shri siddhivinayak ganesh

संकष्टी, वैनायकी और अंगारकी चतुर्थी किसे कहते हैं ?

प्रत्येक माह में गणेश चतुर्थी दो बार आती है । कृष्ण पक्ष की (पूर्णिमा के बाद पड़ने वाली) चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है, यह सभी प्रकार के संकटों का नाश करने वाली मानी जाती है । शुक्ल पक्ष की (अमावस्या के बाद आने वाली)  चतुर्थी को ‘वैनायकी या वरदा चतुर्थी’ कहते हैं । उस दिन मध्याह्नकाल में भगवान गणेश का प्राकट्य होने से यह तिथि अत्यन्त फलदायिनी मानी गयी है । जब गणेश चतुर्थी मंगलवार को पड़ती है तो वह ‘अंगारकी चतुर्थी’ कहलाती है । इस दिन विघ्नहर्ता गणेश की आराधना की जाती है और व्रत रखा जाता है । ऐसा माना जाता है कि अंगारकी चतुर्थी का व्रत करने से पूरे साल भर के चतुर्थी व्रत का फल प्राप्त होता है।

अंगारकी चतुर्थी की कथा

मुद्गलपुराण व गणेश पुराण के अनुसार अवंती नगर में एक वेदपाठी ब्राह्मण भरद्वाज मुनि रहते थे । वे बड़े गणेश भक्त थे । एक बार वे नदी पर स्नान के लिए गए वहां एक अप्सरा को जलक्रीडा करते देखकर उनका तेज गिर गया जिसे पृथ्वीदेवी ने धारण किया । इससे पृथ्वीदेवी (भूमि) को रक्तवर्ण का पुत्र उत्पन्न हुआ । भूमि का पुत्र होने से यह ‘भौम’ कहलाया । सात वर्ष तक पुत्र का पालन करने के बाद पृथ्वीदेवी ने उसे पिता भरद्वाज मुनि के पास पहुंचा दिया । मुनि ने पुत्र का उपनयन संस्कार कर वेदशास्त्रों का अध्ययन कराया और गणपति-मन्त्र देकर गणेशजी को प्रसन्न करने की आज्ञा दी । मुनिपुत्र भौम गंगाजी के किनारे निराहार रहकर गणेशजी का ध्यान कर जप करने लगा ।

भौम के तप से प्रसन्न होकर श्रीगणेश ने दिया ‘अंगारक’ नाम

भौम की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर माघ कृष्ण चतुर्थी को चन्द्रोदय होने पर भगवान गणेश प्रकट हो गए और भौम से वर मांगने को कहा । प्रसन्न होकर भौम ने श्रीगणेश से कहा—

‘आज आपके दर्शन से मेरी माता, मेरे पिता, मेरा तप, मेरा जीवन, मेरी वाणी और मेरा जन्म सफल हो गया । मैं स्वर्ग में निवास कर देवताओं के साथ अमृत पान करना चाहता हूँ । मैं तीनों लोकों में कल्याण करने वाले ‘मंगल’ नाम से प्रसिद्ध होऊं । मुझे आपका दर्शन आज माघ कृष्ण चतुर्थी को हुआ है, अत: यह चतुर्थी अत्यन्त पुण्य देने वाली व संकट दूर करने वाली हो । इस दिन जो भी व्रत करे, उसकी सभी कामनाएं पूर्ण हो जाएं ।

भगवान श्रीगणेश ने कहा—‘पृथ्वीनन्दन ! तुम देवताओं के साथ अमृत का पान करोगे और ‘मंगल’ के नाम से प्रसिद्ध होओगे । तुम पृथ्वी के पुत्र हो और तुम्हारा रंग लाल है, इसलिए तुम्हारा एक नाम ‘अंगारक’ भी होगा और यह तिथि ‘अंगारक चतुर्थी’ के नाम से प्रसिद्ध होगी । 

अंगारक नाम का अर्थ—यह शरीर के अंगों की रक्षा करने वाला तथा सौभाग्य देने वाला है, इसलिए ‘अंगारक’ कहलाता है । 

श्रीगणेश ने आगे और वर देते हुए कहा—‘इस व्रत के कारण तुम अवंती नगर के परंतप नाम के राजा होकर सुख प्राप्त करोगे ।’

मंगल ने दिया श्रीगणेश को ‘मंगलमूर्ति’ नाम

मंगल ने एक भव्य मन्दिर बनवाकर उसमें दसभुज गणेश की स्थापना कराई और उनको नाम दिया ‘मंगलमूर्ति’ । मंगलमूर्ति गणेश का दर्शन, पूजन और अनुष्ठान सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला और मोक्ष देने वाला है ।

अंगारकी चतुर्थी की महिमा

विघ्नहर्ता गणेश के प्रसन्न होने से कोई भी चीज मनुष्य के लिए दुर्लभ नहीं रह जाती । भगवान गणेश ने मंगल से कहा—

  • जो भी स्त्री-पुरुष भौमवार (मंगलवार) वाली चतुर्थी को उपवास करके पहले गणेशजी का फिर मंगल का लाल चंदन और लाल पुष्प से पूजन करते हैं, उन्हें सौभाग्य, सुन्दर रूप सम्पत्ति की प्राप्ति होती है ।
  • जो मनुष्य इस दिन मेरा व्रत करेंगे उन्हें एक साल तक चतुर्थी व्रत करने का फल मिलेगा ।
  • उनके किसी भी कार्य में कभी कोई विघ्न नहीं होगा ।
  • कुंडली में मंगल ग्रह की उग्रता समाप्त होकर सौम्यता आ जाएगी अर्थात् मंगल दोष दूर हो जाएगा ।
  • इस व्रत के प्रताप से परदेश में भी व्यक्ति सुख से रहते हैं ।
  • यह व्रत मनुष्य की सभी कामनाओं को पूरा कर पुत्र-पौत्र प्रदान करता है ।
  • अंगारकी चतुर्थी का व्रत करने वाला चन्द्रमा के समान कांतिमान, सूर्य के समान तेजस्वी व वायु के समान बलवान हो जाता है । श्रीगणेश की कृपा से मृत्युपर्यन्त  उनके गणेशलोक में निवास करता है ।

भौम ने ‘अंगारकी चतुर्थी’ का व्रत कर गणेश की आराधना की थी इसलिए वे सशरीर स्वर्ग गए और देवताओं के साथ अमृत का पान किया ।

अंगारकी चतुर्थी व्रत की पूजा विधि

चतुर्थी के दिन प्रात: स्नानादि करके लाल वस्त्र धारण करें । चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर श्रीगणेशमूर्ति की स्थापना करें ।  दाहिने हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प और जल लेकर संकल्प करें कि मैं आज ‘अंगारकी चतुर्थी’ का व्रत व पूजा पूरी श्रद्धा से करुंगा ।’ भगवान श्रीगणेश का लाल पुष्पों से षोडशोपचार पूजन करें । श्रीगणेश को ११ या २१ दूर्वा का मुकुट बनाकर सिर पर चढाएं और मस्तक पर सिंदूर अर्पित करें । लड्डुओं का नैवेद्य लगाएं । इतना ना हो सके तो गणेशजी तो दूर्वा के दो दल व केला, जामुन और वन्यफलों से ही प्रसन्न हो जाते हैं  । इसके बाद कपूर और घी की बाती से आरती कर पुष्पांजलि और नमस्कार करें । 

प्रार्थना मन्त्र है–
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय 
लम्बोदराय सकलाय जगद्विताय ।
नागानयाय श्रुतियज्ञ विभूषिताय
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते ।।

अंत में परिक्रमा कर क्षमा प्रार्थना करें—

आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व गणेश्वर ।।
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम् ।
तस्मात्कारुण्य भावेन रक्षस्व विघ्नेश्वर ।।
गतं पापं गतं दुखं गतं दारिद्रयमेव च ।
आगता सुख सम्पत्ति पुण्याच्च तव दर्शनात्।।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर ।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ।।

चतुर्थी व्रत में पूजा के अंत में चतुर्थी व्रत कथा सुनने की बड़ी महिमा बतायी गयी है । पौराणिक कथाओं के साथ कुछ लोक-कथाएं भी कही-सुनी जाती हैं ।इस दिन ‘ॐ गं गणपतये नम:’ और  ‘अंगारकाय भौमाय नम:‘ इस मन्त्र की एक माला का जप करना चाहिए । चन्द्रोदय होने पर चन्द्रमा का पूजन कर अर्घ्य दें, वायना देकर स्वयं भोजन करें तो सुख, सौभाग्य और सम्पत्ति की प्राप्ति होती है ।

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