bhagwan shri krishna iskcon darshan

श्रीकृष्ण (श्रीहरि) के समान कोई देवता नहीं है और एकादशी के समान कोई तिथि नहीं है । जैसे प्रकाश-तत्त्वों में सूर्य और नदियों में गंगा प्रमुख हैं; वैसे ही व्रतों में सर्वश्रेष्ठ व्रत एकादशी-व्रत को माना गया है । इस तिथि को जो कुछ भी दान दिया जाता है या पूजन किया जाता है, वह सब भगवान माधव के पूजित होने से पूर्णता को प्राप्त होता है और अनन्त फल देता है  । संसार के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण पूजित होने पर संतुष्ट होकर प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं और मनुष्य के सात जन्मों के कायिक, वाचिक और मानसिक पाप दूर हो जाते हैं । इस लोक में प्रचुर भोग का उपयोग करके मनुष्य भगवान के धाम को प्राप्त होता है ।

इस बात का रखें ध्यान

एकादशी तिथि को पूजन और व्रत करने वाले मनुष्य को काम, क्रोध, अहंकार, लोभ और चुगली जैसी बुराइयों का त्याग कर इन्द्रिय-संयम का पालन करना चाहिए; तभी उसका व्रत और पूजा पूर्ण होगी; अन्यथा वह निष्फल हो जाएगी । व्रत-पूजन पूरी श्रद्धा और भाव से करना चाहिए ।

एकादशी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा : विधि

▪️एक तांबे, स्टील या चांदी का जो भी पात्र हो—को लेकर जल से भर लें और उसमें चंदन व पंचरत्न डाल कर कलश की स्थापना करें । पंचरत्न न हों तो चांदी का सिक्का डाल दें । कलश को फूलमाला से सजा दें । उसके ऊपर तांबे की ही एक प्लेट में गेहूँ भर कर रखें । 

▪️इस कलश पर भगवान बालकृष्ण या श्रीकृष्ण की प्रतिमा स्थापित करें ।

▪️हाथ में फूल लेकर बालकृष्ण का इस प्रकार ध्यान करें—

करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम्।
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि।।

अर्थात्—जिन्होंने अपने करकमल से चरणकमल को पकड़ कर उसके अंगूठे को अपने मुखकमल में डाल रखा है और जो वटवृक्ष के एक पर्णपुट (पत्ते के दोने) पर शयन कर रहे हैं, ऐसे बाल मुकुन्द का मैं मन से स्मरण करता हूँ।

  • इसके बाद भगवान के विग्रह को पहले पंचामृत से फिर चंदनयुक्त जल से स्नान कराएं । तत्पश्चात् शुद्ध जल से स्नान कराएं ।
  • भगवान के विग्रह को स्वच्छ वस्त्र से पौंछ कर उनके समस्त अंगों में इत्र का लेप करें ।
  • भगवान को कलश पर ही विराजमान कर दें ।
  • फिर भगवान को वस्त्र और उपवस्त्र धारण कराएं । उपवस्त्र के लिए कलावा अर्पित करें ।
  • भगवान को यज्ञोपवीत अर्पण करें ।
  • भगवान को कपूर-केसर युक्त चंदन का तिलक व कुंकुम लगाएं ।
  • ऋतु अनुसार सुगंधित पुष्प, पुष्पमाला व मंजरी सहित कोमल तुलसीदल अर्पित करें ।
  • पूजा में यदि भगवान की खड़ाऊं (जूतियां) भी रखी है तो उन्हें भी पोंछ कर चंदन लगा कर स्थापित करें ।
  • अब भगवान की विशेष अंग पूजा करें । इसके लिए सुन्दर व साबुत पुष्प ले लें—

‘दामोदराय नम:’ कह कर भगवान के दोनों चरणों पर पुष्प अर्पण करें ।
‘माधवाय नम:’ कह कर भगवान के दोनों घुटनों पर पुष्प चढ़ाएं ।
‘कामप्रदाय नम:’ कह कर भगवान की दोनों जांघों पर पुष्प चढ़ाएं ।
‘वामनमूर्तये नम:’ कह कर भगवान के कटिप्रदेश पर पुष्प चढ़ाएं ।
‘पद्मनाभाय नम:’ कह कर भगवान की नाभि पर पुष्प चढ़ाएं ।
‘विश्वमूर्तये नम:’ कह कर भगवान के उदर (पेट) पर पुष्प अर्पित करें ।
‘ज्ञानगम्यायय नम:’ कह कर भगवान के हृदय पर पुष्प अर्पित करें ।
‘वैकुण्ठगामिने नम:’ कह कर भगवान के कण्ठ पर पुष्प अर्पित करें ।
‘सहस्त्रबाहवे नम:’ कह कर भगवान के बाहुओं पर पुष्प अर्पित करें ।
‘योगरुपिणे नम:’ कह कर भगवान के नेत्रों से पुष्प लगा कर अर्पित करें ।
‘सहस्त्रशीर्ष्णे नम:’ कह कर भगवान के सिर पर पुष्प अर्पित करें ।
‘दिव्यरुपिणे नम:’ कह कर भगवान के सम्पूर्ण अंगों पर पुष्प चढ़ा दें ।

▪️अब भगवान श्रीकृष्ण के नामों का उच्चारण करते हुए अर्घ्य दें। इसके लिए शंख में जल भरकर उस पर नारियल रखकर उसमें रक्षा-सूत्र लपेट दें फिर दोनों हाथों में वह शंख लेकर भगवान को अर्घ्य प्रदान करें ।

अर्घ्यदान का मंत्र है—

कृष्ण कृष्ण कृपालुस्त्वम गतीनां गतिर्भव ।
संसारार्णवमग्नानां प्रसीद पुरुषोत्तम ।।
नमस्ते पुण्डरीकाक्ष नमस्ते विश्वभावन ।
सुब्रह्मण्य नमस्तेऽस्तु महापुरुष पूर्वज ।।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं लक्ष्म्या सह जगत्पते ।।

अर्थात्—सच्चिदानन्दस्वरूप श्रीकृष्ण ! आप बड़े दयालु हैं । हम आश्रयहीन जीवों के आप आश्रयदाता होइये । पुरुषोत्तम ! हम संसार-समुद्र में डूब रहे हैं, आप हम पर प्रसन्न होइए । कमलनयन ! आपको नमस्कार है, विश्वभावन ! आपको नमस्कार है । सुब्रह्मण्य ! महापुरुष ! सबके पूर्वज ! आपको नमस्कार है । जगत्पते !  आप लक्ष्मीजी के साथ मेरा दिया हुआ अर्घ्य स्वीकार करें ।

भगवान को नारियल से अर्घ्य देने पर पुत्र की प्राप्ति या पुत्र से सुख मिलता है, धर्म, अर्थ और काम की सिद्धि के लिए बिजौरे (नीबू) का अर्घ्य देना चाहिए । अनार का अर्घ्य देने पर हर प्रकार की दरिद्रता का नाश होता है ।

▪️ इसके बाद भगवान को तरह-तरह के रसों से पूर्ण नैवेद्य और ऋतुफल अर्पित करें ।

▪️ भगवान को पान का बीड़ा (ताम्बूल) निवेदित करें ।

▪️ पूजा में घी का या तिल के तेल का दीपक जलाएं । धूप निवेदित करें ।

▪️ भगवान की आरती उतारते समय चार बार चरणों में, दो बार नाभि पर, एक बार मुखमण्डल पर व सात बार सभी अंगों पर घुमाने का विधान है । इसके बाद शंख में जल लेकर भगवान के चारों ओर घुमाकर अपने ऊपर तथा अन्य सदस्यों पर जल छोड़ दें । 

▪️ फिर ठाकुरजी को साष्टांग प्रणाम करें ।

▪️ अंत में प्रार्थना करें—‘जगदीश्वर ! यदि आप सदा स्मरण करने पर मनुष्य के सब पाप हर लेते हैं तो देव ! मेरे दु:स्वप्न, अपशकुन, मानसिक चिन्ताएं, नरक का भय तथा दुर्गति सम्बन्धी सभी कष्ट दूर कीजिए । मेरे लिए इहलोक या परलोक में जो भय हैं, उनसे मेरी व मेरे परिवार की रक्षा कीजिए । आपको नमस्कार है । मेरी भक्ति सदा आपमें ही बनी रहे ।’

▪️ एकादशी व्रत में रात्रि जागरण का विशेष महत्व है । इसमें भगवान के भजनों का गायन, नृत्य और पुराणों की कथा सुनने का अनंत फल बताया गया है । स्वयं ही सद्-ग्रन्थों का अध्ययन करना भी बहुत पुण्यदायी माना गया है । 

पद्मपुराण में कहा गया है—‘श्रीहरि की प्रसन्नता के लिए जागरण करके मनुष्य पिता, माता और पत्नी—तीनों के कुलों का उद्धार कर देता है । समस्त यज्ञ और चारों वेद भी श्रीहरि के निमित्त किए जाने वाले जागरण के स्थान पर उपस्थित हो जाते हैं ।’

▪️ द्वादशी को प्रात:काल ब्राह्मण को भोजन देकर व्रत-पूजन  की समाप्ति होती है । 

इस प्रकार इस विशेष पूजन को करते समय मन में भगवान से यही प्रार्थना करें—

अज्ञानतिमिरान्धस्य व्रतेनानेन केशव ।
प्रसीद सुमुखो भूत्वा ज्ञानदृष्टि प्रदो भव ।।

‘हे केशव ! मैं अज्ञान रूपी रतौंधी से अंधा हो रहा हूँ । आप इस व्रत से प्रसन्न हों और मुझे ज्ञानदृष्टि प्रदान करें ।’

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