bhagwan vishnu

सभी रसायन हम करी नहीं नाम सम कोय।
रंचक घट मैं संचरै, सब तन कंचन होय।।

सारा संसार आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक रोगों से ग्रस्त है। कभी-कभी सभी प्रकार की दवाएं कर लेने पर भी रोग मिटता नहीं, डॉक्टर भी रोग को पहचान नहीं पाते हैं। ऐसी स्थिति में भगवान का नाम-जप ही वह रसायन (औषधि) है जो मनुष्य के शारीरिक व मानसिक रोगों का नाश कर काया को कंचन की तरह बना देता है। जैसे भगवान में अनन्त चमत्कार हैं, अनन्त शक्तियां हैं; वैसे ही अनन्त शक्तियों से भरे उनके नाम जादू की पिटारी हैं जो लौकिक रोगों की तो बात ही क्या, भयंकर भवरोग को भी मिटा देते हैं।

भगवान धन्वन्तरि और नामत्रय मन्त्र

भगवान धन्वन्तरि समुद्र-मंथन से प्रकट हुए। उन्होंने देवताओं व ऋषियों को औषधि, रोग-निदान और उपचार आदि के बारे में बताया। सभी रोगों पर समान और सफल रूप से कार्य करने वाली महौषधि (सबसे बड़ी दवा) के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा–

अच्युतानन्तगोविन्द नामोच्चारण भेषजात्।
नश्यन्ति सकला रोगा: सत्यं सत्यं वदाम्यहम्।।

अर्थात्–‘अच्युत, अनन्त, गोविन्द–इन नामों के उच्चारणरूपी औषधि से समस्त रोग दूर हो जाते हैं, यह मैं सत्य-सत्य कहता हूँ।’

इस श्लोक में ‘सत्य’ शब्द दो बार कहा गया है जिसका अर्थ है यह बात अटल सत्य है कि श्रद्धा और विश्वास के साथ इस श्लोक का जप करने से सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं। रोग-निवारक औषधि के रूप में भगवान विष्णु के तीन नामों का यह श्लोक बहुत चमत्कारी है। इस श्लोक में भगवान के तीन नामों–‘अच्युत’, ‘अनन्त’ और ‘गोविन्द’ का उल्लेख किया गया है। यदि संस्कृत में इस श्लोक का जप करने में असुविधा हो तो भगवान के केवल इन तीन नामों का जप किया जा सकता है।

भगवान विष्णु के तीन नाम हैं अमोघ मन्त्र

‘अच्युत’, ‘अनन्त’ और ‘गोविन्द’ ये भगवान विष्णु के तीन नाम अमोघ मन्त्र हैं। इन नामों के शुरु में ‘ॐ’ (प्रणव) और अंत में ‘नम:’ लगा कर इनका जप करना चाहिए–

ॐ अच्युताय नम:
ॐ अनन्ताय, नम:
ॐ गोविन्दाय नम:

इस तीन नामरूपी मन्त्र का एकाग्रचित्त होकर जप करने से विष, रोग और अग्नि से होने वाली अकालमृत्यु का भय नहीं होता है। सभी प्रकार के रोगों से तथा शारीरिक व मानसिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। इन नामों के जप करते रहने से कार्यों में सफलता मिलती है। भगवान विष्णु के इन नामों का जप उठते-बैठते, चलते-फिरते, सोते-जागते सब समय किया जा सकता है–

साँस साँस सुमिरन करौ, यह उपाय अति नीक।

संजीवनी बूटी है भगवन्नाम

भगवान की भक्ति संजीवनी बूटी और श्रद्धा पथ्य है। जिस प्रकार असाध्य रोगों की शान्ति संजीवनी बूटी से ही हो पाती है, उसी प्रकार शारीरिक व मानसिक रोगों का नाश भगवान की आराधना व नाम-जप से हो जाता है। वेदव्यासजी ने कहा है–’सब रोगों की शान्ति के लिए भगवान विष्णु का ध्यान, पूजन व जप सर्वोत्तम औषधि है।’

भगवन्नाम-स्मरण से रोग कैसे दूर हो जाते हैं?

भगवन्नाम-स्मरण से रोग कैसे दूर हो जाते हैं?–इसका उत्तर कर्मसिद्धान्त में छुपा है। शास्त्रों के अनुसार पूर्वजन्म के शुभ-अशुभ कर्मों के अनुसार ही हमें जीवन में सुख-दु:ख, रोक-शोक तथा दरिद्रता आदि प्राप्त होते है। गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है–

करम प्रधान बिस्व करि राखा।
जो जस करइ सो तस फलु चाखा।।

हमारे शरीर में जो भी रोग होते हैं, उनका कारण हमारे पूर्वजन्म में या इस जन्म में किए हुए पापकर्म ही होते हैं। भगवान के नाम-जप से पाप नष्ट होने लगते हैं और इसी कारण पापजन्य रोग भी दूर होने लगते हैं। प्रारब्धजन्य रोग के मिटने में दवाई तो केवल नाममात्र काम करती है। मूल में तो प्रारब्ध समाप्त होते ही रोग भी मिट जाता है। संसार में कोई रोग ऐसा नहीं है जो प्रारब्ध-कर्म के क्षय होने पर ठीक न हो। इसीलिए शास्त्रों में प्रतिदिन भगवन्नाम-जप करने को कहा जाता है।

नाम-त्रय-मन्त्र की महिमा

▪️पद्मपुराण में एक कथा है कि समुद्र-मंथन के समय सबसे पहले कालकूट नामक महाभयंकर विष प्रकट हुआ जो प्रलयकाल की अग्नि के समान था। उसे देखते ही सभी देवता और दानव भय के मारे भागने लगे। भगवान शंकर ने देवताओं और दानवों से कहा–’तुम लोग इस विष से भय न करो। इस कालकूट नामक महाभयंकर विष को मैं अपना आहार बना लूंगा।’

उनकी बात सुनकर सभी देवता भगवान शंकर के चरणों में गिर गए। शंकरजी ने सर्वदु:खहारी भगवान नारायण का ध्यान और तीन नामरूपी (नामत्रय) महामन्त्र का जप करते हुए उस महाभयंकर विष को पीकर कण्ठ में धारण कर लिया और ‘नीलकण्ठ’ बनकर संसार को भस्मीभूत होने से बचा लिया।

▪️ ऐसा कहा जाता है कि देवी ललिता के साथ युद्ध में असुर भंडासुर ने रोगिनी-अस्त्र का प्रयोग किया। इस अस्त्र के प्रभाव से सारी सेना विभिन्न रोगों से ग्रस्त हो जाती है। रोगिनी-अस्त्र के बचाव के लिए देवी ललिता ने नामत्रय मन्त्र का प्रयोग किया था।

दृढ़ विश्वास, श्रद्धा, भगवान में सच्ची प्रीति तथा आस्तिक भावना धारण करने से भगवान अवश्य ही अपने भक्तों का कष्ट निवारण करते हैं। प्रभु पर सब कुछ छोड़ देने से मनुष्य निश्चिन्त हो जाता है और उसके सारे कष्टों का अंत हो जाता है। केवल विश्वास करने भर की देर है–

अनाथ कौन है यहां, त्रिलोकनाथ साथ हैं।
दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं।।

8 COMMENTS

  1. Dhanya hain apki prabhu bhakti or lila lekhan ki lalak, ap prabhu ki lila ka lekhani dwara vistarpurvak varnan karti hain aur prabh ke bhakto ke hriday me bhakti jagati hai. Ap ki jai ho mera barambar pranam.

  2. Prahuji ko barmbar DHANYAVAD jo aap hame mile. Bahgwat main Bhagvan Shrikrishna ne kaha bhi hai ki jispe main kripa karta hu to uski pahchaan HARIBHAKTON se kara deta hun. So dhanya bhagya hamare jo aapka sanidhya mila. Ye meri jibancharya main hamesha rahega aisi aakanksha ke sath–Brijesh Dixit. SAGAR (M.P.)

  3. Namaskar Brijeshji!
    Dnanya bhagya hamare hai jo hame aap jaise bhakton ka saath mila. shriradhaji se meri yahi prarthana hai ki mei iss jeevan mei kuchh achcha kar jaun.
    अर्पण हैं मेरे सदा तुममें जीवन प्राण।
    तुम्हीं एक आधार हो तुम्हीं परम कल्याण।।
    तुम्हीं मेरी परम गति प्रीति बिना परिणाम।
    मिलो तुरत करो सदा विरह कष्ट से त्राण।।

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