‘हे गणेश! तुम्हीं समस्त समस्त देवगणों में एकमात्र गणपति हो, प्रिय विषयों के अधिपति होने से प्रियपति हो, और ऋद्धि-सिद्धि एवं निधियों के अधिष्ठाता होने से निधिपति हो; अत: हम भक्तगण तुम्हारा नाम-स्मरण, नामोच्चारण और आराधन करते हैं।’ (शुक्लयजुर्वेद २३।१९)

संसाररूपी दु:खालय में सभी प्राणी सुख की खोज में अनन्तकाल से भटक रहे हैं। मानव-हृदय अनन्त जन्मों की वासनाओं की कटुता से मलिन होता रहा है। उस मलिन-हृदय की स्वच्छता के लिए भगवान का नाम-स्मरण ही सर्वश्रेष्ठ साधन है। जिस प्रकार पित्त की अधिकता से कड़वी हुई जीभ की औषधि मिसरी है, उसी प्रकार पापों की दाहकता को मिटाने का अचूक उपाय भगवान के नामों का स्मरण करना है। हमारे ऋषि-मुनियों ने उपासना का सबसे सरल उपाय भगवान के नामों का जप बतलाया है।

सभी रसायन हम करी नहीं नाम सम कोय।
रंचक घट मैं संचरै, सब तन कंचन होय।।

कलियुग का एक विशेष गुण है–’कलियुग केवल नाम अधारा।’ कलिकाल में भगवान की आराधना की सारी पद्धतियों में उनके नामों का उच्चारण करना ही भगवान को प्रसन्न करने की  सबसे सरल रीति है।

जिस प्रकार भगवान में अनन्त शक्तियां होती हैं, वैसे ही उनके नाम अनन्त शक्तियों से भरे जादू की पिटारी हैं। भगवान श्रीगणेश ‘विघ्नकर्ता’ और ‘विघ्नहर्ता’ दोनों ही हैं। प्रतिदिन चाहे हम गणेशजी की विधिवत् पूजा करें अथवा उनके नामों के पाठ-स्मरण से अपने दिन की शुरुआत करें; श्रीगणेश को प्रसन्नकर हम कार्यों में सफलता, विवेक-बुद्धि एवं सुख-शान्ति व समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।

गणेशजी के अनन्त नाम हैं। यहां श्रीगणेशपुराण के उपासनाखण्ड में वर्णित श्रीगणेश के 108 नाम दिए गए हैं। मंगलवार, बुधवार, चतुर्थी तिथि (संकष्टी) को; या हो सके तो प्रतिदिन सुबह भगवान गणपति का स्मरण करते हुए इन नामों का पाठ किया जाए तो भगवान श्रीगणेश उपासक पर प्रसन्न हो जाते हैं।

विघ्ननिवारक व ऐश्वर्यदाता श्रीगणपति के ये 108 नाम (अष्टोत्तरशतनाम)

  1. गणेश्वरगणों के स्वामी।
  2. गणक्रीडगणों के साथ क्रीडा करने वाले।
  3. महागणपतिमहागणपति।
  4. विश्वकर्तासबको उत्पन्न करने वाले।
  5. विश्वमुखसभी ओर मुख वाले।
  6. दुर्जयअजेय।
  7. धूर्जयजीतने को उत्सुक।
  8. जयजय।
  9. सुरुपसुन्दर रूप वाले।
  10. सर्वनेत्राधिवाससबकी आंखों में बसने वाले।
  11. वीरासनाश्रयवीरासन में विराजमान।
  12. योगाधिपयोग के अधिष्ठाता।
  13. तारकस्थतारकमन्त्र में निवास करने वाले।
  14. पुरुषपुरुष।
  15. गजकर्णकहाथी के कान वाले।
  16. चित्रांगदीप्तिमान अंगों वाले।
  17. श्यामदशनश्याम आभायुक्त दांत वाले।
  18. भालचन्द्रमस्तक पर चन्द्रकला धारण करने वाले।
  19. चतुर्भुजचार भुजाओं वाले।
  20. शम्भुतेजशम्भु के तेज से उत्पन्न।
  21. यज्ञकाययज्ञस्वरूप।
  22. सर्वात्मासबके आत्मस्वरूप।
  23. सामबृंहितसामवेद में गाए गए।
  24. कुलाचलांसकुलपर्वतों के समान कन्धों वाले।
  25. व्योमनाभिआकाश की सी नाभि वाले।
  26. कल्पद्रुमवनालयकल्पवृक्ष के वन में रहने वाले।
  27. निम्ननाभिगहरी नाभि वाले।
  28. स्थूलकुक्षिमोटे पेट वाले।
  29. पीनवक्षाचौड़ी छाती वाले।
  30. बृहद्भुजलम्बी भुजाओं वाले।
  31. पीनस्कन्धचौड़े कन्धों वाले।
  32. कम्बुकण्ठशंख के समान कण्ठ वाले।
  33. लम्बोष्ठबड़ेबड़ेओठवाले।
  34. लम्बनासिकलम्बी नाक वाले।
  35. सर्वावयवसम्पूर्णसभी अंगों से परिपूर्ण।
  36. सर्वलक्षणलक्षितसभी शुभ लक्षणों से युक्त।
  37. इक्षुचापधरईख के धनुष को धारण करने वाले।
  38. शूलीशूल धारण करने वाले।
  39. कान्तिकन्दलिताश्रयशोभायमान गण्डस्थल वाले।
  40. अक्षमालाधरअक्षमाला धारण करने वाले।
  41. ज्ञानमुद्रावान्ज्ञानमुद्रा में स्थित।
  42. विजयावहविजयप्रदाता।
  43. कामिनीकामनाकाममालिनीकेलिलालितकामिनियों की कामनारूपी कामकला की क्रीडा से प्रसन्न होने वाले।
  44. अमोघसिद्धिअमोघ सिद्धिस्वरूप।
  45. आधारआधारस्वरूप।
  46. आधाराधेयवर्जितजिनका कोई आधार नहीं और जो किसी पर आश्रित नहीं।
  47. इन्दीवरदलश्यामनीलकमलपत्र के समान श्याम वर्णवाले।
  48. इन्दुमण्डलनिर्मलचन्द्रमण्डल के समान निर्मल।
  49. कर्मसाक्षीसभी कर्मों के साक्षी।
  50. कर्मकर्तासभी कर्मों की मूलशक्ति।
  51. कर्माकर्मफलप्रदकर्म और अकर्म (पाप) का फल देने वाले।
  52. कमण्डलुधरकमण्डलु धारण करने वाले।
  53. कल्पनियम के स्वरूप।
  54. कपर्दीकेशसज्जायुक्त।
  55. कटिसूत्रभृत्कमर में मेखला धारण किए हुए।
  56. कारुण्यदेहकरुणामूर्ति।
  57. कपिलरक्त आभायुक्त।
  58. गुह्यागमनिरुपितरहस्यमय तन्त्रों में वर्णित।
  59. गुहाशयभक्तों के हृदय में विराजमान।
  60. गुहाब्धिस्थहृदयसमुद्र में स्थित।
  61. घटकुम्भघड़े के समान गण्डस्थल वाले।
  62. घटोदरघड़े के समान पेट वाले।
  63. पूर्णानन्दपूर्णानन्दस्वरूप।
  64. परानन्दआनन्द की पराकाष्ठा।
  65. धनदसमृद्धि देने वाले।
  66. धरणीधरपृथ्वी को धारण करने वाले।
  67. बृहत्तमसबसे बड़े।
  68. ब्रह्मपरपरब्रह्म।
  69. ब्रह्मण्यब्रह्मानुवर्ती।
  70. ब्रह्मवित्प्रियब्रह्मज्ञानियों के प्रिय।
  71. भव्यसुन्दर।
  72. भूतालयभूतसमूह के आश्रय।
  73. भोगदाताभोग प्रदान करने वाले।
  74. महामनाजिनका हृदय विशाल है।
  75. वरेण्यश्रेष्ठ।
  76. वामदेवसुन्दर स्वरूप वाले।
  77. वन्द्यवन्दन करने योग्य।
  78. वज्रनिवारणक्लेशों से रक्षा करने वाले।
  79. विश्वकर्तासर्वस्रष्टा, सब कुछ करने वाले।
  80. विश्वचक्षुसब कुछ देखने वाले।
  81. हवनयज्ञस्वरूप।
  82. हव्यकव्यभुक्हव्य और कव्य के भोक्ता।
  83. स्वतन्त्रस्वाधीन।
  84. सत्यसंकल्पसंकल्पवान्।
  85. सौभाग्यवर्धनसौभाग्य बढ़ाने वाले।
  86. कीर्तिदकीर्ति देने वाले।
  87. शोकहारीशोक मिटाने वाले।
  88. त्रिवर्गफलदायकधर्मअर्थकाम तीनों पुरुषार्थों के प्रदाता।
  89. चतुर्बाहुचार भुजाओं वाले।
  90. चतुर्दन्तचार दांतों वाले।
  91. चतुर्थीतिथिसम्भवचतुर्थी तिथि को अवतार ग्रहण करने वाले।
  92. सहस्त्रशीर्षा पुरुषअनन्तरूप में प्रकट विराट् पुरुष।
  93. सहस्त्राक्षअनन्त दृष्टिसम्पन्न।
  94. सहस्त्रपात्अनन्त गतिसम्पन्न।
  95. कामरूपइच्छानुसार रूप ग्रहण करने वाले।
  96. कामगतिइच्छानुसार गति वाले।
  97. द्विरददो दांत वाले।
  98. द्वीपरक्षकसातों द्वीपों (धरती) के रक्षक।
  99. क्षेत्राधिपसमस्त क्षेत्र के अधिष्ठाता।
  100. क्षमाभर्ताक्षमा धारण करने वाले।
  101. लयस्थगानप्रिय।
  102. लड्डुकप्रियजिन्हें लड्डू प्रिय हैं।
  103. प्रतिवादिमुखस्तम्भविरोधी का मुख बन्द कर देने वाले।
  104. दुष्टचित्तप्रसादनचित्त के दोषों को मिटा देने वाले।
  105. भगवान्अनन्त, छहों ऐश्वर्यसम्पन्न।
  106. भक्तिसुलभभक्ति द्वारा शीघ्र प्राप्त होने वाले।
  107. याज्ञिकयज्ञप्रक्रिया के पूर्ण ज्ञाता।
  108. याजकप्रिय–जिन्हें यज्ञकर्ता प्रिय हैं।

सर्वविघ्नहरण गणेश के 108 नामों के पाठ का फल

▪️ श्रीगणेश के 108 नामों का पाठ समस्त पापों का नाशक है।
▪️ 108 नामों का पाठ करने वाले मनुष्य के यहां समस्त प्रकार की ऋद्धि-सिद्धि का भण्डार भरा रहता है। मनुष्य धन-धान्य आदि सभी अभीष्ट वस्तुएं प्राप्त कर लेता है और अंत में मोक्ष प्राप्त करता है।
▪️ गणेशजी के नाम-स्मरण से मनुष्य का शत्रु भय दूर हो जाता है।
▪️ विघ्नहर्ता गणेश प्रसन्न होकर कार्यों में आने वाली रुकावटों को दूर करते हैं। मनुष्य सभी कार्यों में सफलता व सिद्धि प्राप्त करता है।
▪️ भगवान श्रीगणेश ‘विघ्नकर्ता’ और ‘विघ्नहर्ता’ दोनों ही हैं। रुष्ट होने पर वे विघ्न उत्पन्न कर देते हैं और जहां उनका ध्यान-पूजन श्रद्धाभक्ति से होता है वहां विघ्न, व्याधि और वास्तुप्रदत्त दोष व्यक्ति को नहीं सताते हैं। विघ्न’ पर श्रीगणेश का ही शासन चलता है अत: वे ‘विघ्नेश’ कहलाते हैं।
▪️ विद्या-वारिधि तथा बुद्धि के देव गणेश की प्रसन्नता से मनुष्य का अज्ञान व अविवेक दूर होता है।
▪️ श्रीगणेश प्रसन्न होकर समस्त जगत को उपासक के वशीभूत कर देते हैं और उसे कीर्ति प्रदान करते हैं।
▪️ नाम-स्मरण से मनुष्य के समस्त दु:ख दूर हो जाते हैं, विवेक उत्पन्न होता है। लम्बे समय तक नाम-स्मरण करने से मनुष्य की वासना छूट जाती है और भगवान की शक्ति का आश्रय लेकर मनुष्य अनन्त सुख को प्राप्त करता है।

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