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तुलसी दल की महिमा

नारदजी ने कहा—‘एक समाधान है—श्रीकृष्ण के बराबर अन्य किसी वस्तु का दान कर दिया जाए ।’ फिर क्या था, सभी रानियों ने पल भर में ही श्रीकृष्ण को तराजू के एक पलड़े पर बिठा दिया और दूसरे पलड़े पर अनन्त रत्न, स्वर्ण-आभूषण आदि बहुमूल्य पदार्थ रख दिए । किन्तु भगवान को कौन किस वस्तु से तौल सकता है ?

‘दोषों में गुण देखना’ यही है संत का स्वभाव

यह कह कर भट्टजी ने अपनी दोनों भुजाओं में महंतजी को भर कर हृदय से लगा लिया । भट्टजी की सरल और प्रेमपूर्ण वाणी सुन कर और उनके अंगस्पर्श से आज सचमुच महंतजी का हृदय पिघल गया और उनकी आंखों से अश्रुधारा बह निकली । दोष में गुण देखना—यही संत का सहज स्वभाव है ।

श्रीमद्वल्लभाचार्यजी विरचित ‘कृष्णाश्रय’ स्तोत्र

कृष्णाश्रय का अर्थ है सदा-सर्वदा पति, पुत्र, धन, गृह--सब कुछ श्रीकृष्ण ही हैं-- इस भाव से व्रजेश्वर श्रीकृष्ण की सेवा करनी चाहिए, भक्तों का यही धर्म है । इसके अतिरिक्त किसी भी देश, किसी भी वर्ण, किसी भी आश्रम, किसी भी अवस्था में और किसी भी समय अन्य कोई धर्म नहीं है ।

सबके प्यारे, सबसे न्यारे भगवान श्रीकृष्ण

भगवान श्रीकृष्ण ने संसार को उपदेश दिया कि कलियुग में मुख्यरूप से ब्रह्मचर्य और गृहस्थ दो ही आश्रम रहेंगे । इसलिए उन्होंने अर्जुन, उद्धव, अक्रूर और गोपियां आदि गृहस्थों को ही अपना दिव्य ज्ञान दिया । भगवान ने यह बतलाया कि गृहस्थाश्रम में रहकर संसार के समस्त व्यवहारों को करते हुए किस प्रकार भगवान की प्राप्ति हो सकती है ।

भक्ति हो तो भक्त सुधन्वा जैसी

सुधन्वा का कटा मस्तक ‘गोविन्द ! मुकुन्द ! हरि !’ पुकारता हुआ श्रीकृष्ण के चरणों पर जा गिरा । श्रीकृष्ण ने झट से उस सिर को दोनों हाथों में उठा लिया । उसी समय उस मुख से एक ज्योति निकली और सबके देखते श्रीकृष्ण के श्रीमुख में लीन हो गई ।

श्रीगिरिराज चालीसा

श्रीराधा ने श्रीकृष्ण से कहा–’प्रभो ! जहां वृन्दावन नहीं है, यमुना नदी नहीं हैं और गोवर्धन पर्वत भी नहीं है, वहां मेरे मन को सुख नहीं मिल सकता है ।’ भगवान श्रीकृष्ण ने अपने गोलोकधाम से चौरासी कोस भूमि, गोवर्धन पर्वत एवं यमुना नदी को भूतल पर भेजा ।

भगवान श्रीकृष्ण का सबसे लोकप्रिय मन्त्र (अर्थ सहित)

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं—‘अर्जुन ! जो मेरे नामों का गान करके मेरे निकट नाचने लगता है, या जो मेरे नामों का गान करके मेरे समीप प्रेम से रो उठते हैं, उनका मैं खरीदा हुआ गुलाम हूँ; यह जनार्दन दूसरे किसी के हाथ नहीं बिका है–यह मैं तुमसे सच्ची बात कहता हूँ ।’

कृष्णावतार में किस देवता ने लिया कौन-सा अवतार ?

यह प्रसंग अथर्ववेद के श्रीकृष्णोपनिषत् से उल्लखित है । जानते हैं, श्रीकृष्ण के परिकर के रूप में किस देवता ने क्या भूमिका निभाई ?

भगवान का अमोघ अस्त्र : सुदर्शन चक्र

भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय आयुध सुदर्शन चक्र अत्यन्त वेगवान व जलती हुई अग्नि की तरह शोभायमान और समस्त शत्रुओं का नाश करने वाला है । सुदर्शन चक्र का ध्यान करने से श्रीकृष्ण की प्राप्ति होती है और हमेशा के लिए भक्तों का भय दूर हो जाता है व जीवन संग्राम में विजय प्राप्त होती है ।

संत नागाजी का हठ और भगवान श्रीराधा-कृष्ण

स्वामिनीजी वृषभानुनन्दिनी श्रीराधा वहां पधारीं और उन्होंने नागाजी को विश्वास दिलाया कि ये ही निकुंज के श्यामसुन्दर हैं । अपने आराध्य श्रीराधाश्यामसुन्दर के दर्शन कर श्रीनागाजी ने उन्हें अपनी जटा सुलझाने की अनुमति दे दी । ठाकुरजी ने अपने चार हाथ प्रकट कर उनकी जटा सुलझा दीं ।