bhagwan vishnu srishti chayan

श्रीमद्भागवत के छठे स्कन्ध के आठवें अध्याय में ‘नारायण कवच’ का वर्णन किया गया है ।

इंद्र को जब त्रिभुवन का ऐश्वर्य मिला तो वे सिद्ध, चारण, गंधर्व और अप्सरा आदि के साथ गर्व से मतवाले होकर इंद्राणी सहित अपने सिहासन पर बैठे । ऐश्वर्य का मद बड़ा भारी मद होता है और यह देवताओं को भी अपने वश में कर लेता है । उस समय देवगुरु बृहस्पति इंद्र की सभा में आए; किन्तु गुरु के स्वागत में इंद्र सिंहासन से नहीं उठे । गुरुजी समझ गए कि इंद्र को अभिमान हो गया है; इसलिए वे तुरंत ही वहां से लौट गए । 

महापुरुष का अपमान मनुष्य का नाश कर देता है । गुरु बृहस्पति अपना घर छोड़ कर चले गए । जब इंद्र के शत्रु दैत्यों को यह समाचार मिला तो उन्होंने अपने गुरु शुक्राचार्य की सहायता से देवताओं के साथ युद्ध छेड़ दिया । देवतागण डर कर सहायता के लिए ब्रह्माजी के पास गए । 

ब्रह्माजी ने कहा—‘तुम लोगों ने ऐश्वर्य के मद में गुरु का अपमान किया है; जबकि आदर तो हर हालत में त्यागी व विद्वान महात्मा का ही होना चाहिए । तुम्हें इसका फल तो भोगना ही पड़ेगा । तुम्हारे शत्रु अपने गुरु की आराधना कर अत्यंत बलवान हो रहे हैं, वे तुम्हारा स्वर्ग भी छीन लेंगे । इसलिए तुम लोग शीघ्र ही प्रजापति त्वष्टा के पुत्र विश्वरूप का आधार ग्रहण करो; फिर तुम जो चाहते हो, वह सब हो जाएगा ।’

विश्वरूप किसे कहते हैं ? ‘विश्व’ शब्द के दो अर्थ होते हैं । पहला, विश्व और दूसरा विष्णु भगवान । अत: विश्वरूप का अर्थ हुआ—जो विश्व के प्रत्येक पदार्थ में विष्णु भगवान को देखता है, इसलिए उसका न कोई शत्रु है और न ही मित्र; न वह किसी के साथ वैर करता है और न ही प्रेम—उसे ही विश्वरूप कहते हैं ।

देवताओं ने प्रजापति त्वष्टा के पुत्र विश्वरूप के पास जाकर पुरोहित बनने की प्रार्थना की । विश्वरूप ने देवताओं का आग्रह स्वीकार कर लिया । इसके बाद विश्वरूप ने अपनी वैष्णवी विद्या के बल से देवताओं का खोया हुआ स्वर्ग का राज्य उन्हें वापिस दिला दिया ।

वह विद्या कौन-सी है जो विश्वरूप ने इंद्र को दी थी और जिसके बल से इंद्र को विजय मिली ? विश्वरूप द्वारा इंद्र को उपदेशित विद्या का नाम ‘नारायण कवच’ है । जिस प्रकार सैनिक युद्ध के लिए जाते समय लोहे का कवच (बख्तर) पहन कर जाते हैं, ऐसे ही मनुष्य ‘मंत्रात्मक नारायण कवच’ को धारण कर जीवन-युद्ध में शामिल हो । 

इस संसार में जितने भी दु:ख हैं, उनके नाश के लिए भगवन्नाम एक अस्त्र है और यह ‘नामास्त्र’ ब्रह्मास्त्र की तरह काम करता है । नारायण कवच में भगवान के विभिन्न नाम हैं, जो जगह-जगह और विभिन्न कालों में हमारी रक्षा के लिए हैं । इस प्रकार नारायण कवच में यही प्रार्थना है कि भगवान के नाम दिन-रात हमारी रक्षा करें, नाम के बिना हम कभी न रहें; क्योंकि भगवान नारायण ही सारे शरीर की रक्षा करते हैं । 

नारायण कवच के पाठ की विधि

किसी भी प्रकार का भय होने पर नारायण कवच धारण किया जाता है या इसका पाठ किया जाता है । जिसको नारायण कवच का पाठ करना हो, उसे पहले स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए । आचमन करके उत्तर की ओर मुख करके कुश की पवित्री धारण कर अंगन्यास और करन्यास करना चाहिए । पूजा में बैठने से पहले शरीर के प्रत्येक अंग की शुद्धि करनी चाहिए । न्यास करने से मनुष्य मंत्रमय, देवतामय हो जाता है । इस प्रकार मगवन्मय होकर भगवान का ध्यान करते हुए ‘नारायण कवच’ का पाठ करना चाहिए ।

नारायण कवच

गरुड़ पर आरुढ़, अष्टबाहु और अणिमादि सिद्धियों से सुसेवित ॐकार-स्वरूप भगवान सब ओर से मेरी रक्षा करें ।

भगवान मत्स्यमूर्ति जल में रक्षा करें, वामन स्थल में रक्षा करें, त्रिविक्रम भगवान आकाश में मेरी रक्षा करें, नृसिंह रणभूमि, जंगल आदि संकट के स्थानों में रक्षा करें, वराह मार्ग में रक्षा करें, परशुराम पर्वत पर मेरी रक्षा करें, रामचंद्र जी प्रवास में रक्षा करें ।

नारायण मारण-मोहन आदि से मेरी रक्षा करें, नर ऋषि गर्व से मेरी रक्षा करें, दत्तात्रेय योग के विघ्नों से रक्षा करें, कपिल कर्मबंधन से रक्षा करें, सनत्कुमार कामदेव से रक्षा करें, हयग्रीव देवापमान से रक्षा करें, नारद सेवापराध से और कूर्म (कच्छप) सब प्रकार के नरकों से मेरी रक्षा करें । धन्वन्तरि कुपथ्य से रक्षा करें ।

सुख-दु:ख, राग-द्वेष, गर्मी-सर्दी के द्वन्द्व से ऋषभदेव रक्षा करें, यज्ञ भगवान लोकापवाद से रक्षा करें, बलभद्र कष्टों से, शेष क्रोध रूपी सर्पों से रक्षा करें, व्यास अज्ञान से रक्षा करें, बुद्ध पाखण्ड से रक्षा करें और कल्कि कलिकाल के दोषों से रक्षा करें ।

केशव प्रात:काल रक्षा करें, गोविंद दिन चढ़ने पर रक्षा करें, दोपहर से पहले नारायण और दोपहर को भगवान विष्णु, तीसरे पहर में मधुसूदन, सायंकाल में ब्रह्मा, सूर्यास्त के बाद हृषीकेश तथा अर्धरात्रि में भगवान पद्मनाभ मेरी रक्षा करें । रात्रि के पिछले पहर में श्रीहरि, उषाकाल में जनार्दन, सूर्योदय से पूर्व दामोदर और सभी संध्याओं के समय भगवान विश्वेश्वर मेरी रक्षा करें ।

हे सुदर्शन चक्र ! तुम हमारी शत्रु-सेना को भस्म कर दो । हे कौमोदकी गदे ! तुम हमारे दुश्मनों को चूर-चूर कर दो । हे शंख ! हमारे दुश्मनों को भगा दो । हे खड्ग ! आप मेरे शत्रुओं को छिन्न-भिन्न कर दो । हे ढाल ! आप सदा के लिए मेरे शत्रुओं को अंधा बना दो ।

हे गरुड़ और विष्वक्सेन ! आप हमें सब प्रकार की विपत्तियों से बचाएं । भगवान श्रीहरि के नाम, रूप, वाहन, आयुध और पार्षद—हमारी बुद्धि, मन, इंद्रिय और प्राणों को सब प्रकार की आपत्तियों से बचाएं ।

नारायण कवच को शरीर पर धारण करने की बड़ी भारी महिमा है । इसको धारण करने वाला यदि किसी को अपने नेत्रों से देख लेता या छू भी दे तो वह निर्भय हो जाता है । उसे किसी का भय नहीं होता है; क्योंकि जो भगवान के नाम को अपनी जिह्वा पर रखता है, उसको ऐसा लगता है कि भगवान मेरे साथ हैं । मेरा कोई बाल-बांका नहीं कर सकता । वह व्यक्ति सभी के आदर का पात्र बन जाता है ।

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