ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी ‘निर्जला एकादशी’ के नाम से जानी जाती है । अन्य महीनों की एकादशी को फलाहार किया जाता है; परंतु जैसा कि इस एकादशी के नाम से स्पष्ट है, इसमें फल तो क्या जल भी ग्रहण नहीं किया जाता है । इसलिए गर्मी के मौसम में यह एकादशी बड़े तप व कष्ट से की जाती है । यही कारण है कि इसका सभी एकादशियों से अधिक महत्व है । अधिक मास सहित एक वर्ष की छब्बीसों एकादशी न की जा सकें तो केवल निर्जला एकादशी का व्रत कर लेने से वर्ष की सभी एकादशी करने का फल प्राप्त हो जाता है ।
निर्जला एकादशी को कैसे करें भगवान का पूजन ?
एकादशी तिथि को पूजन और व्रत करने वाले मनुष्य को काम, क्रोध, अहंकार, लोभ और चुगली जैसी बुराइयों का त्याग कर इन्द्रिय-संयम का पालन करना चाहिए; तभी उसका व्रत और पूजा पूर्ण होगी; अन्यथा वह निष्फल हो जाएगी । व्रत-पूजन पूरी श्रद्धा और भाव से करना चाहिए ।
▪️ निर्जला एकादशी को प्रात:काल स्नान आदि के बाद शुद्ध वस्त्र धारण करें ।
▪️ फिर व्रती को सबसे पहले भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए—‘हे केशव ! एकादशी-व्रत के पालन में मेरी इंद्रियों द्वारा कोई गलती हो जाए या मेरे दांतों में पहले से अन्न अटका हो तो हे करुणामय ! आप इन सब बातों को क्षमा कर दें ।’
▪️ भगवान को पात्र में तुलसी-पत्र रख कर पंचामृत से स्नान करायें । फिर चंदनयुक्त जल से स्नान कराएं । तत्पश्चात् शुद्ध जल से स्नान कराएं ।
▪️ भगवान के विग्रह को स्वच्छ वस्त्र से पौंछ कर उनके समस्त अंगों में इत्र का लेप करें ।
▪️ भगवान को सुंदर वस्त्र और श्रृंगार धारण करायें ।
▪️ भगवान को कपूर-केसर युक्त चंदन का तिलक व कुंकुम लगाएं ।
▪️ फूलमाला और मंजरी सहित तुलसीदल अर्पित करें ।
▪️ अब भगवान की विशेष अंग पूजा करें । इसके लिए सुन्दर व साबुत पुष्प ले लें—
‘दामोदराय नम:’ कह कर भगवान के दोनों चरणों पर पुष्प अर्पण करें ।
‘माधवाय नम:’ कह कर भगवान के दोनों घुटनों पर पुष्प चढ़ाएं ।
‘कामप्रदाय नम:’ कह कर भगवान की दोनों जांघों पर पुष्प चढ़ाएं ।
‘वामनमूर्तये नम:’ कह कर भगवान के कटिप्रदेश पर पुष्प चढ़ाएं ।
‘पद्मनाभाय नम:’ कह कर भगवान की नाभि पर पुष्प चढ़ाएं ।
‘विश्वमूर्तये नम:’ कह कर भगवान के उदर (पेट) पर पुष्प अर्पित करें ।
‘ज्ञानगम्यायय नम:’ कह कर भगवान के हृदय पर पुष्प अर्पित करें ।
‘वैकुण्ठगामिने नम:’ कह कर भगवान के कण्ठ पर पुष्प अर्पित करें ।
‘सहस्त्रबाहवे नम:’ कह कर भगवान के बाहुओं पर पुष्प अर्पित करें ।
‘योगरुपिणे नम:’ कह कर भगवान के नेत्रों से पुष्प लगा कर अर्पित करें ।
‘सहस्त्रशीर्ष्णे नम:’ कह कर भगवान के सिर पर पुष्प अर्पित करें ।
▪️ इसके बाद भगवान को तरह-तरह के रसों से पूर्ण नैवेद्य और ऋतुफल अर्पित करें ।
▪️ भगवान को पान का बीड़ा (ताम्बूल) निवेदित करें ।
▪️ पूजा में घी का या तिल के तेल का दीपक जलाएं । धूप निवेदित करें ।
▪️ भगवान की आरती उतारते समय चार बार चरणों में, दो बार नाभि पर, एक बार मुखमण्डल पर व सात बार सभी अंगों पर घुमाने का विधान है । इसके बाद शंख में जल लेकर भगवान के चारों ओर घुमाकर अपने ऊपर तथा अन्य सदस्यों पर जल छोड़ दें ।
▪️ फिर ठाकुरजी को साष्टांग प्रणाम करें ।
▪️ अंत में प्रार्थना करें—‘जगदीश्वर ! यदि आप सदा स्मरण करने पर मनुष्य के सब पाप हर लेते हैं तो देव ! मेरे दु:स्वप्न, अपशकुन, मानसिक चिन्ताएं, नरक का भय तथा दुर्गति सम्बन्धी सभी कष्ट दूर कीजिए । मेरे लिए इहलोक या परलोक में जो भय हैं, उनसे मेरी व मेरे परिवार की रक्षा कीजिए । आपको नमस्कार है । मेरी भक्ति सदा आपमें ही बनी रहे ।’
▪️ एकादशी माहात्म्य की कथा संभव हो तो ब्राह्मण से सुने अथवा स्वयं पाठ करे ।
▪️ एकादशी व्रत में रात्रि जागरण का विशेष महत्व है । इसमें भगवान के भजनों का गायन, नृत्य और पुराणों की कथा सुनने का अनंत फल बताया गया है । स्वयं ही सद्-ग्रन्थों का अध्ययन करना भी बहुत पुण्यदायी माना गया है ।
पद्मपुराण में कहा गया है—‘श्रीहरि की प्रसन्नता के लिए जागरण करके मनुष्य पिता, माता और पत्नी—तीनों के कुलों का उद्धार कर देता है । समस्त यज्ञ और चारों वेद भी श्रीहरि के निमित्त किए जाने वाले जागरण के स्थान पर उपस्थित हो जाते हैं ।’
▪️ द्वादशी के दिन ब्राह्मण को अपनी सामर्थ्यानुसार जलयुक्त कलश, सुवर्ण, भोजन व दक्षिणा देकर व्रती को भोजन करना चाहिए ।
विशेष पुण्य प्राप्ति के लिए इस दिन करें ये काम
▪️ गायों की पूजा कर उन्हें हरा चारा खिलायें ।
▪️ इस दिन घड़ा, पंखा, ऋतु फल और चीनी ब्राह्मण को दान करने का विशेष महत्व है ।
▪️ भीषण गर्मी में पक्षियों के लिए पीने का जल रखें ।
निर्जला एकादशी के व्रत का फल
▪️ इस दिन मनुष्य स्नान, दान, जप, होम आदि जो कुछ भी करता है, वह सब अक्षय होता है ।
▪️ निर्जला एकादशी का व्रत मनुष्य की आयु व आरोग्य की वृद्धि करने वाला है ।
▪️ इस व्रत का विधि-विधान से पालन करने से मनुष्य को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है ।
▪️ इस व्रत को करने से स्त्रियों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है ।
▪️ मनुष्य पापों से मुक्त होकर ऐश्वर्यवान हो जाता है ।
▪️ इस व्रत को करने से झूठ बोलने, बुराई करने, ब्रह्म-हत्या और गुरु के साथ विश्वासघात आदि से जो पाप लगता है, वह दूर हो जाता है ।
कथा
पांडवों में भीमसेन सबसे अधिक बलशाली थे । उनके पेट में ‘वृक’ नाम की अग्नि थी; इसलिए उन्हें ‘वृकोदर’ कहते हैं । भीमसेन ने नागलोक में जाकर वहां के दस कुण्डों का रस पी लिया था; इसलिए उनमें दस हजार हाथियों का बल आ गया था । इस रस के पीने से उनकी भोजन पचाने की क्षमता और भूख बढ़ गई थी ।
द्रौपदी सहित सभी पांडव एकादशियों का व्रत करते थे; परंतु भीम के लिए एकादशी व्रत करना दुष्कर था । अत: व्यासजी ने भीमसेन से केवल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का व्रत रहने को कहा तथा बताया कि इससे तुम्हें वर्ष भर की एकादशियों के बराबर फल प्राप्त होगा ।व्यासजी के आदेशानुसार भीमसेन ने निर्जला एकादशी का व्रत किया और स्वर्ग गए । इस कारण यह एकादशी ‘भीमसेनी एकादशी’ या ‘भीम ग्यारस’ के नाम से भी जानी जाती है ।