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भगवान श्री राधाकृष्ण शरणागति स्तोत्र

जो मनुष्य भगवान श्री राधाकृष्ण की चरण-सेवा का अधिकार बहुत शीघ्र प्राप्त करना चाहते हैं, उनको इस स्तोत्र (प्रार्थनामय मंत्र) का नित्य जप करना चाहिए । इसके लिए साधक को जीवन भर ‘चातकी भाव’ से इस प्रार्थना का पाठ करना चाहिए ।

भगवान के श्रीविग्रह में इतना प्रकाश क्यों होता है ?

गोपियां माता यशोदा से शिकायत करने गईं कि कन्हैया हमारा माखन खा जाता है । माता यशोदा ने कहा कि तुम सब अपने माखन को अंधेरे नें रखो तो कन्हैया को दिखाई नहीं पड़ेगा । तब गोपियों ने कहा—‘मां ! हम तो माखन अंधेरे में ही रखती हैं; परंतु कन्हैया के आते ही अंधेरे में भी उजाला हो जाता है । उसका श्रीअंग दीपक जैसा तेजोमय है ।

भक्त के प्रेम में भगवान बन गए तराजू का बाट

भगवान का दूसरा नाम प्रेम है और वे प्रेम के अधीन हैं । वे प्रेम के अतिरिक्त अन्य किसी साधन से नहीं रीझते हैं । प्रेमवश वह कुछ भी कर सकते हैं, कहीं भी सहज उपलब्ध हो सकते हैं । तुच्छ-से-तुच्छ मनुष्य के हृदय में भी यदि भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति आ जाए तो भक्ति की प्रेम-डोर से बंध कर भगवान उसके घर तक पहुँच जाते हैं और उसके पीछे-पीछे डोलते हैं ।

भगवान का रूप इतना सुन्दर क्यों होता है ?

ऐसा माना जाता है कि सभी दिव्य गुणों और भूषणों—मुकुट, किरीट, कुण्डल आदि ने युग-युगान्तर, कल्प-कल्पान्तर तक तपस्या कर भगवान को प्रसन्न किया । भगवान बोले—‘वर मांगो ।’ गुणों और आभूषणों ने कहा—‘प्रभो ! आप हमें अंगीकार करें और हमें धारण कर लें । यदि आप हमें स्वीकार नहीं करेंगे तो हम ‘गुण’ कहने लायक कहां रह जाएंगे ? आभूषणों ने कहा—‘यदि आप हमें नहीं अपनाएगें तो हम ‘भूषण’ नहीं ‘दूषण’ ही बने रहेंगे ।’ भगवान ने उन सबको अपने विग्रह में धारण कर लिया ।

विभिन्न कार्यों को करते समय भगवान के विभिन्न नामों का स्मरण

विभिन्न रुचि, प्रकृति और संस्कारों के मनुष्यों के लिए भगवान ने स्वयं को अनेक नामों से व्यक्त किया है । प्रत्येक नाम का अर्थ वह परमात्मा ही है। भगवान विविध नामों में और विचित्र रूपों में अवतीर्ण होकर विचित्र भाव और रस के खेल खेलकर माया से मोहित सांसारिक जीवों को अपनी ओर आकर्षित करते है और उनको सब प्रकार के दुखों से मुक्त करके अपना परमानन्द देने का प्रयास करते हैं । इससे अधिक उनकी करुणा का परिचय क्या हो सकता है ?

परमात्मा की प्राप्ति में भाव ही प्रधान है

बालगोपाल बोले—‘तुमने मेरा अर्चन किया ही कब ? तुम तो जड़ मूर्ति का पूजन करते रहे । तुमने मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा तो की पर उसमें मेरी उपस्थिति का भाव तुम्हें कभी नहीं आया । आज जब तुम्हें उस जड़ मूर्ति में मेरी उपस्थिति का आभास हुआ कि मैं मां को अर्पित किए गए हवन और भोग की गन्ध ग्रहण कर रहा हूँ तो मैं तुम्हारे सामने साक्षात् प्रत्यक्ष हो गया ।’

भगवान के अनेक नाम क्यों होते हैं ?

जानें, परमात्मा के परम प्रभावशाली 11 नाम जिनके जप से मनुष्य कोटि जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है ।

भगवान कहां रहते हैं

मनुष्य की आत्मा में स्थित सत्यस्वरूप परमात्मा उसे अच्छे-बुरे की पहचान करा देता है । इसी बात को कबीरदासजी ने इस प्रकार कहा है—‘तेरा साहिब है घर मांही, बाहर नैना क्यों खोले ।’

भगवान श्रीकृष्ण की माखनचोरी लीला

भगवान श्रीकृष्ण लीलावतार हैं। व्रज में उनकी लीलाएं चलती ही रहती हैं। श्रीकृष्ण स्वयं रसरूप हैं। वे अपनी रसमयी लीलाओं से सभी को अपनी ओर खींचते हैं। गोपियां प्राय: नंदभवन में ही टिकी रहतीं हैं। ‘कन्हैया कभी हमारे घर भी आयेगा। कभी हमारे यहां भी वह कुछ खायेगा। जैसे मैया से खीझता है, वैसे ही कभी हमसे झगड़ेगा-खीझेगा।’ ऐसी बड़ी-बड़ी लालसाएं उठती हैं गोपियों के मन में। श्रीकृष्ण भक्तवांछाकल्पतरू हैं। गोपियों का वात्सल्य-स्नेह ही उन्हें गोलोकधाम से यहां खींच लाया है। श्रीकृष्ण को अपने प्रति गोपियों द्वारा की गयी लालसा को सार्थक करना है और इसी का परिणाम माखनचोरी लीला है।

भगवान के ‘मन’ अवतार देवर्षि नारद

देवर्षि नारद ब्रह्मतेज से सम्पन्न व अत्यन्त सुन्दर हैं। वे शांत, मृदु और सरल स्वभाव के हैं। उनका शुक्ल वर्ण है। उनके सिर पर शिखा शोभित है। उनके शरीर से दिव्य कांति निकलती रहती है। वे देवराज इन्द्र द्वारा प्राप्त दो उज्जवल, श्वेत, महीन और बहुमूल्य दिव्य वस्त्र धारण किए रहते हैं। भगवान द्वारा प्रदत्त वीणा सदैव उनके पास रहती है। इनकी वीणा ‘भगवज्जपमहती’ के नाम से विख्यात है, उससे अनाहत नाद के रूप में ‘नारायण’ की ध्वनि निकलती रहती है। अपनी वीणा पर तान छेड़कर भगवान की लीलाओं का गान करते हुए ये सारे संसार में विचरते रहते हैं। कब किसका क्या कर्तव्य है, इसका उन्हें पूर्ण ज्ञान है। ये ब्राह्ममुहुर्त में सभी जीवों की गति देखते हैं और सभी जीवों के कर्मों के साक्षी हैं। वे आज भी अजर-अमर हैं।