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धनत्रयोदशी : समृद्धि की कामना का प्रथम दिन

लक्ष्मीजी दीपक की ज्योति में लीन होकर चारों दिशाओं में फैल गईं और भगवान विष्णु देखते ही रह गये । दूसरे दिन तेरस को किसान ने लक्षमीजी के बताये अनुसार ही कार्य किया । उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया । अब तो किसान हर साल तेरस को लक्ष्मीजी की पूजा करने लगा । और यह तिथि ‘धनतेरस’ कहलाने लगी ।

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा पूतना को सद्गति प्रदान करना

पूतना के पूर्वजन्म की कथा, एवं पूतना-वध की कथा | आखिर पूतना के आते ही भगवान ने अपने नेत्र बंद क्यों किए? पूतना जन्म से राक्षसी थी, कर्म था शिशुओं की हत्या करना और आहार था बालकों का रक्त। वह श्रीकृष्ण के पास कपटवेश बनाकर मारने गयी थी; किन्तु कैसे भी गई; किसी भी भाव से गई; नन्हें बालकृष्ण के मुख में उसने अपना स्तन दिया इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण ने उसे माता की गति दी। उसका कपटी राक्षसी शरीर दिव्य गंध से पूर्ण हो गया। श्रीकृष्ण जिसे छू लेते हैं उसका लौकिक शरीर फिर अलौकिक, दिव्य, चिन्मय बन जाता है। श्रीकृष्ण की मार में भी प्यार है।

श्रीकृष्ण की रूपमाधुरी : अवर्णनीय

श्रीकृष्ण का बालरूप सौंदर्य और उनकी उपमाएं

वसुदेव-देवकी : उनके पूर्वजन्म

माता-पिता अपने पुत्र का जगत् में प्रकाश करते हैं, इसी से वे पुत्र के प्रकाशक कहे जाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के माता-पिता श्रीभगवान को जगत् में प्रकट करते हैं, अत: वे भी भगवान के प्रकाशक हैं। लेकिन भगवान स्वयं प्रकाशक हैं, उनकी ज्योति (अंग-छटा) से ही सम्पूर्ण विश्व प्रकाशित है। अतएव वसुदेव-देवकीरूप भगवान के माता-पिता भी भगवान की सच्चिदानन्दमयी स्वप्रकाशिका शक्ति ही हैं।

श्रीगणेश से सम्बन्धित प्रचलित लोक कथाएँ

वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्य समप्रभ। निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।