dhanteras laxmi mata

समुद्र-मंथन से जो चौदह रत्न प्रकट हुए उनमें आरोग्य के देवता धन्वतरि के अलावा धन-समृद्धि की देवी लक्ष्मी प्रमुख हैं । पांच दिवसीय ज्योति पर्व का प्रथम दिन धनत्रयोदशी या धनतेरस भी दीपावली की तरह समृद्धि की कामना को समर्पित रहता है । इसी दिन से लक्ष्मीजी का आवाहन शुरु हो जाता है और शाम को 5 (कुछ लोग तेरस होने के कारण 13 दीये जलाते हैं) नये मिट्टी के दीपकों में तेल भर कर उन्हें प्रकाशित कर खील से पूजा जाता है । फिर एक दीपक आंगन में, एक रसोई में, एक तिजोरी के पास, एक तुलसी में और एक मुख्य द्वार पर रखा जाता है ।

▪️इस दिन घरों में लक्ष्मी-गणेश की नयी मूर्तियां नयी रुई, दीये व खील आदि लायी जाती हैं ।

▪️घर में स्थिर लक्ष्मी के संग्रह के लिए सोने के नये आभूषण खरीदे जाते हैं ।

▪️लक्ष्मी-गणेश चित्रित चांदी का सिक्का व बर्तन आदि खरीदना शुभ माना जाता है ।

▪️इस दिन लोग मंहगे इलेक्ट्रोनिक आइटम भी खरीदते हैं ।

धनत्रयोदशी पर लक्ष्मीजी से सम्बन्धित एक कथा है

एक बार भगवान विष्णु लक्ष्मीजी के साथ मृत्युलोक में घूमने के लिए आये । भगवान विष्णु कुछ सोचकर लक्ष्मीजी से बोले—‘मैं एक जगह जा रहा हूँ, तुम यहीं पर बैठ जाओ लेकिन दक्षिण दिशा की ओर मत देखना ।’ इतना कहकर स्वयं भगवान विष्णु दक्षिण दिशा की ओर ही चले गये । 

भगवान विष्णु को दक्षिण दिशा की ओर जाता देखकर लक्ष्मीजी सोचने लगीं जरुर इसमें कोई भेद है जो मुझसे तो मना कर दिया और स्वयं उसी दिशा में चले गये । यह सोचकर लक्ष्मीजी दक्षिण दिशा की ओर देखने लगीं । दक्षिण दिशा में उन्हें पीली सरसों का खेत दिखायी दिया । उस खेत की सुन्दरता से प्रभावित होकर वे उस खेत में जाकर सरसों के फूलों से अपना श्रृंगार करने लगीं । श्रृंगार करके कुछ आगे बढ़ीं तो उन्हें एक गन्ने का खेत दिखायी दिया । वे खेत से एक गन्ना तोड़कर चूसने लगीं । 

इतने में ही वहां भगवान विष्णु आ गये और लक्ष्मीजी को देखकर क्रोधित होकर बोले—‘तुमने खेत में से गन्ने तोड़कर चोरी से खाये हैं, ये तुमने बहुत बड़ा अपराध किया है । इसके बदले में तुमको इस गरीब किसान की 12 वर्ष तक सेवा करनी होगी ।’

यह सुनकर लक्ष्मीजी घबड़ा गईं परन्तु जो बात भगवान के मुख से निकल गई, वह उनको पूरी करनी ही थी । भगवान विष्णु लक्ष्मीजी को छोड़कर क्षीरसागर चले गये । लक्ष्मीजी भगवान की आज्ञा मानकर किसान के घर छद्म वेष में दासी बनकर उसकी सेवा करने लगी । जिस दिन से लक्ष्मीजी किसान के घर पहुंची, उसका घर धन-धान्य से भर गया । 

इस प्रकार बारह वर्ष बीत गये । लक्ष्मीजी किसान के घर को छोड़कर जाने लगीं तो किसान ने उन्हें रोक लिया । बारह वर्ष बीतने पर जब लक्ष्मीजी वापिस नहीं आईं तो भगवान विष्णु किसान के घर आए और लक्ष्मीजी से चलने के लिए कहने लगे परन्तु किसान ने लक्ष्मीजी को नहीं जाने दिया ।

तब भगवान विष्णु ने किसान से कहा—‘तुम अपने परिवार सहित गंगास्नान को जाओ और गंगाजी में इन चार कौड़ियों को छोड़ देना । जब तक तुम वापिस नहीं आओगे, तब तक हम यहीं रहेंगे ।’ किसान ने भगवान के बताये अनुसार ही किया । किसान गंगाजी में जैसे ही कौड़ियां छोड़ने लगा, गंगाजी में से चार हाथ निकले और चारों कौड़ियों को ले गये ।

यह देखकर किसान गंगाजी से प्रार्थना करने लगा—‘हे गंगा मैया ! तेरे अंदर से ये चार हाथ किसके निकले ।’ तब गंगाजी बोली—‘ये चारों हाथ मेरे ही थे । तू जो कोड़ियां मुझे भेंट में देने के लिए लाया है, वह तुझे किसने दी हैं ।’

किसान ने कहा—‘मेरे घर में दो प्राणी स्त्री-पुरुष आये हैं, उन्होंने ही ये कौड़ियां दी हैं ।’ 

तब गंगाजी बोलीं—‘तेरे घर में जो औरत रहती है, वह साक्षात् लक्ष्मीजी हैं और जो आदमी है, वह भगवान विष्णु हैं । तू लक्ष्मीजी को जाने मत देना नहीं तो तू फिर पहले जैसा गरीब हो जायेगा ।’

गंगाजी से वापिस आकर किसान भगवान विष्णु से बोला—‘मैं लक्ष्मीजी को घर से वापिस नहीं जाने दूंगा ।’

भगवान विष्णु कहने लगे—‘यह तो लक्ष्मीजी का अपराध था जिसके कारण मैंने उन्हें दण्ड दिया । इनके दण्ड के 12 वर्ष पूरे हो गये हैं, इसलिए अब तो इन्हें जाना ही है । लक्ष्मीजी बड़ी चंचल हैं । ये आज नहीं तो कल तेरे घर से अवश्य चली जाएंगी । तुम तो क्या अच्छे-अच्छे व्यक्ति भी अपने घर से लक्ष्मीजी को जाने से रोक नहीं पाये हैं ।’

इस पर किसान बोला—‘परन्तु मैं नहीं जाने दूंगा ।’

किसान की बात सुनकर लक्ष्मीजी बोलीं—‘यदि तुम मुझे रोकना ही चाहते हो तो सुनो, कल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की तेरस है । तुम अपने घर को लीप-पोतकर साफ-सुथरा रखना और रात्रि को घी का दीपक जलाकर रखना । उस समय मैं तुम्हारे घर आऊंगी । तब तुम मेरी पूजा करना परन्तु मैं तुम्हें दिखायी नहीं दूंगी ।’ 

किसान ने कहा—‘अच्छा मैं ऐसा ही करुंगा ।’ 

इतना कह कर लक्ष्मीजी दीपक की ज्योति में लीन होकर चारों दिशाओं में फैल गईं और भगवान विष्णु देखते ही रह गये । दूसरे दिन तेरस को किसान ने लक्षमीजी के बताये अनुसार ही कार्य किया । उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया । अब तो किसान हर साल तेरस को लक्ष्मीजी की पूजा करने लगा । और यह तिथि ‘धनतेरस’ कहलाने लगी ।

किसान को देखकर सभी लोग धनतेरस को लक्ष्मीजी की पूजा करने लगे ।

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