सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:

मानव जीवन की दो प्रधान भावनाएं हैं—स्वार्थ भावना और परहित भावना । स्वार्थ भावना मनुष्य के हृदय को संकीर्ण और निम्न स्तर का बना देती है; लेकिन परहित की भावना मनुष्य के हृदय को उज्ज्वल कर विशाल बना देती है । दूसरों के दु:ख दूर करने से स्वयं में आनन्द का आभास होता है । परमात्मा को भी ऐसे ही मनुष्य अत्यंत प्रिय होते हैं । इस प्रकार की प्रार्थना करने वाले मनुष्यों की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं ।

भय से मुक्ति के लिए गौ स्तुति

गाय की सेवा करने से जीते-जी तो हर प्रकार का सुख, संतोष और शांति प्राप्त होती ही है, गोदान करने से मरने के बाद यमराज का भय नहीं रहता है ।

प्रात:काल स्मरण किए जाने वाले कल्याणकारी श्लोक

प्रात:काल की अमृतबेला परमात्मा से बातचीत करने का समय है । इस समय सोकर उठते समय यदि परमपिता परमात्मा का नाम-स्मरण कर लिया जाए तो वह मनुष्य के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है ।

स्वस्थ व सुखी जीवन के स्वर्णिम सूत्र

यदि मनुष्य बार-बार यह कहे कि ‘मैं बीमार हूँ, मैं बीमार हूँ, मुझे कोई रोग हो गया है’ तो यह सिद्ध बात है कि कुछ ही समय में उसका शरीर रोगी हो जाएगा । सुख-दु:ख कभी बाहर से नहीं आते । जिसके मन में दु:ख के लिए कोई स्थान नहीं है, वह कभी दु:खी नहीं हो सकता, वह तो सदा सुखी ही रहेगा । इसलिए मनुष्य को कभी भी नकारात्मक विचारों को अपने मन में स्थान नहीं देना चाहिए ।

वेदमाता गायत्री : तीन नाम, तीन रूप और तीन ध्यान

गायत्री यद्यपि एक वेद का छन्द है, लेकिन इसकी एक देवी के रूप में मान्यता है । एक ही ईश्वरीय शक्ति जब भिन्न-भिन्न स्थितियों में होती है, तब भिन्न-भिन्न नामों से पुकारी जाती है । गायत्री को तीन नामों से पुकारा जाता है । आरम्भ, तरुणाई और परिपक्वता—इन तीन भेदों के कारण एक ही गायत्री शक्ति के तीन नाम रखे गए हैं । आरम्भिक अवस्था में गायत्री, मध्य अवस्था में सावित्री और अंत अवस्था में सरस्वती ।

गान करने पर त्राण करने वाली श्रीगायत्री चालीसा

गायत्री मन्त्र केवल यज्ञोपवीत धारियों को जपना चाहिए या सभी उसका जप कर सकते हैं; इस पर तो एक राय नहीं है । इसलिए जिन्होंने गुरु दीक्षा नहीं ली है या जो यज्ञोपवीतधारी नहीं हैं; वे ‘गायत्री चालीसा’ का पाठ कर सकते हैं ।

चर्पट पंजरिका स्तोत्र

माता-पिता, भाई-बंधु, स्त्री-पुत्र, अपना शरीर, धन, मकान, मित्र और परिवार ये सब ममता के कच्चे धागे हैं । मनुष्य ममता के इन कच्चे धागों को बटोर कर एक मजबूत रस्सी बना ले और उसे भगवान के चरणकमलों से बांध दे । ममता के ये धागे कच्चे इसलिए हैं; क्योंकि जरा सा स्वार्थ टकराया, ये टूट जाते हैं । ममता दु:खरूप वासना है; परंतु भगवान का प्रेम मोक्षप्रद और उपासना है ।

वेद में परमात्मा की स्तुति : पुरुष सूक्त

वेदों में मनुष्य के कल्याण के लिए ‘सूक्त’ रूपी अनेक मणियां हैं । सूक्त में देवी या देवता विशेष के ध्यान, पूजन तथा स्तुति का वर्णन होता है । इन सूक्तों के जप और पाठ से सभी प्रकार के क्लेशों से मुक्ति मिल जाती है, व्यक्ति पवित्र हो जाता है और उसे मनो अभिलाषित की प्राप्ति होती है । विराट् पुरुष के वैदिक स्तवन पुरुष सूक्त की बड़ी महिमा है । इसके नित्य पाठ से मनुष्य परम तत्त्व को जानने में सक्षम होता है और उसकी मेधा, प्रज्ञा और भक्ति की वृद्धि होती है ।

श्रीमद् आदिशंकराचार्य द्वारा कृष्णभक्ति में रचित अच्युताष्टकम्

श्रीमद् आदिशंकराचार्य द्वारा रचित अच्युताष्टकम् भगवान श्रीहरि को प्रसन्न करने वाला स्तोत्र है । जिन पापों की शुद्धि के लिए कोई उपाय नहीं, उनके लिए भगवान के नामों के स्तोत्र का पाठ करना सबसे अच्छा साधन है । नामों का पाठ मंगलकारी, मनवांछित फल देने वाला, दु:ख-दारिद्रय, रोग व ऋण को दूर करने वाला और आयु व संतान को देने वाला माना गया है ।