Tag: bhagwan krishna
भगवान के अनेक नाम क्यों होते हैं ?
जानें, परमात्मा के परम प्रभावशाली 11 नाम जिनके जप से मनुष्य कोटि जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है ।
कब है गीता का अध्ययन सार्थक ?
गीता भगवान श्रीकृष्ण का संसार को दिया गया प्रसाद है । गीता को समझने के लिए सिर्फ और सिर्फ आवश्यक है श्रीकृष्ण की शरणागति । इसीलिए गीता में शरणागति की बात मुख्य रूप से आई है । गीता शरणागति से ही शुरु होती है और शरणागति में ही समाप्त हो जाती है ।
श्रीराधा के कृष्णमय बत्तीस नाम
श्रीराधा श्रीकृष्ण की आत्मा हैं तो श्रीकृष्ण उनके जीवनधन हैं। भाई हनुमानप्रसादजी पोद्दार ने श्रीराधा के कृष्णमय नामों का वर्णन किया है जिनसे श्रीराधा के कृष्णमय भाव-स्वरूप का बोध होता है |
भगवान की आरती क्यों की जाती है ?
आरती शब्द के क्या अर्थ हैं, क्यों की जाती है भगवान की आरती, दोनों हाथों से आरती लेने का क्या भाव है, सच्ची आरती का क्या अर्थ है और क्या है आरती देखने की महिमा
काश, मैं भगवान का प्यारा भक्त होता !
वह स्वभाव क्या है, जिससे आकर्षित होकर भगवान भक्त को खोजते फिरें, उसका पता पूछें, उससे मिलने के लिए रोते फिरें, अपने भक्त की चाकरी करें, वे गुण जिसके कारण भक्त भगवान को अत्यन्त प्यारा लगने लगता है—यह जानने की जिज्ञासा हर प्रेमीभक्त को होती है ।
श्रीकृष्णकृपा से मल मास बन गया पुरुषोत्तम मास
जिसे सबने अपमानित व तिरस्कृत किया हो, उसे अपना बनाकर, अपना नाम व समस्त गुण दे देना; यही है पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण की शरणागत वत्सलता और यही है मल मास के अत्यन्त पवित्र ‘पुरुषोत्तम मास’ बनने का का रहस्य ।
भगवान श्रीकृष्ण की अद्भुत अतिथि-सेवा
कृष्णावतार में जरा व्याध ने प्रभास क्षेत्र में मृग के संदेह में जो बाण मारा वह भगवान श्रीकृष्ण के चरण में लगा और भगवान नित्यलीला में प्रविष्ट हो गए । व्याध ने श्रीकृष्ण के तलवे में ही क्यों बाण मारा? इसके पीछे है दुर्वासा ऋषि द्वारा श्रीकृष्ण को दिए गए वरदान की कथा |
श्रीलड्डूगोपाल की पूजा की सरल विधि
‘योगी जिन्हें ‘आनन्द’ कहते हैं, ऋषि-मुनि ‘परमात्मा’ कहते हैं, संत ‘भगवान’ कहते हैं, उपनिषद् ‘ब्रह्म’ कहते हैं, वैष्णव ‘श्रीकृष्ण’ कहते हैं और माताएं व बहनें प्यार से ‘गोपाल’, ‘लाला’ या ‘लड्डूगोपाल’ कहती हैं, वह एक ही तत्त्व है । ये सब अनेक नाम एक ही परब्रह्म के हैं ।’
भगवान श्रीकृष्ण और माया
माया महा ठगनी हम जानी ।
तिरगुन फांस लिए कर डोले, बोले मधुरे बानी ।।
केसव के कमला वे बैठी, शिव के भवन भवानी ।
पंडा के...