहां बालुका-लिंग में विराजते हैं शिव
एकाम्रेश्वर का क्षितिलिंग दक्षिण भारत में शिवकांची में स्थित है । एकाम्रेश्वर-लिंग पार्वती जी द्वारा निर्मित बालुका-लिंग है, जिसकी वे पूजा करती थीं ।
भगवान शंकर का प्रिय वाहन नन्दी
रावण की उपहासपूर्ण बातें सुनकर नन्दी ने उसे शाप देते हुए कहा--’सारे संसार को रुलाने वाले रावण ! मैं तुझे श्राप देता हूँ कि जब कोई तपस्वी श्रेष्ठ मानव वानरों के साथ मुझे आगे करके तुम पर आक्रमण करेगा, तब तुम्हारी मृत्यु निश्चित है । तुम्हारे ये सब सिर भूमि पर कट-कट कर धूल धूसरित हो जाएंगे ।’
भगवान शंकर ने सोने की लंका रावण को क्यों दी ?
पार्वती जी को भी आश्चर्य हुआ कि मेरे पति भी कितने सरल हैं, जो उन्होंने मेरा ही दान कर दिया । ब्रह्मविद्या पार्वती को लेकर जब रावण चलने लगा तो वे सहायता के लिए भगवान श्रीहरि का ध्यान करने लगीं । रावण जैसे कपटी से निपटने के लिए श्रीहरि (श्रीकृष्ण) ही उपयुक्त हैं; क्योंकि वो भी बड़े छलिया हैं । कपटियों से कैसे निपटा जाता है, वे अच्छी तरह से जानते हैं ?
भगवान शिव का विशेष वाद्ययंत्र : डमरु
शिव जब डमरु बजा कर ताडंव नृत्य करते हैं तो प्रकृति आनंद से भर जाती है । और संसार के दु:ख को दूर कर नई शुरुआत का संदेश देते हैं । डमरु की धुल शिथिल पड़े मन को पुन: जाग्रत कर देती है ।
काशी तो काशी है, काशी अविनाशी है
‘काशी’ इस शब्द का अर्थ है—जहां शिवस्वरूप ब्रह्मज्योति प्रकाशित होती है । माना जाता है कि यहां देह-त्याग के समय भगवान शंकर मरणोन्मुख प्राणी के कान में तारक-मंत्र सुनाते हैं, उससे जीव को तत्त्वज्ञान हो जाता है और उसके सामने शिवस्वरूप ब्रह्म प्रकाशित हो जाता है । ब्रह्म में लीन होना ही अमृत पद प्राप्त कर लेना या मोक्ष है ।
भगवान शंकर के स्वरूप में इतनी विचित्रता क्यों है ?
एक बार श्रीराधा ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा—‘प्रभो ! भगवान शंकर के बारे में मेरे कुछ संदेह हैं, जिनका निवारण आप कीजिए । इनका उत्तर जानने की मेरे मन में बहुत अधिक इच्छा जाग उठी है ।’ श्रीराधा ने भगवान श्रीकृष्ण से क्या प्रश्न किए और भगवान ने उसका क्या उत्तर दिया; यही इस लेख का विषय है ।
भगवान शंकर द्वारा पार्वती जी के पातिव्रत्य की परीक्षा
जिस प्रकार एक कुम्हार आंवे में से घड़े को निकाल कर उसे चारों तरफ से ठोक-बजा कर देखता है कि घड़ा पूरी तरह पक कर तैयार है या नहीं; उसी प्रकार परमात्मा किसी भी प्राणी को अपनाने से पहले उसकी परीक्षा कर देखते हैं कि यह जीव ‘मेरे द्वारा अपनाए जाने के लायक’ हुआ है या नहीं ? ऐसी परीक्षा जीव को ही नहीं वरन् भगवान की सहधर्मिणियों को भी देनी पड़ती है ।
हरितालिका तीज : व्रत-पूजन विधि व मंत्र
हरितालिका तीज व्रत भाद्रप्रद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है । पार्वती जी ने कठोर तप के द्वारा इस दिन भगवान शिव को प्राप्त किया था । कुंवारी लड़कियों द्वारा इस व्रत को करने से उन्हें मनचाहे पति की प्राप्ति होती है और विवाहित स्त्रियां इस व्रत को करती हैं तो उन्हें अखण्ड सुहाग की प्राप्ति होती है । यह कठिन व्रत बहुत ही त्याग और निष्ठा के साथ किया जाता है । इस व्रत में मुख्य रूप से शिव-पार्वती और गणेश जी का पूजन किया जाता है ।
द्वादश ज्योतिर्लिंग : स्तोत्र व महिमा
शिव पुराण के अनुसार भूतभावन भगवान शंकर मनुष्यों के कल्याण के लिए विभिन्न तीर्थों में लिंग रूप से वास करते हैं । जिस-जिस पुण्य-स्थलों में भक्तों ने उनकी आराधना की, उन स्थानों पर वे प्रकट होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा के लिए स्थित हो गए । वैसे तो शिवलिंग असंख्य हैं, फिर भी इनमें द्वादश (१२) ज्योतिर्लिंग ही प्रधान हैं ।
पितृ पूजा या पितर कर्म क्यों करना चाहिए ?
श्राद्ध से केवल मनुष्य की और पितरों की ही संतुष्टि नहीं होती है; वरन् श्राद्ध करने वाला ब्रह्मा से लेकर तृण (घास-फूंस) तक समस्त सृष्टि को संतुष्ट कर देता है । श्राद्ध द्वारा तृप्त हुए पितर मनुष्य को मनोवांछित भोग प्रदान करते हैं । पितरों की पूजा से मनुष्य को पुष्टि, आयु, वीर्य, और लक्ष्मी की प्राप्ति होती है ।