Home Tags Shri radha

Tag: shri radha

राधा तू बड़भागिनी कौन तपस्या कीन

राधा श्रीकृष्ण की भक्ता हैं, प्रेमिका हैं, उपासिका-आराधिका हैं । श्रीराधा श्रीकृष्ण की शक्ति हैं, श्रीराधा श्रीकृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी हैं । लेकिन श्रीराधा को यह गौरव कैसे प्राप्त हुआ, इससे सम्बन्धित एक प्रसंग ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है ।

संत नागाजी का हठ और भगवान श्रीराधा-कृष्ण

स्वामिनीजी वृषभानुनन्दिनी श्रीराधा वहां पधारीं और उन्होंने नागाजी को विश्वास दिलाया कि ये ही निकुंज के श्यामसुन्दर हैं । अपने आराध्य श्रीराधाश्यामसुन्दर के दर्शन कर श्रीनागाजी ने उन्हें अपनी जटा सुलझाने की अनुमति दे दी । ठाकुरजी ने अपने चार हाथ प्रकट कर उनकी जटा सुलझा दीं ।

मूलप्रकृति श्रीराधा का सम्पूर्ण परिचय

व्रज में कौन-से चार स्थानों पर ‘राधे-राधे’ ही बोला जाता है?

श्रीराधा के चरणचिह्न और उनका भाव

श्रीकृष्ण-स्वामिनी श्रीराधा ने अपने चरणकमलों में सुख देने वाले 19 चिन्हों को धारण किया है।

श्रीकृष्ण का चतुर्भुजरूप और श्रीराधा

श्रीराधा और गोपांगनाएं नन्दनन्दन श्रीकृष्ण की मधुर कान्ताभाव से सेवा-आराधना करती हैं। न वे श्रीकृष्ण के ऐश्वर्य को जानती हैं, न मानती हैं, न उसे देखने की कभी उनमें इच्छा ही जागती है। वरन् श्रीकृष्ण के चतुर्भुजरूप को देखकर वे डरकर संकोच में पड़ जाती हैं। उन्हें जहां जरा भी श्रीकृष्ण का ऐश्वर्यरूप दिखायी दिया, वहीं वे अपने ही प्रियतम श्यामसुन्दर को श्यामसुन्दर न मानकर कुछ अन्य मानने लगती हैं। व्रज में श्रीकृष्ण की भगवत्ता या उनके परमेश्वररूप की कोई पूछ नहीं है।

श्रीराधा : ध्यान, मन्त्र, गायत्री, स्तोत्र एवं आरती

सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने गोलोक में रासमण्डल में मूलप्रकृति श्रीराधा के उपदेश करने पर इस मन्त्र का जप किया था। फिर उन्होंने विष्णु को, विष्णु ने ब्रह्मा को, ब्रह्मा ने धर्म को और धर्म ने भगवान नारायण को इसका उपदेश किया। इस प्रकार यह परम्परा चली आयी। श्रीराधा-मन्त्र कल्पवृक्ष के समान साधक की मनोकामना पूर्ति करता है।

श्रीराधा महिमा

जैसे कुम्हार मिट्टी के बिना घड़ा नहीं बना सकता तथा जैसे सुनार सोने के बिना आभूषण तैयार नहीं कर सकता, उसी प्रकार मैं तुम्हारे बिना सृष्टिरचना में समर्थ नहीं हो सकता। तुम सृष्टि की आधारभूता हो और मैं बीजरूप हूँ। जब मैं तुमसे अलग रहता हूँ, तब लोग मुझे ‘कृष्ण’ (काला-कलूटा) कहते हैं और जब तुम साथ हो जाती हो तब वे ही लोग मुझे ‘श्रीकृष्ण’ (शोभाशाली कृष्ण) कहते हैं।

श्रीराधा का रूप-माधुर्य

‘मेरी उन श्रीराधा के प्रेमराज्य में मलिन काम-भोग की लेशमात्र कल्पना भी नहीं है। रागरहित श्रृंगार है, मोहरहित पवित्र प्रेम है, निज-सुख-इच्छा से रहित ममता है, स्वादरहित सब खान-पान है, अभिमान से रहित अति मान है। मेरी वे साध्यस्वरूपा श्रीराधा नित्य तृप्त हैं और श्रीमाधव की पवित्रतम परमाराध्य हैं।’

परब्रह्म परमात्मा श्रीकृष्ण से सृष्टि का आरम्भ

यह अनंत ब्रह्माण्ड परब्रह्म परमात्मा का खेल है। जैसे बालक मिट्टी के घरोंदे बनाता है, कुछ समय उसमें रहने का अभिनय करता है और अंत मे उसे ध्वस्त कर चल देता है। उसी प्रकार परब्रह्म भी इस अनन्त सृष्टि की रचना करता है, उसका पालन करता है और अंत में उसका संहारकर अपने स्वरूप में स्थित हो जाता है। यही उसकी क्रीडा है, यही उसका अभिनय है, यही उसका मनोविनोद है, यही उसकी निर्गुण-लीला है जिसमें हम उसकी लीला को तो देखते हैं, परन्तु उस लीलाकर्ता को नहीं देख पाते।

श्रीराधा का गोलोकधाम से व्रज में अवतरण : कुछ अनछुए पहलू

भगवान श्रीकृष्ण ने गोपों और गोपियों को बुलाकर कहा--’गोपों और गोपियो ! तुम सब-के-सब नन्दरायजी का जो उत्कृष्ट व्रज है, वहां गोपों के घर-घर में जन्म लो। राधिके ! तुम भी वृषभानु के घर अवतार लो। वृषभानु की पत्नी का नाम कलावती है। वे सुबल की पुत्री हैं और लक्ष्मी के अंश से प्रकट हुई हैं। वास्तव में वे पितरों की मानसी कन्या हैं। पूर्वकाल में दुर्वासा के शाप से उनका व्रजमण्डल में गोप के घर में जन्म हुआ है। तुम उन्हीं कलावती की पुत्री होकर जन्म ग्रहण करो।