vishnu bhagwan

श्रावण शुक्ल एकादशी पवित्रा और पुत्रदा एकादशी के नाम से जानी जाती है । इस दिन भगवान को पवित्रा या पवित्रक अर्पण किया जाता है । वर्ष में एक बार किया गया पवित्रारोपण पूरे वर्ष भर की हुई श्रीहरि की पूजा का फल देने वाला है ।

अग्निपुराण के अनुसार आषाढ़ की शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक की शुक्ल एकादशी तक के समय में भगवान को पवित्रारोपण किया जाता है । सभी देवताओं के लिए पवित्रारोपण करना उनके उपासकों का कर्तव्य है । इसके न करने से वर्ष भर के देवपूजन के फल से हाथ धोना पड़ता है ।साधारणत: बाजार से लाये हुए रेशम या सूत्र के पवित्रा भगवान को धारण कराये जाते हैं किन्तु शास्त्र में मणि, रत्न, सोना, चांदी, तांबा, रेशम, सूत, त्रिसर, पद्मसूत्र, कुशा, काश, मूंज, सन, कपास, बल्कल (भोजपत्र नाम के वृक्ष की छाल से बना वस्त्र) और अन्य प्रकार के रेशे आदि से पवित्रा बनाने का विधान बतलाया गया है । सत्ययुग में मणि आदि रत्नों के, त्रेता में सोने के, द्वापर में रेशम के और कलियुग में सूत्र के पवित्रा धारण कराने के लिए कहा गया है । संयासी लोग भगवान को मानसी पवित्रा अर्पण करते हैं ।

भगवान को पवित्रा क्यों धारण कराया जाता है ?

प्राचीनकाल में देवासुर संग्राम हुआ । उसमें देवताओं की विजय न होते देखकर सभी देवगण ब्रह्माजी को लेकर भगवान विष्णु की शरण में गये । उन सबकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने विजय-प्राप्ति के लिए अपने गले का पवित्रक नामक हार व ध्वज प्रदान किया और कहा कि इन्हें देखते ही असुर नष्ट हो जायेंगे । तभी से पवित्रा या पवित्रक की पूजा आरम्भ हो गयी ।

पवित्रा के तन्तुओं में नौ देवताओं—ॐकार, शिव, चन्द्रमा, अग्नि, ब्रह्मा, शेष, सूर्य, गणेश और विष्णु का निवास है । जिस देवता की जो तिथि कही गयी है, उस तिथि में उन देवताओं का पवित्रारोपण करना चाहिए । जैसे—

  • लक्ष्मीजी की द्वितीया,
  • गौरी की तृतीया,
  • गणेश की चतुर्थी,
  • सरस्वती की पंचमी,
  • कार्तिकेय की षष्ठी,
  • सूर्य की सप्तमी,
  • मातृकाओं की अष्टमी,
  • दुर्गा की नवमी,
  • यमराज की दशमी,
  • ऋषियों और भगवान विष्णु की एकादशी,
  • भगवान श्रीहरि की द्वादशी,
  • कामदेव की त्रयोदशी,
  • शिव की चतुर्दशी तथा
  • ब्रह्मा की पौर्णमासी और अमावस्या तिथि में पवित्रारोपण किया जाता है ।

जो जिस देवता का भक्त है, उनके लिए वही तिथि को पवित्रा धारण कराये ।

पवित्रारोपण की विधि सभी देवताओं के लिए समान है; केवल मन्त्र प्रत्येक देवता के लिए अलग हैं । सभी देवताओं को उनके गायत्री-मन्त्र से पवित्रारोपण किया जाता है ।

श्रेष्ठता के आधार पर पवित्रा के प्रकार

श्रेष्ठता के आधार पर पवित्रा चार प्रकार के होते हैं—

1. कनिष्ठा पवित्रा 27 तन्तुओं से बना होता है । इसकी लम्बाई नाभि तक होती है । इसके अर्पण से सुख, आयु, धन और पुत्र की प्राप्ति होती है ।

2. 54 तन्तुओं से बना पवित्रा मध्यम होता है । इसकी लम्बाई जांघ तक होती है । इसके अर्पण से दिव्य भोग और दिव्य धाम में निवास का सुख प्राप्त होता है ।

3. 108 तन्तुओं से बना उत्तम पवित्रा भगवान विष्णु को अर्पण करने से मनुष्य विष्णुधाम में निवास करता है । इसकी लम्बाई घुटनों तक होती है ।4. 1008 तन्तुओं से निर्मित पवित्रा वनमाला कहलाती है । यह भगवान की प्रतिमा के बराबर लम्बा होता है । इसका माहात्म्य सबसे अधिक है । इसके अर्पण से मनुष्य संसार-बंधन और जन्म-मृत्यु के चक्र से छूट जाता है ।

भगवान विष्णु को पवित्रा धारण कराने की विधि और मन्त्र

प्रात:काल स्नान आदि करके भगवान का पूजन करें । फिर पवित्रा को कुंकुम, चंदन, हल्दी आदि सुगन्धित पदार्थों से पूजित कर और धूप-दीप दिखाकर भगवान विष्णु को गायत्री-मन्त्र से समर्पित करना चाहिए । विष्णु गायत्री-मन्त्र है—

‘ॐ नमो नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि, तन्नो विष्णु: प्रचोदयात् ।।’

भगवान को पवित्रा पहनाते समय इस प्रकार प्रार्थना करें—

वनमाला यथा देव कौस्तुभं सततं हृदि ।
तद्वत् पवित्रं तन्तूनां मालां त्वं हृदये धर ।।

अर्थात्—हे भगवन् ! आपके हृदय पर जिस प्रकार वनमाला और कौस्तुभ विराजते हैं, उसी प्रकार तन्तुओं की बनी हुई यह माला और पवित्रक आप अपने हृदय पर धारण करें ।

फिर ‘ॐ नमो नारायणाय’ मन्त्र का १०८ बार जाप करें ।

पवित्रा एकादशी को भगवान श्रीकृष्ण को पवित्रा धारण कराते समय इस पद का पाठ करें—

श्रावण मास शुक्ल एकादशी यशोमति करत बधाई ।
अति सुगंध उबटनो उबटिकें सुन्दर श्याम न्हवाई ।।
करि सिंगार बहुत भांति परम रुचि मृगमद (कस्तूरी) तिलक बनाई ।
मोर चंद्रिका शीश बिराजत दिश दाहिनी ढरकाई ।।
पचरंग पाट बनाय पवित्रा कंचन तार गुंथाई ।
कुंकुम तिलक दियो अक्षत धरि नंदलाल पहराई ।।
विविध भोग ले आगे राखत तनक जु लियो कन्हाई ।
आरति वारत अति प्रफुलित मन शोभा वरनी न जाई ।।
देत असीस सकल व्रजवनिता चिर जीयो तुम बल दोउ भाई ।
श्रीविट्ठल पद रज प्रतापतें हरजीवन सुखदाई ।।

श्रीकृष्ण को पवित्रा घारण कराते समय यही प्रार्थना करें—‘हे कृष्ण ! आप मेरा यह पवित्रा स्वीकार करें । पहले मुझसे जो पाप बन गया हो, उसे नष्ट करके आप मुझे परम पवित्र बना दीजिए । आपकी कृपा से मैं शुद्ध हो जाऊंगा ।’

▪️शिवजी को पवित्रा चतुर्दशी तिथि को धारण कराया जाता है । शिव को पवित्रा अर्पण करते समय इस प्रकार प्रार्थना करें—‘हे शिवदेव ! आप यह पवित्रक स्वीकार कीजिए । इसके द्वारा आपके लिए मणि, मूंगे और मन्दार-पुष्प आदि से प्रतिदिन एक वर्ष तक की जाने वाली पूजा सम्पादित हो ।’

▪️भगवान को पवित्रा धारण कराने की पूजा समस्त अमंगलों और पापों का नाश करने वाली है । पवित्रारोपण हमारे पूर्वजों और भावी संतानों का भी उद्धार करने वाला है ।

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  1. अतिउपयोगी जानकारी साझा करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार🙏🙏🙏

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