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मन्दिर में ध्वजा क्यों चढ़ाई जाती है और क्या है उसका...
प्राय: लोग किसी मनोकामना पूर्ति के लिए हनुमानजी या देवी के मन्दिर में ध्वजा लगाने की मन्नत रखते हैं । हनुमानजी व देवी की पूजा बिना ध्वजा-पताका के पूरी नहीं होती है । देवी का तो पौषमास की शुक्ल नवमी को ध्वजा नवमी व्रत होता है जिसमें उनको ध्वजा अर्पण की जाती है ।
पितरों की शान्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ तिथि है सर्वपितृ अमावस्या
श्राद्ध के द्वारा पितृ-ऋण उतारना आवश्यक है । पितृ ऋण उतारने में कोई ज्यादा खर्चा भी नहीं है । केवल वर्ष में एक बार पितृ पक्ष में उनकी मृत्यु तिथि पर या अमावस्या को, आसानी से सुलभ जल, तिल, जौ, कुशा और पुष्प आदि से उनका श्राद्ध और तर्पण करें और गो-ग्रास देकर अपनी सामर्थ्यानुसार ब्राह्मणों को भोजन करा देने मात्र से पितृ ऋण उतर जाता है ।
साधक का गुप्त धन है जप माला
व्यक्ति को अपनी जप माला अलग रखनी चाहिए । दूसरे की माला पर जप नहीं करना चाहिए । जप की माला पर जब एक ही मन्त्र जपा जाता है, तो उसमें उस देवता की प्राण-प्रतिष्ठा हो जाती है, माला चैतन्य हो जाती है ।
जन्माष्टमी का व्रत-पूजन कैसे करें ?
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन व्रत-पूजन से मनुष्य के जन्म-जन्मान्तर के पाप नष्ट हो जाते हैं व सहस्त्र एकादशियों के व्रत का फल मिलता है । धर्म में आस्था रखने वाला कोई भी व्यक्ति जन्माष्टमी का व्रत-पूजन कर अपनी अभीष्ट वस्तु प्राप्त कर सकता है ।
भगवान विष्णु का शयनोत्सव
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु ने आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी के दिन शंखासुर दैत्य का वध किया और युद्ध में किए गए परिश्रम से थक कर वे क्षीरसागर में अनन्त शय्या पर शयन करने चले गए ।
भगवान की आरती क्यों की जाती है ?
आरती शब्द के क्या अर्थ हैं, क्यों की जाती है भगवान की आरती, दोनों हाथों से आरती लेने का क्या भाव है, सच्ची आरती का क्या अर्थ है और क्या है आरती देखने की महिमा
हिन्दू धर्म में सिर पर शिखा या चोटी क्यों रखी जाती...
शिखा या चोटी रखना हिन्दुओं का केवल धर्म ही नहीं है, यह हमारे ऋषि-मुनियों की विलक्षण खोज का चमत्कार है । हिन्दू...
कैसे शुरु हुई होली मनाने की परम्परा और क्या है इसके...
हिन्दू धर्म में खेत से आए नवीन अन्न को यज्ञ में हवन करके प्रसाद लेने की परम्परा है । उस अन्न को ‘होला’ कहते हैं । अत: फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को उपले आदि एकत्र कर उसमें यज्ञ की तरह अग्नि स्थापित की जाती है, पूजन करके हवन के चरू के रूप में जौ, गेहूँ, चने की बालियों को आहुति के रूप में होली की ज्वाला में सेकते हैं ।
भगवान की परिक्रमा क्यों की जाती है ?
आज भी करोड़ों लोग व्रज में गोवर्धन पर्वत की तलहटी में नंगे पैर व दण्डवत् परिक्रमा करते हैं । इसके पीछे भाव यही रहता है कि कहीं-न-कहीं भगवान के शरीर से स्पर्श किया हुआ कोई रजकण अभी भी वहां की रज में दबा होगा । शायद किसी पुण्य से वह हमें स्पर्श कर जाए और हमारा जीवन धन्य हो जाए ।
नित्य तुलसी पूजा की संक्षिप्त विधि
जो दर्शन करने ने पर सारे पापों का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचे जाने पर यमराज को भी भय पहुंचाती है, आरोपित किए जाने पर भगवान श्रीकृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान के चरणों पर चढ़ाये जाने पर मोक्षरूपी फल प्रदान करती है, उन तुलसीदेवी को नमस्कार है ।