एकादशी व्रत की विधि व नियम

पुण्य का फल सुख और पाप का फल दु:ख होता है । मनुष्य को सुख चाहिए लेकिन कष्टरहित । यह कैसे संभव है ? सुख दिखता है, पुण्य दिखता नहीं, दु:ख दिखता है किन्तु पाप दिखता नहीं । यदि मानव को कष्ट रहित जीवन चाहिए तो व्रत-नियम का पालन अनिवार्य है । व्रत-नियम के पालन से श्रीहरि को प्रसन्नता होती है, और श्रीहरि की प्रसन्नता से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है ।

भगवान व्यास कृत भगवती स्तोत्र

जो मनुष्य कहीं भी रह कर पवित्र भावना से नियमपूर्वक इस व्यासकृत स्तोत्र का पाठ करता है, अथवा शुद्ध भाव से घर पर ही पाठ करता है, उसके ऊपर भगवती (दुर्गा) सदा ही प्रसन्न रहती हैं ।

सच्चा ज्ञान : अष्टावक्र और राजा जनक संवाद

राजा जनक को ‘ज्ञान’ देकर अष्टावक्रजी चले गए और उस ज्ञान को धारण कर राजा जनक ‘देही’ से ‘विदेही’ बन गए । राजा जनक और ऋषि अष्टावक्र के बीच का संवाद ‘अष्टावक्र गीता’ के नाम से जाना जाता है ।

धार्मिक अनुष्ठान में की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं का अर्थ

किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को सम्पन्न करते समय विभिन्न क्रियाएं की जाती हैं, जैसे—स्वस्तिवाचन, पवित्री धारण, आचमन, शिखा-बंधन, प्राणायाम, न्यास, पृथ्वी-पूजन, संकल्प, यज्ञोपवीत बदलना, चंदन धारण, रक्षा सूत्र आदि । जानतें हैं इन सबका क्या है आध्यात्मिक अर्थ और महत्व ।

पूजा-पाठ से मनचाहा परिणाम क्यों नहीं मिलता ?

ईश्वर की प्राप्ति के लिए साधक में नदी की तरह का दीवानापन होना चाहिए । जब तक यह दीवानापन नहीं होगा कोई मन्त्र क्या करेगा ? और जब साधक में ऐसी मस्ती या दीवानापन होगा तो क्या मन्त्र और क्या किसी से पथ पूछना ? जिधर पांव ले जाएंगे वहीं प्रियतम प्यारा खड़ा मिलेगा ।

भगवान का आशीर्वाद है चरणामृत

शालग्राम शिला या भगवान की प्रतिमा के चरणों से स्पर्श किए व उनके स्नान के जल को ‘चरणामृत’ या ‘चरणोदक’ कहते हैं; इसलिए चरणामृत को भगवान का आशीर्वाद माना जाता है । हिन्दू धर्म में चरणामृत को अमृत के समान और अत्यंत पवित्र माना गया है ।

अक्षय फल देने वाला लक्षवर्ति दान-व्रत

पुण्य के काम में धन व्यय करने से वह घटता नहीं बल्कि बढ़ता है । जैसे छोटे से बीज में महान वट वृक्ष छिपा रहता है, उसी प्रकार शुभ समय में किया गया छोटा-सा भी पुण्य महान फल देता है । लक्षवर्ति दान पूजा-विधि ।

एकादशी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा : विधि

एकादशी तिथि को पूजन और व्रत करने वाले मनुष्य को काम, क्रोध, अहंकार, लोभ और चुगली जैसी बुराइयों का त्याग कर इन्द्रिय-संयम का पालन करना चाहिए; तभी उसका व्रत और पूजा पूर्ण होगी; अन्यथा वह निष्फल हो जाएगी । व्रत-पूजन पूरी श्रद्धा और भाव से करना चाहिए ।

मंगल देवता : कथा, मन्त्र, स्तोत्र, व्रत-विधि, दान और उपाय

धरतीपुत्र मंगल आप ऋण हरने वाले और रोगनाशक हैं । रक्त वर्ण, रक्तमालाधारी, ग्रहों के नायक आपकी आराधना करने वाला अपार धन और पारिवारिक सुख पाता है ।

पूजा में आसन का महत्व

शास्त्रों में कुशा के आसन पर बैठकर भजन व योगसाधना का विधान है । कुशा के आसन पर बैठने से साधक का अशुद्ध परमाणुओं से बिल्कुल भी सम्पर्क नहीं होता है, इससे मन व बुद्धि पूरी तरह संयत रहती है और मन में चंचलता नहीं आती है ।