यथा ब्रह्मस्वरूपश्च श्रीकृष्ण: प्रकृते: पर:।
तथा ब्रह्मस्वरूपा च निर्लिप्ता प्रकृते: परा।।
आविर्भावस्तिरोभावस्तस्या: कालेन नारद।
न कृत्रिमा च सा नित्या सत्यरूपा यथा हरि:।।
(नारदपांचरात्र २।३।५१, ५४)
अर्थात्–’जैसे श्रीकृष्ण ब्रह्मस्वरूप हैं तथा प्रकृति से परे हैं, वैसे ही श्रीराधाजी भी ब्रह्मस्वरूप, निर्लिप्त तथा प्रकृति से परे हैं। भगवान की भांति ही उनका भी समय-समय पर आविर्भाव-तिरोभाव हुआ करता है। वस्तुत: वे भी श्रीहरि के सदृश्य ही अकृत्रिम, नित्य और सत्यस्वरूप हैं।’
श्रीराधा का गोकुल में अवतार लेने का कारण
एक बार नारदजी ने भगवान नारायण से कहा–मेरे पिता ब्रह्माजी ने मुझे आपके पास ज्ञान प्राप्त करने के लिए भेजा है। मैं आपका शरणागत शिष्य हूँ। आप मुझे बताइए कि श्रीहरि की प्रेयसी गोलोकवासिनी श्रीराधा व्रज में व्रजकन्या होकर क्यों प्रकट हुईं?
भगवान नारायण ने कहा–’पिता का स्वभाव पुत्र में अवश्य ही प्रकट होता है। तुम्हारा जन्म ब्रह्माजी के मानस से हुआ है। जिसका जिस कुल में जन्म होता है, उसकी बुद्धि उसके अनुसार ही होती है। तुम्हारे पिता श्रीकृष्ण के चरणारविन्दों की सेवा से ही विधाता के पद पर प्रतिष्ठित हुए हैं। वे नित्य निरन्तर नवधा भक्ति का पालन करते हैं। अब मैं तुम्हें गोलोकवासिनी श्रीराधा व्रज में व्रजकन्या होकर क्यों प्रकट हुईं, इसका रहस्य बताता हूँ।
गोलोक में भगवान श्रीकृष्ण का परिवार
पूर्वकाल में घटित यह प्रसंग गोलोकधाम का है। श्रीकृष्ण की तीन पत्नियां हुईं–श्रीराधा, विरजा और भूदेवी। इन तीनों में श्रीकृष्ण को श्रीराधा ही सबसे प्रिय हैं। एक दिन भगवान श्रीकृष्ण एकान्त कुंज में विरजादेवी के साथ विहार कर रहे थे। श्रीराधा सखियों सहित वहां जाने लगीं। उस निकुंज के द्वार पर भगवान श्रीकृष्ण द्वारा नियुक्त पार्षद श्रीदामा पहरा दे रहा था। श्रीदामा गोप ने उन्हें रोका। इस पर श्रीराधा क्रोधित हो गईं। सखियों का कोलाहल सुनकर श्रीकृष्ण वहां से अन्तर्धान हो गए। दु:खी होकर विरजाजी नदी बन गयीं और गोलोक में चारों ओर प्रवाहित होने लगीं। जैसे समुद्र इस भूतल को घेरे हुए है, उसी प्रकार विरजा नदी गोलोक को अपने घेरे में लेकर बहने लगीं। उनके व श्रीकृष्ण के जो सात पुत्र थे, वे लवण, इक्षु, सुरा, घृत, दधि, दुग्ध और जलरूप सात समुद्र होकर पृथ्वी पर आ गए।
श्रीदामा ने दिया श्रीराधा को शाप
इस पर श्रीराधा ने श्रीदामा को शाप दे दिया कि ‘तुम असुरयोनि को प्राप्त हो जाओ और गोलोक से बाहर चले जाओ।’ तब श्रीदामा ने भी श्रीराधा को यह शाप दिया कि ‘श्रीकृष्ण सदा तुम्हारे अनुकूल रहते हैं, इसीलिए तुम्हें इतना मान हो गया है। आप भी मानवी-योनि में जाएं। वहां गोकुल में श्रीहरि के ही अंश महायोगी रायाण नामक एक वैश्य होंगे। आपका छायारूप उनके साथ रहेगा। अत: पृथ्वी पर मूढ़ लोग आपको रायाण की पत्नी समझेंगे, अत: परिपूर्णतम परमात्मा श्रीकृष्ण से भूतल पर कुछ समय आपका वियोग हो जाएगा।’
इस प्रकार परस्पर शाप देकर अपनी ही करनी से भयभीत होकर श्रीदामा और श्रीराधा दोनों ही दु:खी हुए और चिन्ता में डूब गए। तब स्वयं श्रीकृष्ण वहां प्रकट हुए। श्रीकृष्ण ने श्रीदामा को सान्त्वना देते हुए कहा–’तुम त्रिभुवनविजेता सर्वश्रेष्ठ शंखचूड़ नामक असुर होओगे और अंत में श्रीशंकरजी के त्रिशूल से मृत्यु को प्राप्त होकर यहां मेरे पास लौट आओगे।’
भगवान श्रीकृष्ण ने दी श्रीराधा को सान्त्वना
भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीराधा से कहा–’वाराहकल्प में मैं पृथ्वी पर जाऊँगा और व्रज में जाकर वहां के पवित्र वनों में तुम्हारे साथ विहार करुंगा। मेरे रहते तुमको क्या चिन्ता है? श्रीदामा के शाप की सत्यता के लिए कुछ समय तक बाह्यरूप से मेरे साथ तुम्हारा वियोग रहेगा।’
ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने गोपों और गोपियों को बुलाकर कहा–’गोपों और गोपियो ! तुम सब-के-सब नन्दरायजी का जो उत्कृष्ट व्रज है, वहां गोपों के घर-घर में जन्म लो। राधिके ! तुम भी वृषभानु के घर अवतार लो। वृषभानु की पत्नी का नाम कलावती है। वे सुबल की पुत्री हैं और लक्ष्मी के अंश से प्रकट हुई हैं। वास्तव में वे पितरों की मानसी कन्या हैं। पूर्वकाल में दुर्वासा के शाप से उनका व्रजमण्डल में गोप के घर में जन्म हुआ है। तुम उन्हीं कलावती की पुत्री होकर जन्म ग्रहण करो। नौ मास तक कलावती के पेट में स्थित गर्भ को माया द्वारा वायु से भरकर रोके रहो। दसवां महीना आने पर तुम भूतल पर प्रकट हो जाना। अपने दिव्यरूप का परित्याग करके शिशुरूप धारण कर लेना। तुम गोकुल में अयोनिजारूप से प्रकट होओगी। मैं भी अयोनिज रूप से अपने-आप को प्रकट करूंगा; क्योंकि हम दोनों का गर्भ में निवास होना सम्भव नहीं है। मैं बालक रूप में वहां आकर तुम्हें प्राप्त करूंगा। तुम मुझे प्राणों से भी अधिक प्यारी हो और मैं भी तुम्हें प्राणों से बढ़कर प्यारा हूँ। हम दोनों का कुछ भी एक-दूसरे से भिन्न नहीं है। हम सदैव एकरूप हैं। भूतल का भार उतारकर तुम्हारे और गोप-गोपियों के साथ मेरा पुन: गोलोक में आगमन होगा।’
यह सुनकर श्रीराधा प्रेम से विह्वल होकर रो पड़ीं और श्रीकृष्ण से कहने लगीं–’मायापते ! यदि आप भूतल पर मुझे भेजकर माया से आच्छन्न कर देना चाहते हो तो मेरे समक्ष सच्ची प्रतिज्ञा करो कि मेरा मनरूपी मधुप तुम्हारे मकरन्दरूप चरणारविन्द में ही नित्य-निरन्तर भ्रमण करता रहे। जहां-जहां जिस योनि में भी मेरा यह जन्म हो, वहां-वहां आप मुझे अपना स्मरण एवं दास्यभाव प्रदान करोगे।’
मेरी इस विनीत विनती को सुन लो, हे व्रजराजकुमार !
युग-युग, जन्म-जन्म में मेरे तुम ही बनो जीवनाधार ।। (भाई हनुमानप्रसादजी पोद्दार)
‘जैसे शरीर छाया के साथ और प्राण शरीर के साथ रहते हैं, उसी प्रकार हम दोनों का जन्म और जीवन एक-दूसरे के साथ बीते। मैं तुम्हारी मुरली को ही अपना शरीर मानती हूँ और मेरा मन तुम्हारे चरणों से कभी विलग नहीं होता है। अत: विरह की बात कान में पड़ते ही आँखों का पलक गिरना बंद हो गया है और हम दोनों आत्माओं के मन, प्राण निरन्तर दग्ध हो रहे हैं।’
श्रीराधा और श्रीकृष्ण की अभिन्नता
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा–’राधे ! सारा ब्रह्माण्ड आधार और आधेय के रूप में विभक्त है। इनमें भी आधार से पृथक् आधेय की सत्ता संभव नहीं है। मेरी आधारस्वरूपा तुम हो; क्योंकि मैं सदा तुम में ही स्थित रहता हूँ। हम दोनों में कहीं भेद नहीं है; जहां आत्मा है, वहां शरीर है। मेरे बिना तुम निर्जीव हो और तुम्हारे बिना मैं अदृश्य हूँ। तुम्हारे बिना मैं संसार की सृष्टि नहीं कर सकता, ठीक उसी तरह जैसे कुम्हार मिट्टी के बिना घड़ा नहीं बना सकता और सुनार सोने के बिना आभूषण नहीं बना सकता। अत: आंसू बहाना छोड़ो और निर्भीक भाव से गोप-गोपियों के समुदाय के साथ बृषभानु के घर पधारो। मैं मथुरापुरी में वसुदेव के घर आऊंगा। फिर कंस के भय का बहाना बनाकर गोकुल में तुम्हारे समीप आ जाऊंगा।’
हे आराध्या राधा ! मेरे मन का तुझमें नित्य निवास ।
तेरे ही दर्शन कारण मैं करता हूँ गोकुल में वास ।।
राधे ! हे प्रियतमे ! प्राण-प्रतिमे ! हे मेरी जीवन-मूल !
पल भर भी न कभी रह सकता, प्रिये ! मधुर मैं तुमको भूल ।। (भाई हनुमानप्रसादजी पोद्दार)
श्रीराधा ने श्रीकृष्ण से व्रज के लिए मांगा वृन्दावन, गोवर्धन पर्वत और यमुना नदी
श्रीगर्ग संहिता के अनुसार श्रीराधा ने श्रीकृष्ण से कहा–’प्रभो! जहां वृन्दावन नहीं है, यमुना नदी नहीं हैं और गोवर्धन पर्वत भी नहीं है, वहां मेरे मन को सुख नहीं मिलता।’
श्रीराधिकाजी के इस प्रकार कहने पर भगवान श्रीकृष्ण ने अपने गोलोकधाम से चौरासी कोस भूमि, गोवर्धन पर्वत एवं यमुना नदी को भूतल पर भेजा।
विरह से कातर हुई श्रीराधा अत्यन्त दीन और भय से व्याकुल होकर बोलीं—
हौं तो दासी नित्य तिहारी ।
प्राननाथ जीवन-धन मेरे,
हौं तुम पै बलिहारी ।।
चाहें तुम अति प्रेम करौ,
तन-मन सौं मोहि अपनाऔ ।
चाहें द्रोह करौ, त्रासौ,
दुख देइ मोहि छिटकाऔ ।।
तुम्हरौ सुख ही है मेरौ सुख,
आन न कछु सुख जानौं ।
जो तुम सुखी होउ मो दुख में,
अनुपम सुख हौं मानौं ।। (भाई हनुमानप्रसादजी पोद्दार)
श्रीराधा भगवान श्रीकृष्ण की सात बार परिक्रमा और सात बार प्रणाम करके गोप-गोपियों के समूहों के साथ भूतल पर अवतरित हुईं । श्रीराधा की प्रिय सखियां व श्रीकृष्ण के प्रिय गोप बहुत बड़ी संख्या में लीला के लिए व्रज में गोपों के घर उत्पन्न हुए ।
यह सब श्रीराधा और श्रीकृष्ण की लीला ही है, जो व्रज में परम दिव्य प्रेम की रसधारा बहाने के लिए निमित्त रूप से की गयी थी । इसी कारण से लीलामय श्रीकृष्ण और श्रीराधा वाराहकल्प में पृथ्वी पर अवतीर्ण हुए ।
जय जय जय श्री राधे, वृषभानु दुलारी श्री राधे, नन्दलाल दुलारी श्री राधे …… जय जय
अद्भूत!!! जैसे साक्षात सप्तरिषी कथा सुना रहे हैं!!! ह्रदयग्राही या कोई गोपी जो राधा जी की सखी घटित घटना बता रही हैं!!! अविस्मरणीय प्रसंग!!!! जय श्री राधे कृष्णा की!!!!! नमन और अभिनंदन!!!! गज़ब!!!!
जय श्री राधे जय श्री राधे !!
एक सुखद अनुभूति, दिव्य दर्शन । जय श्री राधे ।
राधे राधे
श्री राधे कृष्ण जय जय जय राधे राधे.
जय श्री राधे कृष्ण.
Radhe Radhe
जय श्री राधे
jai jai shri radhey……………ati sunder prasang
अविस्मरणीय प्रसंग!!!! जय श्री राधे कृष्णा की!!!!! नमन और अभिनंदन!!!!
अविस्मरणीय प्रसंग!!!! जय श्री राधे कृष्णा की!!!!! नमन और अभिनंदन!!!!
Bahot hi Sunder bataya gaya hein.padhaney par aisa mahasoos hota hein ki hum RADHA LOK mein hein.
राधे राधे👏👏
जय श्री राधे जय श्री राधे !!
shree krishna govind hare murari hai naath narayan vasudeve
radhe radhe jai shree radhe
किन शब्दों में बयान करूँ समझ नहीं आ रहा ।आज साक्षात मेरी श्री राधा महारानी ने पुकार सुन ली है ।माँ मुझे कब अपने चरण कमलों में बुला रही हो ?माँ आ जाओ ,बहुत युग बीत गये तुझ से बिछुड़े हुये ।माँ अपने चरणों से दूर कर भूल गई ।
jai ho Sri Radhya Hari
Aap ka bahut-2 sukriya
Jai Jai Sree RADHE.