bhagwan vishnu on sheshnaag snake with laxmi devi

भगवान श्रीराम के वर से यज्ञसीताएं श्रीकृष्णावतार में गोपियों के रूप में उत्पन्न हुईं । एक दिन वे श्रीकृष्ण का दर्शन कर मोहित हो गईं और श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिए कोई व्रत पूछने के उद्देश्य से श्रीराधा के पास गईं ।

श्रीराधा ने गोपियों से कहा—‘श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिए तुम सब एकादशी-व्रत का अनुष्ठान करो । इससे श्रीहरि तुम्हारे वश में हो जाएंगे ।’

श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिए श्रीराधा द्वारा गोपियों को एकादशी व्रत की विधि, नियम और माहात्म्य बताना

श्रीराधा ने कहा—‘जैसे नागों में शेष, पक्षियों में गरुड़, देवताओं में विष्णु, वर्णों में ब्राह्मण, वृक्षों में पीपल तथा पत्रों में तुलसीदल श्रेष्ठ है, उसी प्रकार व्रतों में एकादशी तिथि सर्वोत्तम है ।

▪️ एकादशी व्रत का प्रारम्भ किसी भी एकादशी से किया जा सकता है । इसके लिए उत्पन्ना एकादशी की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि कोई भी शुभ कार्य जितनी जल्दी हो सके, प्रारम्भ कर देना चाहिए ।

▪️ प्राय: कई बार एकादशी दो दिन हो जाती है । पहले दिन की एकादशी ‘स्मार्तों’ अर्थात् गृहस्थों के लिए तथा दूसरे दिन की एकादशी ‘वैष्णवों’ अर्थात् साधुजनों के लिए है । दशमी युक्त एकादशी में उपवास नहीं करना चाहिए । यह संतान के लिए अनिष्टकारी होती है । सूर्योदय के समय दशमी तथा दिन भर एकादशी हो तो द्वादशी को उपवास करके त्रयोदशी को पारण करना चाहिए ।

▪️ एकादशी के दिन प्रात:काल स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करे। तन-मन व विचारों को शुद्ध रखना चाहिए । 

▪️ वैसे तो नदी का स्नान सर्वश्रेष्ठ माना गया है; परन्तु आज के समय में यह हर किसी के लिए संभव नही है । इसके लिए शास्त्रों में कहा गया है—परमात्मा का आश्रय लेकर धैर्य रूपी कुण्ड और सत्य रूपी जल के मानस तीर्थ में स्नान करना चाहिए इससे मनुष्य में सरलता, मृदुता, सत्यवादिता, इंद्रिय संयम व मन की शांति आती है ।

▪️ सबसे पहले व्रती को भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए—‘हे केशव ! एकादशी-व्रत के पालन में मेरी इंद्रियों द्वारा कोई गलती हो जाए या मेरे दांतों में पहले से अन्न अटका हो तो हे करुणामय ! आप इन सब बातों को क्षमा कर दें ।’

इस दिन नियम-संयम में रह कर वैराग्यपूर्ण ढ़ंग से भगवान के ध्यान में रहना चाहिए । इस दिन भोग-विलास से दूर रहें, इससे व्रत-भंग हो जाता है । पांचों इन्द्रियों को उनके विषयों से दूर रखकर संयमपूर्वक रहे—

पांचों इन्द्री व्रत करीजै ।
पलक झांप नैनन पट दीजै ।।
इत उत मनवा नांहि चलावे ।
आंखन को नहीं रूप दिखावे ।।
श्रवण शब्द न खइये भाई ।
त्वचा स्पर्श न अंग लगाई ।।
षटरस स्वाद न जिह्वा दीजै ।
नासा गंध सुगंध न लीजै ।।
ऐसा व्रत करे सो वर्ता ।
मुक्त होय ग्यारस का कर्ता ।।
ऐसा बरत उतारे पारा ।
छौनां तिरत लगे नहिं बारा ।। (श्रीसरसमाधुरीशरणजी महाराज)

▪️ भगवान श्रीकृष्ण/विष्णु का पंचामृत स्नान कराए । सुंदर पुष्पों से पूजन करे, नैवेद्य लगाएं और दीप जलाए, आरती कर प्रदक्षिणा करे ।

▪️ एकादशी माहात्म्य की कथा संभव हो तो ब्राह्मण से सुने अथवा स्वयं पाठ करे ।

▪️ एकादशी-व्रत में उपवास, रात्रि जागरण व हरि-कीर्तन की विशेष महिमा है ।

▪️ रात्रि में जागरण कर श्रीकृष्ण सम्बन्धी पदों, भजनों और स्तोत्रों (गीता और विष्णु सहस्त्रनाम) का गान (कीर्तन) करे । पद्मपुराण में कहा गया है—‘श्रीहरि की प्रसन्नता के लिए जागरण करके मनुष्य पिता, माता और पत्नी—तीनों के कुलों का उद्धार कर देता है । समस्त यज्ञ और चारों वेद भी श्रीहरि के निमित्त किए जाने वाले जागरण के स्थान पर उपस्थित हो जाते हैं ।’

▪️ द्वादशी को प्रात:काल ब्राह्मण को भोजन देकर व्रत-पूजन  की समाप्ति होती है । 

इस प्रकार इस विशेष पूजन को करते समय मन में भगवान से यही प्रार्थना करें—

अज्ञानतिमिरान्धस्य व्रतेनानेन केशव ।
प्रसीद सुमुखो भूत्वा ज्ञानदृष्टि प्रदो भव ।।

‘हे केशव ! मैं अज्ञान रूपी रतौंधी से अंधा हो रहा हूँ । आप इस व्रत से प्रसन्न हों और मुझे ज्ञानदृष्टि प्रदान करें ।’

▪️ एकादशी व्रत करने वाले को इन चीजों का त्याग कर देना चाहिए—१. बार-बार जल पीना, २. जुआ (ताश खेलना), ३. दिन में सोना, ४. पान-गुटका चबाना, ४. दातुन करना, ५. दूसरों की निंदा, ६. चुगली, ७. चोरी, ८. रतिक्रीड़ा, ९. क्रोध, १०. हिंसा मारपीट, ११. झूठ बोलना ।

▪️ एकादशी-व्रत का यदि पूरे विधि-विधान से पालन करना हो तो दशमी को इन दस वस्तुओं का त्याग कर देना चाहिए—१. कांसे का बर्तन, २. मांस, ३. मसूर, ४. कोदो, ५. चना, ६. साग, ७. शहद, ८. दूसरे का अन्न, ९. दो बार भोजन, १०. मैथुन ।

▪️ एकादशी के दिन अन्न खाना निषिद्ध है, विशेष रूप से चावल (चावल से बना पोहा, लाई आदि) नहीं खाना चाहिए ।

▪️ एकादशी का व्रत कई प्रकार से किया जाता है । कुछ लोग निर्जल व्रत करते हैं, तो कुछ भगवान का तुलसीदल और चरणामृत लेकर इस व्रत का पारण कर लेते हैं । किन्तु गृहस्थ और सौभाग्यवती स्त्रियों को निर्जल व्रत नहीं करना चाहिए । 

▪️ गृहस्थों को व्रत इस प्रकार करना चाहिए—एक बार दूध, ठंडाई, बेल या नीबू की शिकंजी, लस्सी या अन्य फलाहारी पेय पदार्थ और फल ले लें । इसके बाद एक बार फलाहार जैसे—कूटू या सिंघाड़े या रामदाने की रोटी या पूड़ी, आलू, अरबी, शकरकंद, छेना या खोये की मिठाई ली जा सकती है ।

▪️ एकादशी व्रत में सेंधा नमक व काली मिर्च का प्रयोग होता है । सादा नमक और लाल मिर्च खाना मना है ।

▪️ एकादशी को यदि कोई जन्म या मृत्यु के सूतक हों तो भी व्रत का परित्याग नहीं करना चाहिए ।

▪️ एकादशी को यदि नैमित्तिक श्राद्ध हो तो उस दिन न कर द्वादशी को करना चाहिए ।

एकादशी व्रतों में शिरोमणि व्रत है । पूर्वकाल में राजा अम्बरीष महाभागवत हुए हैं । उनका एकादशी व्रत का अनुष्ठान प्रसिद्ध है ।

पुण्य का फल सुख और पाप का फल दु:ख होता है । मनुष्य को सुख चाहिए लेकिन कष्टरहित । यह कैसे संभव है ? सुख दिखता है, पुण्य दिखता नहीं, दु:ख दिखता है किन्तु पाप दिखता नहीं । यदि मानव को कष्ट रहित जीवन चाहिए तो व्रत-नियम का पालन अनिवार्य है । व्रत-नियम के पालन से श्रीहरि को प्रसन्नता होती है, और श्रीहरि की प्रसन्नता से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है । शास्त्रोक्त विधि से एकादशी का व्रत करने वाला मनुष्य जीवन्मुक्त हो जाता है ।

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