bhagwan vishnu on sheshnaag snake with laxmi devi

प्रत्येक मनुष्य को भगवान विष्णु के शयनकाल—देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधिनी एकादशी तक के चार महीनों के लिए कोई नियम अवश्य लेना चाहिए । मनुष्य जब यह प्रतिज्ञा करता है कि ‘हे भगवन् ! मैं आपकी प्रसन्नता के लिए यह सत्कर्म करुंगा’ उसी को ‘व्रत’ कहते हैं । दो घड़ी भी भगवान विष्णु का ध्यान, देवताओं का पूजन, गाय और पशु-पक्षियों की सेवा, सत्संग, सत्भाषण, छोटे-से-छोटा दान और पितरों का तर्पण—इनमें से कुछ भी नियम चातुर्मास में ले लिए जाएं तो वे मनुष्य को अमृतफल देने वाले हैं । साथ ही यदि मनुष्य क्षमा, जीवों पर दया, संतोष व परनिन्दा का त्याग आदि के नियम पालन करने का भी प्रण करता है तो इससे उसे असीम मानसिक शान्ति, आयु व आरोग्य की प्राप्ति होती है ।

चातुर्मास में कोई नियम लेने वाले मनुष्य को प्रतिदिन पानी में आंवला मिलाकर स्नान करना चाहिए इससे उसके समस्त पापों का नाश हो जाता है । काले रंग के वस्त्रों का त्याग करना चाहिए । प्रतिदिन निराहर ‘ॐ नमो नारायण’ इस मन्त्र की कम-से-कम एक माला करने व भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से गोदान का फल मिलता है । भगवान के मन्दिर का प्रतिदिन उपलेपन (झाडू-पौंछा) करने से मनुष्य कल्पपर्यन्त तक राजा होता है अर्थात् राजसी भोग भोगता है । प्रतिदिन यदि वह पुराणों आदि की कथा कह कर लोगों को ज्ञान प्रदान करता है, तो वह भगवान व्यास का कृपापात्र होता है । चातुर्मास का नियम लेने वाले व्यक्ति को मौन होकर भोजन करना चाहिए ।

चातुर्मास में किस चीज के त्याग का क्या है फल ?

भगवान विष्णु के सामने संकल्प सहित लिए गए विभिन्न वस्तुओं के त्याग के नियमों का फल इस प्रकार है—

▪️ चातुर्मास में गुड़ के त्याग से मनुष्य अगले जन्म में मधुर वाणी वाला होता है ।

▪️ तेल के त्याग से संतान दीर्घायु होती है ।

▪️ सुगन्धित तेल के त्याग से मनुष्य अत्यन्त सौभाग्यशाली होता है ।

▪️ कड़वे तेल के त्याग से मनुष्य के शत्रुओं का नाश होता है ।

▪️ घी के त्याग से लावण्य की प्राप्ति और देह चिकनी व सुकोमल हो जाती है ।

▪️ भगवान विष्णु के शयनकाल में तेलमालिश के त्याग करने से मनुष्य धनाध्यक्ष कुबेर के समान दीप्तमान हो जाता है ।

▪️ फलों के त्याग से मनुष्य बुद्धिमान होता है और बहुत-से पुत्रों की प्राप्ति होती है ।

▪️ पान का त्याग करने से मनुष्य का कण्ठ सुरीला हो जाता है और तरह-तरह की भोग सामग्री प्राप्त होती है।

▪️ दूध-दही छोड़ने वालों को गोलोक की प्राप्ति होती है ।

▪️ भोजन में मिर्च का त्याग करने से अगले जन्म में राजा होता है ।

▪️ रेशमी वस्त्रों के त्याग से अक्षय सुख की प्राप्ति होती है ।

▪️ उड़द व चना का त्याग करने से पुनर्जन्म नहीं होता है ।

▪️ चौमासे में भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए फलाहार करने वाला मनुष्य बड़े-से-बड़े पापों से मुक्त हो जाता है ।

▪️ मौन व्रत धारण करने वाले की बात हर कोई मानता है ।

▪️ चातुर्मास में गर्म जल से स्नान का त्याग करने से पुष्करतीर्थ में स्नान का फल मिलता है ।

▪️ चौमासे में जो पत्तल पर भोजन करता है उसे कुरुक्षेत्र में स्नान का फल मिलता है ।

▪️ चातुर्मास्य का एक नियम यह है जिसमें मनुष्य अपने-आप लेकर भोजन नहीं करता है । बिना मांगे जो भोजन मिल जाए, वही खाता है । कुंआ-बावली खुदवाने से जो पुण्य मिलता है, वह अयाचित भोजन के नियम से प्राप्त हो जाता है ।

▪️ पृथ्वी पर शयन का नियम लेने से वह विष्णु-भक्त होता है ।

उद्यापन 

चातुर्मास्य में किसी चीज का त्याग किया है तो व्रत पूर्ण होने पर उसका उद्यापन (दान) अवश्य करे अन्यथा उसका फल प्राप्त नहीं होता है । भगवान विष्णु आदि-अंत रहित हैं, उनके आगे उद्यापन करने से व्रत पूर्ण होता है । दान में दी गई वस्तु से मनुष्य कोटि गुना फल प्राप्त करता है—

▪️ पलाश की पत्तल में भोजन का नियम लेने पर उद्यापन के समय घी से बना भोजन ब्राह्मण को दान करे ।

▪️ आंवले के फल के स्नान का नियम लेने पर रत्ती भर सोना दान करे ।

▪️ फलों के त्याग के नियम पर फल दान करे ।

▪️ धान्य के त्याग का नियम होने पर अन्न या चावल का दान करे ।

▪️ भूमि पर शयन का नियम लेने पर गद्दे, तकिये सहित शय्यादान करे ।

▪️ प्रतिदिन तेल न लगाने के नियम का पालन करने पर घी और सत्तू का दान करे ।

▪️ यदि प्रतिदिन दीप जलाने का नियम हो तो सोने-चांदी का दीपक या जो सामर्थ्य हो उसी अनुसार घी सहित दीपक ब्राह्मण को दान दे ।

▪️ पान छोड़ने पर कपूर का दान दें ।

▪️ यदि चातुर्मास में जूते न पहनने का नियम लिया है तो जूतों का दान करें ।

▪️ नख और केश न काटने का नियम लेने पर ब्राह्मण को दर्पण दान करें ।

▪️ जिसने चातुर्मास में ब्रह्मचर्य के नियम का पालन किया है, उसको ब्राह्मण-ब्राह्मणी को भोजन करा कर अन्य श्रृंगार का सामान, दक्षिणा व नमक दान करना चाहिए ।

▪️ बिना मांगे स्वत: प्राप्त भोजन के नियम में सोने के साथ वृषभ का दान करे ।

▪️ उड़द के त्याग पर बछड़े सहित गाय के दान का विधान है ।

इस प्रकार चातुर्मास में जब भगवान विष्णु क्षीरसागर में अनन्त की शैया पर शयन करते हैं तो लक्ष्मीजी अपने करकमलों से उनके चरणों को दबाती है और क्षीरसागर की लहरें उनके चरणों को धोती हैं  । अत: इस पुण्यकाल में जो मनुष्य व्रत-नियम लेकर रहते हैं वे मृत्युपर्यन्त विष्णुलोक में निवास करते हैं, उनका पुनर्जन्म नहीं होता है ।

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