शरत्पूर्णिमा और महालक्ष्मी
शरत्पूर्णिमा को रात्रि में महालक्ष्मी की पूजा होती है । इस दिन रात्रि में महालक्ष्मी यह देखने के लिए पृथ्वी पर घूमती हैं कि ‘कौन जाग रहा है’—‘को जागर्ति’ । जो जाग कर उनकी आराधना करता है उसे वह धन देती हैं इसलिए इस दिन को ‘कोजागरी’ कहते हैं । इस दिन रात्रि में जागरण का महत्त्व है । यदि रात्रि जागरण न कर सकें तो महालक्ष्मी के नाम व स्तोत्र का पाठ भी उतना ही फलदायी है ।
महालक्ष्मी का ‘कमला’ नाम
महालक्ष्मी का एक नाम कमला’ है । दस महाविद्याओं में देवी कमला का दसवां स्थान है । कमला महाविष्णु की वैष्णवी शक्ति हैं और भगवान के वक्ष:स्थल में निवास करती हैं । भगवान विष्णु विश्व के आधार हैं तो कमला उनकी शक्ति हैं । देवी कमला की आराधना वास्तव में जगत के आधार भगवान विष्णु की ही आराधना है ।
कमल और कमला
- देवी कमला कमल के आसन पर विराजमान (कमलारूढ़ा, पद्मारूढ़ा) है,
- कमल के से रंग वाली (पद्मवर्णा) हैं,
- उनका मुख कमल के समान (पद्मानना) है,
- वे कमल के-से नेत्र वाली (कमलाक्षी) हैं
- कमल माला धारण करने वाली (पद्ममालाविभूषिता, पद्ममाला) हैं
- दोनों हाथों में कमलधारिणी (पद्मयुग्मधरायै) हैं
- तथा कमल वन में ही निवास करती (पद्मवनवासिनी) हैं ।
अपनी चार भुजाओं में ये वर तथा अभय मुद्रा और दोनों हाथों में दो कमल लिए हैं । चार गजराज अपनी शुंडों से उठाये गए घड़ों के जल से इनका अभिषेक करते हैं ।
सौभाग्य और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं कमला
देवी कमला बहुत उदार, दयामयी, यश और त्रिलोकी का वैभव देने वाली हैं । नाम-स्मरण से ही प्रसन्न होकर वे साधक को कुबेर के समान धन-सम्पत्ति (धन-धान्य, गाय, घोड़े, पुत्र, बन्धु-बांधव, दास-दासी) प्रदान करती हैं ।
सभी देवता राक्षस, मनुष्य, सिद्ध, गन्धर्व इनकी कृपा के लिए लालायित रहते हैं क्योंकि इनकी कृपा के बिना देव, दानव व मानव सम्पत्ति और शक्ति विहीन होकर पंगु हो जाते हैं । ये सात्विक, शुद्ध आचार-विचार और धर्म-मार्ग पर चलने वाले भक्त पर शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं ।
पाठकों के लाभ के लिए इस पोस्ट में देवी कमला के 108 नाम हिन्दी में और उनके 108 नाम का (अष्टोत्तरशत नाम) स्तोत्र दिया जा रहा है ।
देवी कमला के 108 नाम
- महामाया
- महालक्ष्मी
- महावाणी
- महेश्वरी
- महादेवी
- महारात्रि
- महिषासुरमर्दिनी
- कालरात्रि
- कुहू
- पूर्णा
- आनन्दा
- आद्या
- भद्रिका
- निशा
- जया
- रिक्ता
- महाशक्ति
- देवमाता
- कृशोदरी
- शची
- इन्द्राणी
- शक्रनुता
- शंकरप्रियवल्लभा
- महावराहजननी
- मदनोन्मथिनी
- मही
- वैकुण्ठनाथरमणी
- विष्णुवक्ष:स्थलस्थिता
- विश्वेश्वरी
- विश्वमाता
- वरदा
- अभयदा
- शिवा
- शूलिनी
- चक्रिणी
- मा
- पाशिनी
- शंखधारिणी
- गदिनी
- मुण्डमाला
- कमला
- करुणालया
- पद्माक्षधारिणी
- अम्बा
- महाविष्णुप्रियंकरी
- गोलोकनाथरमणी
- गोलोकेश्वरपूजिता
- गया
- गंगा
- यमुना
- गोमती
- गरुड़ासना
- गण्डकी
- सरयू
- तापी
- रेवा
- पयस्विनी
- नर्मदा
- कावेरी
- केदारस्थलवासिनी
- किशोरी
- केशवनुता
- महेन्द्रपरिवन्दिता
- ब्रह्मादिदेवनिर्माणकारिणी
- वेदपूजिता
- कोटिब्रह्माण्डमध्यस्था
- कोटिब्रह्माण्डकारिणी
- श्रुतिरूपा
- श्रुतिकरी
- श्रुतिस्मृतिपरायणा
- इन्दिरा
- सिन्धुतनया
- मातंगी
- लोकमातृका
- त्रिलोकजननी
- तन्त्री
- तन्त्रमन्त्रस्वरूपिणी
- तरुणी
- तमोहन्त्री
- मंगला
- मंगलायना
- मधुकैटभमथनी
- शुम्भासुरविनाशिनी
- निशुम्भादिहरा
- माता
- हरिशंकरपूजिता
- सर्वदेवमयी
- सर्वा
- शरणागतपालिनी
- शरण्या
- शम्भुवनिता
- सिन्धुतीरनिवासिनी
- गन्धर्वगानरसिका
- गीता
- गोविन्दवल्लभा
- त्रैलोक्यपालिनी
- तत्त्वरूप
- तारुण्यपूरिता
- चन्द्रावली
- चन्द्रमुखी
- चन्द्रिका
- चन्द्रपूजिता
- चन्द्रा
- शशांकभगिनी
- गीतवाद्यपरायणा
- सृष्टिरूपा
- सृष्टिकरी
- सृष्टिसंहारकारिणी
देवी कमला का अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र
इस स्तोत्र का उपदेश भगवान शिव ने पार्वतीजी को दिया था ।
शतमष्टोत्तरं नाम्नां कमलाया वरानने ।
प्रवक्ष्याम्यति गुह्यं हि न कदापि प्रकाशयेत् ।।
महामाया महालक्ष्मीर्महावाणी महेश्वरी ।
महादेवी महारात्रिर्महिषासुरमर्दिनी ।।
कालरात्रि: कुहू: पूर्णानन्दाद्या भद्रिकानिशा ।
जया रिक्ता महाशक्तिर्देवमाता कृशोदरी ।।
शचीन्द्राणी शक्रनुता शंकरप्रियवल्लभा ।
महावराहजननी मदनोन्मथिनी मही ।।
वैकुण्ठनाथरमणी विष्णुवक्ष:स्थलस्थिता ।
विश्वेश्वरी विश्वमाता वरदाभयदा शिवा ।।
शूलिनी चक्रिणी मा च पाशिनी शंखधारिणी ।
गदिनी मुण्डमाला च कमला करुणालया ।।
पद्माक्षधारिणी ह्यम्बा महाविष्णुप्रियंकरी ।
गोलोकनाथरमणी गोलोकेश्वरपूजिता ।।
गया गंगा च यमुना गोमती गरुड़ासना ।
गण्डकी सरयू तापी रेवा चैव पयस्विनी ।।
नर्मदा चैव कावेरी केदारस्थलवासिनी ।
किशोरी केशवनुता महेन्द्रपरिवन्दिता ।।
ब्रह्मादिदेवनिर्माणकारिणी वेदपूजिता ।
कोटिब्रह्माण्डमध्यस्था कोटिब्रह्माण्डकारिणी ।।
श्रुतिरूपा श्रुतिकरी श्रुतिस्मृतिपरायणा ।
इन्दिरा सिन्धुतनया मातंगी लोकमातृका ।।
त्रिलोकजननी तन्त्री तन्त्रमन्त्रस्वरूपिणी ।
तरुणी च तमोहन्त्री मंगला मंगलायना ।।
मधुकैटभमथनी शुम्भासुरविनाशिनी।
निशुम्भादिहरा माता हरिशंकरपूजिता ।।
सर्वदेवमयी सर्वा शरणागतपालिनी।
शरण्या शम्भुवनिता सिन्धुतीरनिवासिनी ।।
गन्धर्वगानरसिका गीता गोविन्दवल्लभा ।
त्रैलोक्यपालिनी तत्त्वरूपतारुण्यपूरिता ।।
चन्द्रावली चन्द्रमुखी चन्द्रिका चन्द्रपूजिता ।
चन्द्रा शशांकभगिनी गीतवाद्यपरायणा ।।
सृष्टिरूपा सृष्टिकरी सृष्टिसंहारकारिणी ।
इति ते कथितं देवि रमानाम शताष्टकम् ।।
त्रिसंध्यं प्रयतो भूत्वा पठेदेतत्समाहित: ।
यं यं कामयते कामं तं तं प्रान्नोत्य संशय: ।।
इमं स्तवं य: पठतीह मर्त्यो वैकुण्ठपत्न्या: परमादरेण ।
धनाधिपाद्यै: परिवन्दित: स्यात् प्रयास्यति श्रीपदमन्तकाले ।।
स्तोत्र पाठ का फल
देवी कमला की स्तुति पाठ से मनुष्य में शील, विद्या, विनय, उदारता, गाम्भीर्य व कान्ति आदि समस्त गुण आ जाते हैं और वह सभी का प्रिय व आदर का पात्र बन जाता है और अंत में मां के चरणों में स्थान प्राप्त करता है ।