tulsi puja vidhi

विष्णुप्रिया तुलसी

एक कथा के अनुसार क्षीरसागर का मन्थन करने पर ऐरावत हाथी, कल्पवृक्ष, चन्द्रमा, लक्ष्मी, कौस्तुभमणि, दिव्य औषधियां व अमृत कलश आदि निकले । सभी देवताओं ने लक्ष्मी एवं अमृत कलश भगवान विष्णु को अर्पित कर दिए । भगवान विष्णु अमृत कलश को अपने हाथ में लेकर अति प्रसन्न हुए और उनके आनन्दाश्रु उस अमृत में गिर पड़े, जिनसे तुलसी की उत्पत्ति हुई । इसीलिए तुलसी भगवान विष्णु को बहुत प्रिय हो गयीं और तब से देवता भी तुलसी को पूजने लगे ।
कार्तिक पूर्णिमा को तुलसीजी का प्राकट्य हुआ था और सर्वप्रथम भगवान श्रीहरि ने चन्दन, सिंदूर, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य व स्त्रोत आदि से तुलसीजी का पूजन किया था ।

भगवान श्रीहरि ने तुलसी की इस प्रकार स्तुति की–

वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी ।
पुष्पसारा नन्दिनी च तुलसी कृष्णजीवनी ।।
एतन्नामाष्टकं चैव स्रोतं नामार्थसंयुतम् ।
य: पठेत् तां च सम्पूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत् ।। (देवीभागवत ९।२५।३२-३३)

अर्थ–वृन्दा, वृन्दावनी, विश्वपूजिता, विश्वपावनी, पुष्पसारा, नन्दिनी, तुलसी, कृष्णजीवनी–ये तुलसी के आठ नाम हैं। ये नाम स्त्रोत के रूप में ऊपर दिए हैं। जो तुलसी की पूजा करके इस नामाष्टक का पाठ करता है; उसे अश्वमेध-यज्ञ का फल प्राप्त हो जाता है।

नित्य तुलसी पूजन की संक्षिप्त विधि

  • तुलसी को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धा और भक्ति अत्यन्त आवश्यक है, उन्हें एक पौधा न मानकर साक्षात् विष्णुप्रिया मानना चाहिए ।
  • स्नानादि के बाद तुलसी को प्रणाम करें और फिर उन्हें शुद्ध जल से सींचें ।
  • ध्यान करने के बाद उनका पंचोपचार (गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य) पूजन करें व
  • तुलसी के आठ नामों का—वृन्दा, वृन्दावनी, विश्वपूजिता, विश्वपावनी, पुष्पसारा, नन्दिनी, तुलसी, और कृष्णजीवनी—का पाठ करे ।
  • अंत में निम्न पंक्तियों का उच्चारण करते हुए प्रणाम करें–

जो दर्शन करने पर सारे पापों का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचे जाने पर यमराज को भी भय पहुंचाती है, आरोपित किए जाने पर भगवान श्रीकृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान के चरणों पर चढ़ाये जाने पर मोक्षरूपी फल प्रदान करती है, उन तुलसीदेवी को नमस्कार है। (पद्मपुराण)

इस प्रकार तुलसीजी की भक्ति मनुष्य के पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए जलती हुई अग्निशिखा के समान है। वे जीवन-मुक्त हैं; सबकी अभीष्ट हैं; और भुक्ति-मुक्ति देने वाली हैं ।

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