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श्रीकृष्ण : ‘वेदों में मैं सामवेद हूँ’

श्रीकृष्ण चरित्र भी सामवेद के इस मन्त्र की तरह मनुष्य को हर परिस्थिति में सम रह कर जीना सिखाता है । भगवान श्रीकृष्ण की सारी लीला में एक बात दिखती है कि उनकी कहीं पर भी आसक्ति नहीं है । द्वारकालीला में सोलह हजार एक सौ आठ रानियां, उनके एक-एक के दस-दस बेटे, असंख्य पुत्र-पौत्र और यदुवंशियों का लीला में एक ही दिन में संहार करवा दिया, हंसते रहे और यह सोचकर संतोष की सांस ली कि पृथ्वी का बचा-खुचा भार भी उतर गया ।

भक्ति की शक्ति : जब भगवान ने की भक्त की सेवा

‘बड़ी मां ! बड़ी मां !’ बाहर से किसी ने आवाज दी । गोपीबाई की नींद खुल गई । उन्होंने लेटे-लेटे ही पूछा—‘कौन है ?’ बाहर से आवाज आई ‘मैं श्याम हूँ ।’ गोपीबाई ने कहा—‘किवाड़ खुले पड़े हैं, अन्दर आ जाओ ।’

कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए पढ़ें कालिय-नाग दमन लीला

भगवान ने कालिय नाग से कहा—‘मैंने तुम्हारे सिर पर अपने चरणों की मुहर लगा दी है, अब तुम वैष्णव हो गए और मेरे नित्य पार्षदों में शामिल हो गए हो । तुम्हारी और गरुड़जी की जो दुश्मनी थी वह मेरे चरण-चिह्न अंकित होने से समाप्त हो गयी है ।’

नित्य तुलसी पूजा की संक्षिप्त विधि

जो दर्शन करने ने पर सारे पापों का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचे जाने पर यमराज को भी भय पहुंचाती है, आरोपित किए जाने पर भगवान श्रीकृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान के चरणों पर चढ़ाये जाने पर मोक्षरूपी फल प्रदान करती है, उन तुलसीदेवी को नमस्कार है ।

जब भगवान श्रीकृष्ण ने सुदामा को दिखाया अपना मायाजाल

भगवान की माया क्या है ? संतों ने माया को ‘नर्तकी’ कहा है । इस नर्तकी माया के जाल से बचना है तो ‘नर्तकी’ का उल्टा कर दो । जो शब्द बनेगा वह है ‘कीर्तन’ अर्थात् जो भगवान का कीर्तन व नाम-स्मरण करता है, उसे माया रुलाती नहीं है ।

चिन्ता, क्लेश, भय दूर करने वाला क्लेशहर स्तोत्र

भगवान श्रीकृष्ण के इस नामरूपी अमृत वाले स्तोत्रका श्रद्धापूर्वक पाठ करने से मनुष्य के दोषों और क्लेशों का नाश होकर पुण्य और भक्ति की प्राप्ति होती है । निष्काम भाव से यदि इस स्तोत्र का पाठ किया जाए तो मनुष्य मोक्ष का अधिकारी होता है ।

भगवान चतुर्भुजजी और देवाजी पुजारी

सच-झूठ की परीक्षा करने के लिए उन्होंने भगवान का एक बाल खींचा । बाल के खींचे जाने से मानो ठाकुरजी को पीड़ा हुई और ठाकुरजी ने अपनी नाक सिकोड़ ली । बाल तो उखड़ गया लेकिन भगवान के सिर से खून की धार बह निकली और उसके छींटे राणाजी के अंगरखे पर भी पड़े ।

भगवान श्रीकृष्ण का मुक्ताचरित्र

श्रीकृष्ण की भगवत्ता का परीक्षण, खेतों में मोती उपजना और श्रीकृष्ण द्वारा मोतियों का ढेर वृषभानुजी के यहां भेजना

लक्ष्मीजी के स्वरूप में छिपा संदेश

लक्ष्मीजी के स्वरूप में उनका एक हाथ सदैव धन की वर्षा करता हुआ दिखाई देता है । इसका भाव है कि समृद्धि की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को सदैव सत्कार्यों और परोपकार के लिए मुक्त हस्त से दान देना चाहिए । दान से लक्ष्मीजी संतुष्ट और प्रसन्न होती हैं ।

यमयातना से मुक्ति देने वाली यमुनाजी

भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला में प्रवेश और उसका दर्शन यमुनाजी की कृपा से सहज ही हो जाता है क्योंकि भगवान श्रीराधाकृष्ण यमुनाजी के तट पर ही रास विहार करते हैं । रास लीला में प्रवेश केवल गोपियों को है किन्तु कृष्णप्रिया श्रीयमुना की कृपा से यह अलौकिक फल भी पुष्टि मार्गीय वैष्णव प्राप्त कर लेता है कि उसे भगवान का दिव्य वेणुनाद भी सुनाई देने लगता है ।