‘राम’ नाम लिखे तुलसीपत्र की महिमा
सबका पालनहार एक ‘राम’ ही है । संसारी प्राणी तो दान ही दे सकते हैं; परन्तु मनुष्य की जन्म-जन्म की भूख-प्यास नहीं मिटा सकते हैं । वह तो उस दाता के देने से ही मिटेगी । इसलिए मांगना है तो मनुष्य को भगवान से ही मांगना चाहिए, अन्य किसी से मांगने पर संसार के अभाव मिटने वाले नहीं हैं । लेकिन मनुष्य सोचता है कि मैं कमाता हूँ, मैं ही सारे परिवार का पेट भरता हूँ । यह सोचना गलत है । इसलिए देने वाले के नेत्र सदैव नीचे और लेने वाले के ऊपर होते हैं ।
सुख-दु:ख और भगवत्कृपा
दु:ख के समय का कोई साथी नहीं होता बल्कि लोग तरह-तरह की बातें बनाकर दु:ख को और बढ़ा देते हैं । ऐसी स्थिति में यह याद रखें कि निन्दा करने वाले तो बिना पैसे के धोबी हैं, हमारे अन्दर जरा भी मैल नहीं रहने देना चाहते । ढूंढ़कर हमारे जीवन के एक-एक दाग को साफ करना चाहते हैं । वे तो हमारे बड़े उपकारी हैं जो हमारे पाप का हिस्सा लेने को तैयार हैं ।
पूजा में धूप-दीप प्रज्ज्वलित करने का क्या महत्व हैं ?
किसी भी देवता के पूजन में धूप-दीप प्रज्ज्वलित करने का बहुत महत्व है । पूजा के सरलतम रूप जिसे पंचोपचार पूजन कहते हैं; उसमें भगवान का पांच ही चीजों से पूजन करने का विधान है और ये पांच उपचार हैं—१. गंध, २. पुष्प, ३. नैवेद्य, ४. धूप और ५. दीप ।
सूर्य चालीसा के चालीस दोहों में छिपा है सभी मुश्किलों का...
प्रतिदिन शुद्ध जल से स्नान करके भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्य के सामने खड़े होकर सूर्य चालीसा का पाठ करने से मनुष्य के सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं । उसे सुख-समृद्धि तो मिलती ही है, साथ ही उसे हर कार्य में सफलता भी प्राप्त होती है ।
मल मास को ‘खर मास’ क्यों कहते हैं ?
पौराणिक ग्रंथों में खर मास की कथा भगवान सूर्य से जुड़ी हुई है; इसलिए इन दिनों में सूर्य उपासना का विशेष महत्व बतलाया गया है । मार्कण्डेय पुराण में खर मास के संदर्भ में एक कथा का उल्लेख है ।
नारायण कवच
नारायण कवच को शरीर पर धारण करने की बड़ी भारी महिमा है । इसको धारण करने वाला यदि किसी को अपने नेत्रों से देख लेता या छू भी दे तो वह निर्भय हो जाता है । उसे किसी का भय नहीं होता है; क्योंकि जो भगवान के नाम को अपनी जिह्वा पर रखता है, उसको ऐसा लगता है कि भगवान मेरे साथ हैं । मेरा कोई बाल-बांका नहीं कर सकता । वह व्यक्ति सभी के आदर का पात्र बन जाता है ।
प्रकृति को समर्पित सबसे अनूठा त्यौहार : छठ महापर्व
चढ़ते (उदय होते) व उतरते (अस्त होते) हुए सूर्य—इन दोनों को प्रणाम करने का अर्थ है कि हम समभाव से किसी के उत्कर्ष और अपकर्ष में साथ बने रहते हैं । सूर्य को प्रणाम का अर्थ है अस्त होते यानी बुजुर्गों को सम्मान देने का भाव । सूर्यदेव हमे उष्मा, उर्जा व जीवन में उल्लास प्रदान करते हैं; इसलिए सूर्य को दिए जाने वाले अर्घ्य से हम अपने अंदर की जीवन-अग्नि को जीवित रखते हैं ।
दिव्य वृक्ष पीपल की पूजा क्यों और कैसे की जाती है...
भगवान श्रीकृष्ण का विभूतिस्वरूप होने के कारण पीपल दिव्य वृक्ष है और उन्हीं की तरह संसार को कर्मयोग की शिक्षा देता है । पीपल के पत्ते तब भी हिलते रहते हैं, जब अन्य पेड़ों के पत्ते नहीं हिलते हैं । इसी कारण पीपल को ‘चल-पत्र’ भी कहते हैं अर्थात् जिसके पत्ते लगातार वायु से तरंगित होते रहते हैं ।
सुबह उठ कर भूमि-वंदन क्यों करना चाहिए ?
वाराहकल्प में जब हिरण्याक्ष दैत्य पृथ्वी को चुराकर रसातल में ले गया, तब भगवान श्रीहरि हिरण्याक्ष को मार कर रसातल से पृथ्वी को ले आए और उसे जल पर इस प्रकार रख दिया, मानो तालाब में कमल का पत्ता हो । इसके बाद ब्रह्मा जी ने उसी पृथ्वी पर सृष्टि रचना की । उस समय वाराहरूपधारी भगवान श्रीहरि ने सुंदर देवी के रूप में उपस्थित भूदेवी का वेदमंत्रों से पूजन किया और उन्हें ‘जगत्पूज्य’ होने का वरदान दिया ।
चातुर्मास में प्रिय वस्तुओं के त्याग का फल
चातुर्मास में जब भगवान विष्णु क्षीरसागर में अनन्त की शैया पर शयन करते हैं तो लक्ष्मीजी अपने करकमलों से उनके चरणों को दबाती है और क्षीरसागर की लहरें उनके चरणों को धोती हैं । अत: इस पुण्यकाल में जो मनुष्य व्रत-नियम लेकर रहते हैं वे मृत्युपर्यन्त विष्णुलोक में निवास करते हैं, उनका पुनर्जन्म नहीं होता है ।