Ardh Kumbh Mela Haridwar Kumbh Mela

सृष्टि के आरम्भ से ही हर कोई अमृत पाना चाहता है । रोग, जरा, मृत्यु, शोक कोई नहीं चाहता है । आज घोर कलिकाल में पर्यावरण, जल, वायु, धरती और सभी खाद्य पदार्थ जहरीले हो रहे हैं । मानव प्रतिक्षण मौत के भय में जी रहा है, इसलिए अमृत की अभिलाषा हरेक के मन में है । पर यह अमृत कब और कहां मिलेगा ?—इसी की खोज में मनुष्य लगा हुआ है । मृत्यु-भय से ऊपर उठ जाना ही अमृतत्व प्राप्ति की पहचान है ।

वेद-पुराणों के अनुसार यह मोक्ष रूपी अमृत कुम्भ में ही मिलेगा; बस मनुष्य को अपने सत्कर्मों से इसे खोजना होगा । जो पुरुषार्थ से प्राप्त हो उसे ‘संसार’ कहते हैं और सब कुछ त्याग कर भगवान का भजन व सत्कर्म करते हुए देहत्याग किया जाए, उसे ‘मोक्ष’ कहते हैं और यही अमृतत्व है । इस दुर्लभ अमृतत्व और ईश्वर का अनुभव तभी संभव है जब तक मनुष्य का हृदय गरुड़ की भांति भगवान का कृपा पात्र न बन जाए वरना अमृत उसके निकट रहते हुए भी उससे दूर रहेगा । यही कुम्भ पर्व का संदेश है ।

पृथ्वी पर आस्था और विश्वास का सबसे बड़ा जनसैलाब है महाकुम्भ पर्व

कुम्भ पर्व हमारे देश का सबसे प्राचीन और सबसे बड़ा धार्मिक व सांस्कृतिक मेला है । कुम्भ का वर्णन वेदों में भी मिलता है और वैदिक काल से ही कुम्भ पर्व भारत में निरन्तर आयोजित हो रहे हैं । चीनी यात्री ह्वेनसांग (६२९ ई. में) भारत आया और उसने ६४३ ई. में तीर्थराज प्रयाग में कुम्भ पर्व का दर्शन किया था जिसमें सम्राट हर्षवर्धन ने अपना सम्पूर्ण धन यहां तक कि शरीर के वस्त्र तक दान कर दिए थे । ‘जहांगीरनामा’ (१६३० ईं.) में उल्लेख है कि सम्राट जहांगीर ने स्वयं कुम्भ की व्यवस्था करवाई थी ।

‘कुम्भ’ शब्द से आशय

अमरकोश के अनुसार ‘कुम्भ’ शब्द का अर्थ ‘घड़ा’, ‘हाथी के सिर’ व ‘राशि’ होता है । ‘कुम्भ पर्व’ का सम्बन्ध देवताओं और दानवों के द्वारा समुद्र-मंथन से उत्पन्न अमृत कुम्भ से होने के कारण इसके निम्न अर्थ हैं—

▪️जिस पर्व के द्वारा पृथ्वी को आनन्द एवं पुण्य से ढक दिया जाए ।

▪️ऐसा पर्व जो पृथ्वीवासियों के पापों को धोकर पृथ्वी को हल्का और भाररहित बना दे ।

▪️वो समय जो पृथ्वी को मंगल व ज्ञान से पूर्ण कर दे, उसके तेज को बढ़ा दे ।

कुम्भ पर्व हम क्यों मनाते हैं ?

कुम्भ पर्व सम्बन्धी पुराणों में तीन कथाएं मिलती है ।

▪️ पहली कथा के अनुसार एक बार देवताओं और दैत्यों ने समुद्र में छिपी सम्पत्तियों और अमृत पाने की इच्छा से समुद्र-मंथन किया, जिससे चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई । इनमें से एक ’अमृत कुम्भ’ भी था । अमृत कुम्भ से अमृत की प्राप्ति के लिए देव और दैत्यों में संग्राम होने लगा । स्थिति बिगड़ते देखकर देवराज इन्द्र ने अपने पुत्र जयंत को संकेत किया और वह अमृत कुम्भ लेकर भागने लगा । दैत्यों द्वारा पीछा करने पर देवताओं और दैत्यों में बारह दिनों तक भयंकर संघर्ष हुआ । देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के बराबर होते हैं ।

प्रत्येक दिन जयन्त एक स्थान पर अमृत कुम्भ को रखता था । बृहस्पति ने अमृत कुम्भ को असुरों से बचाने में, सूर्य ने टूटने से और चन्द्रमा ने गिरने से बचाया था । बारह दिनों में कुल बारह स्थानों पर कुम्भ रखा गया और अमृत कुम्भ से उन बारह स्थानों पर अमृत छलका । इनमें से आठ स्थान देवलोक में हैं जिनसे देवता ही अमृत प्राप्त कर सकते हैं । पृथ्वी पर चार स्थानों—हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक—में अमृत छलका । उन सभी स्थानों पर अमृत प्राप्ति की कामना से कुम्भ महापर्व होने लगा ।

▪️दूसरी कथा के अनुसार एक बार महर्षि दुर्वासा ने देवराज इन्द्र को एक दिव्य माला दी । इन्द्र ने अहंकारवश वह माला अपने ऐरावत हाथी के मस्तक पर डाल दी । ऐरावत ने माला को पैरों तले रौंद डाला । क्रोध में आकर दुर्वासा ने इन्द्र को शाप दे दिया । इससे सारे संसार में हाहाकार मच गया । रक्षा के लिए देवताओं और दैत्यों ने मिलकर समुद्र-मंथन किया जिससे अमृत कुम्भ निकला किन्तु यह नागलोक में था जिसे लेने के लिए पक्षीराज गरुड़ गए । अमृत कुम्भ वापिस लेकर आते समय गरुड़ ने उसे हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक—इन चार स्थानों पर रखा, तब से ये स्थान कुम्भ-स्थल के रूप में प्रसिद्ध हो गए ।

▪️तीसरी कथा के अनुसार एक बार प्रजापति कश्यप की दो पत्नियों—विनता (गरुड़ की माता) और कद्रू (नागमाता) के बीच इस बात पर विवाद हो गया कि सूर्य के रथ के घोड़े की पूंछ काली है या सफेद । शर्त यह हुई कि जो हार जाएगी वह दासी बनेगी । वास्तव में सूर्य के घोड़े की पूंछ तो सफेद ही थी किन्तु कद्रू का पुत्र कालिया नाग जो अत्यन्त क्रूर स्वभाव का था, वह जाकर सूर्य के रथ के घोड़े की पूंछ से लिपट गया । दूर से देखने पर घोड़े की पूंछ काली मान ली गयी । गरुड़ की माता विनता कद्रू की दासी बनकर सेवा करने लगी । इस पर गरुड़ क्रोध में आकर कद्रू के पुत्र नागों को खाने लगे । इससे भयभीत होकर कद्रू ने प्रस्ताव रखा कि यदि अमृत का छिड़काव कर सभी सर्पों को अमर कर दें तो विनता को दासीत्व से मुक्त कर दिया जाएगा ।

गरुड़जी अमृत की खोज के लिए स्वर्ग गए । गरुड़ जब अमृत कुम्भ को ले कर आ रहे थे तो इन्द्र ने उन पर आक्रमण कर दिया । इस संघर्ष में अमृत की बूंदें छलक कर बारह स्थानों पर गिरी, जिनमें आठ स्थान स्वर्ग के और चार पृथ्वी पर थे, वहीं पर कुम्भ पर्व होने लगा ।

गरुड़ की निर्लोभता देख भगवान विष्णु ने बनाया उन्हें अपना वाहन

जब गरुड़ अमृत कुम्भ लेकर स्वर्ग से पृथ्वी की ओर बढ़े तो उनकी मुलाकात भगवान विष्णु से हुई । भगवान विष्णु को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि इतना बड़ा अमृत कुम्भ गरुड़ के पास होने पर भी उसने अमृत चखा तक नहीं । वे गरुड़ की सहजता और निर्लोभता पर प्रसन्न हो गए और उन्हें अमर रहने का वरदान प्रदान कर अपना वाहन बना लिया ।

इन्द्र ने भी गरुड़ से मित्रता कर ली । गरुड़ ने इन्द्र से कहा—‘मैं दुष्ट सर्पों को अमृत पिलाकर अमर बनाना नहीं चाहता परन्तु मुझे अपनी मां को दासीत्व से मुक्त कराना है । अत: जब मैं अमृत कुम्भ को वहां रखूं आप छिपकर उसे उठा लें । इससे मेरा और आपका दोनों का ही काम बन जाएगा ।’  गरुड़ ने अमृत कुम्भ सर्पों को सौंपते हुए कुशा पर रखा । अमृतपान से पूर्व सर्प जैसे ही स्नान आदि के लिए दूर गए, इन्द्र ने अमृत कुम्भ का हरण कर लिया । कुशा चाटने से सर्पों की द्वि-जिह्वा हो गयी । स्वर्ग से अमृत कुम्भ लाते समय गरुड़ ने जहां-जहां विश्राम किया और कलश रखा, उन स्थानों पर कुम्भ का पर्व मनाया जाने लगा ।

मानव जीवन, कुम्भ पर्व और अमृत-तत्त्व की प्राप्ति

कुम्भ पर्व मनुष्य के जीवन में कई प्रकार से अमृत-तत्व प्रदान करता है—

▪️कुम्भ में शामिल होने आए उच्चकोटि के साधु-महात्माओं, हिमालय की कन्दराओं में छिपकर रहनेवाले अदृश्य तपस्वियों और नागा बाबाओं का साक्षात् दर्शन करने व प्रवचन सुनने से मनुष्य की बुद्धि सद्गुणरूपी अमृत से भर जाती है । इससे मनुष्य के पापों का नाश और भक्ति व ज्ञान की वृद्धि होती है ।

▪️मनुष्य में धर्म के प्रति आस्था और श्रद्धा से मन में उत्साह रूपी अमृत का संचार होता है ।

▪️कुम्भ पर्व के दौरान स्नान, पूजा-पाठ, व्रत आदि के नियम से शरीर आरोग्य रूपी अमृत को प्राप्त करता है ।

▪️कुम्भ पर्व में तीर्थ में दिए गए दान से धन की शुद्धि होती है और वह शुद्ध धन मनुष्य के ऐहिक और पारलौकिक दोनों जीवन में खुशियों की अमृत वर्षा करता है ।

▪️कुम्भ ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’ का पर्व है । मनुस्मृति के अनुसार ‘कुम्भ पर्व मनुष्य के द्वारा इस लोक में किए गए सत्कर्मों के कारण अनेक प्रकार के सुखों को देने वाला और दूसरे लोक में पितरों को उत्तम सुखों को देने वाला है अर्थात् मनुष्य और पितर दोनों को ही सुख रूपी अमृत प्रदान करता है ।

▪️कुम्भ जातिवाद और पंथवाद से अलग मानवता और एकता का परिचायक है । कुम्भ से विश्व में भाईचारा के साथ अखण्ड शांति का संदेश जाता है ।

▪️कुम्भ पर्व निष्काम सेवा की प्रेरणा देता है ।

कुम्भ पर्व का संदेश

कुम्भ अत्यन्त सुस्वादु व सरस अमृत का वह कलश है जो खारे समुद्र से प्रकट हुआ । देवता और दानवों ने इस कलश को समुद्र-मंथन के अथक परिश्रम से प्राप्त किया था;  उसी तरह मानव जीवन भी काम, क्रोध, लोभ, मोह, दु:ख, वेदना आदि अत्यन्त दु:खदायी (खारे) तत्त्वों से भरा हुआ है । परन्तु इस मानव शरीर के अन्दर भी एक अमृत कलश (परमात्मा)  है जिसे हम सत्कर्म, त्याग, तपस्या, पुरुषार्थ और आत्म-साक्षात्कार से प्राप्त कर सकते हैं । मनुष्य की चेतना को सांसारिक वासनाओं से ऊपर उठाना ही अमृत की प्राप्ति है ।

कुम्भ पर्व यही संदेश देता है कि अमर होना चाहते हो तो सत्कार्य और परमार्थ में स्वयं को समर्पित कर दो । मनुष्य तीर्थ में आकर पवित्र नदियों के जल में स्नान करे, संतों के उपदेश से ज्ञान रूपी अमृत को प्राप्त करे, और सत्य, दान, तप और यज्ञ के द्वारा शुभ कर्म करे जिससे मृत्यु के बाद उसकी सद्गति हो, अधम गति या दुर्गति बिल्कुल न हो ।

महाकुम्भ और कुम्भ

ऐसा माना जाता है कि भगवान शंकराचार्य ने धार्मिक संस्कृति को सुदृढ़ करने के लिए कुम्भ पर्व का प्रचार व प्रसार किया । प्रत्येक 12 वर्ष पर आने वाले कुम्भ पर्व को सरकार ने ‘महाकुम्भ’ और इसके बीच 6 वर्ष पर आने वाले पर्व को ‘कुम्भ’ या ‘अर्ध कुम्भ’ की संज्ञा दी है ।

बृहस्पति, सूर्य और चन्द्रमा के योग से कुम्भ पर्व

कुम्भ पर्व का आयोजन बृहस्पति, सूर्य और चन्द्रमा के ग्रह राशि योग के अनुसार होता है । जिस विशेष ग्रह योगों में चारों तीर्थों में अमृत बूंदें  गिरी थी उसी विशिष्ट योग के अवसर पर कुम्भ पर्व मनाने की परम्परा रही है—

प्रयाग के लिए

बृहस्पति के वृष राशि में तथा सूर्य के मकर राशि में (माघ मास में) संचरित होने पर त्रिवेणी संगम प्रयागराज में कुम्भ लगता है ।

हरिद्वार के लिए

बृहस्पति के कुम्भ राशि में तथा सूर्य के मेष राशि में संचरित होने पर गंगा तट पर हरिद्वार में कुम्भ लगता है । यहां पर यह स्थिति मेष संक्रान्ति के समय अर्थात् चैत्र या वैशाख मास में होती है ।

नासिक के लिए

बृहस्पति, सूर्य और चन्द्रमा तीनों ग्रह जब सिंह राशि में संचरित होते हैं तब गोदावरी तट पर नासिक में कुम्भ लगता है । यहां यह स्थिति भाद्रपद मास की अमावस्या को आती है ।

उज्जैन के लिए

बृहस्पति के सिंह राशि में व सूर्य के मेष राशि में संचरित होने पर क्षिप्रा तट पर उज्जैन में कुम्भ लगता है । यहां यह स्थिति वैशाख मास की पूर्णिमा को होती है ।

कुम्भ स्नान का माहात्म्य

हिन्दुओं के हर पर्व पर नदी स्नान की परम्परा रही है । कुम्भ में तो स्नान का ही मुख्य माहात्म्य है । पौराणिक मान्यता के अनुसार कुम्भ पर्व पर स्नान हेतु ब्रह्मा, विष्णु, महेश सहित तैंतीस करोड़ देवता पधारते हैं । उस समय गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी व क्षिप्रा आदि नदियों के पवित्र जल में अमृत की धारा बहती है जिसमें स्नान करने से मनुष्य का जीवन सर्वथा पापमुक्त हो जाता है ।

अश्वमेध सहस्त्राणि वाजपेय शतानि च ।
लक्षं प्रदक्षिणा भूमे: कुम्भ स्नानेन तत्फलम् ।।
सहस्त्रं कार्तिके स्नानं माघे स्नानं शतानि च।
वैशाखे नर्मदा कोट्या कुम्भं स्नाने तत्फलम् ।।

पुराणों के अनुसार हजार अश्वमेध और सौ वाजपेय यज्ञ करने, लाख बार भूमि की प्रदक्षिणा करने, कार्तिक में हजार बार गंगा-स्नान करने, माघ में सौ बार और वैशाख में करोड़ बार नर्मदा-स्नान करने पर जो फल होता है, वह महाकुम्भ पर एक बार स्नान करने पर ही सुलभ हो जाता है ।

कुम्भ पर्व की शान : अखाड़ों के शाही स्नान की शोभायात्रा

महाकुम्भ पर्व पर तीर्थ के पवित्र जल में स्नान का सबसे पहला अधिकार साधु-सन्तों के अखाड़ों को है । कुम्भ पर्व में शाही स्नान का दृश्य ऋषि परम्परा का साक्षात् दर्शन कराता है । मुख्य स्नान की तिथियों में जब शाही स्नान हेतु गाजे-बाजे के साथ विभिन्न सम्प्रदाओं के आचार्य (अखाड़ों के चिह्न के साथ), महामण्डलेश्वर, जगद्गुरु आदि रथों पर छत्र-चंवर से सुशोभित होकर अपनी पारम्परिक साजसज्जा के साथ नगाड़ों और बैण्डों के साथ शोभायात्रा के रूप में निकलते हैं तो उनकी चरणरज लेकर भक्तजन पुण्य के भागी बनते हैं । साथ ही हजारों की संख्या में नागा साधुओं को भजन-कीर्तन करते हुए जुलूस के रूप में स्नान को जाते देखना बड़ा ही आकर्षक होता है ।

प्रयागराज में कुम्भ स्नान के प्रमुख पर्व और मुहूर्त

मकर सक्रान्ति  15 जनवरी 2019
पूस पूर्णिमा 21 जनवरी 2019
मौनी अमावस्या 04 फरवरी 2019
बसंत पंचमी 10 फरवरी 2019
माघी पूर्णिमा 19 फरवरी 2019
महाशिवरात्रि 04 मार्च 2019

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