सुख-दु:ख और भगवत्कृपा

दु:ख के समय का कोई साथी नहीं होता बल्कि लोग तरह-तरह की बातें बनाकर दु:ख को और बढ़ा देते हैं । ऐसी स्थिति में यह याद रखें कि निन्दा करने वाले तो बिना पैसे के धोबी हैं, हमारे अन्दर जरा भी मैल नहीं रहने देना चाहते । ढूंढ़कर हमारे जीवन के एक-एक दाग को साफ करना चाहते हैं । वे तो हमारे बड़े उपकारी हैं जो हमारे पाप का हिस्सा लेने को तैयार हैं ।

भगवान का आशीर्वाद है चरणामृत

शालग्राम शिला या भगवान की प्रतिमा के चरणों से स्पर्श किए व उनके स्नान के जल को ‘चरणामृत’ या ‘चरणोदक’ कहते हैं; इसलिए चरणामृत को भगवान का आशीर्वाद माना जाता है । हिन्दू धर्म में चरणामृत को अमृत के समान और अत्यंत पवित्र माना गया है ।

विभिन्न कार्यों को करते समय भगवान के विभिन्न नामों का स्मरण

विभिन्न रुचि, प्रकृति और संस्कारों के मनुष्यों के लिए भगवान ने स्वयं को अनेक नामों से व्यक्त किया है । प्रत्येक नाम का अर्थ वह परमात्मा ही है। भगवान विविध नामों में और विचित्र रूपों में अवतीर्ण होकर विचित्र भाव और रस के खेल खेलकर माया से मोहित सांसारिक जीवों को अपनी ओर आकर्षित करते है और उनको सब प्रकार के दुखों से मुक्त करके अपना परमानन्द देने का प्रयास करते हैं । इससे अधिक उनकी करुणा का परिचय क्या हो सकता है ?

नारायण कवच

नारायण कवच को शरीर पर धारण करने की बड़ी भारी महिमा है । इसको धारण करने वाला यदि किसी को अपने नेत्रों से देख लेता या छू भी दे तो वह निर्भय हो जाता है । उसे किसी का भय नहीं होता है; क्योंकि जो भगवान के नाम को अपनी जिह्वा पर रखता है, उसको ऐसा लगता है कि भगवान मेरे साथ हैं । मेरा कोई बाल-बांका नहीं कर सकता । वह व्यक्ति सभी के आदर का पात्र बन जाता है ।

श्रीजीवगोस्वामी विरचित मधुर रस से पूर्ण ‘युगलाष्टक’

श्रीजीवगोस्वामी का श्रीप्रिया-प्रियतम युगलसरकार के चरणों में परम अनुराग था । रामरस अर्थात् श्रृंगाररस के आप उपासक थे । परम वैरागी श्रीजीव गोस्वामी की भक्ति-भावना का कोई पार नहीं है । इनकी सेवा में चारों ओर से अपार धन आता किन्तु वे उस धन को यमुनाजी में फेंक देते थे । श्रीजीव गोस्वामी मूर्धन्य विद्वान समझे जाते थे ।

पूजा-पाठ से मनचाहा परिणाम क्यों नहीं मिलता ?

ईश्वर की प्राप्ति के लिए साधक में नदी की तरह का दीवानापन होना चाहिए । जब तक यह दीवानापन नहीं होगा कोई मन्त्र क्या करेगा ? और जब साधक में ऐसी मस्ती या दीवानापन होगा तो क्या मन्त्र और क्या किसी से पथ पूछना ? जिधर पांव ले जाएंगे वहीं प्रियतम प्यारा खड़ा मिलेगा ।

कलियुग केवल नाम अधारा

सभी मुनिगण वेदव्यासजी के आश्रम में पहुंचे और उनसे बोले—‘हम यह जानना चाहते हैं कि आपने स्नान करते समय ‘कलि तुम धन्य हो’, ‘कलि तुम साधु हो’—ऐसा कहकर कलियुग का गुणगान क्यों किया ?’

‘राम’ नाम लिखे तुलसीपत्र की महिमा

सबका पालनहार एक ‘राम’ ही है । संसारी प्राणी तो दान ही दे सकते हैं; परन्तु मनुष्य की जन्म-जन्म की भूख-प्यास नहीं मिटा सकते हैं । वह तो उस दाता के देने से ही मिटेगी । इसलिए मांगना है तो मनुष्य को भगवान से ही मांगना चाहिए, अन्य किसी से मांगने पर संसार के अभाव मिटने वाले नहीं हैं । लेकिन मनुष्य सोचता है कि मैं कमाता हूँ, मैं ही सारे परिवार का पेट भरता हूँ । यह सोचना गलत है । इसलिए देने वाले के नेत्र सदैव नीचे और लेने वाले के ऊपर होते हैं ।

धार्मिक अनुष्ठान में की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं का अर्थ

किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को सम्पन्न करते समय विभिन्न क्रियाएं की जाती हैं, जैसे—स्वस्तिवाचन, पवित्री धारण, आचमन, शिखा-बंधन, प्राणायाम, न्यास, पृथ्वी-पूजन, संकल्प, यज्ञोपवीत बदलना, चंदन धारण, रक्षा सूत्र आदि । जानतें हैं इन सबका क्या है आध्यात्मिक अर्थ और महत्व ।

पूजा में धूप-दीप प्रज्ज्वलित करने का क्या महत्व हैं ?

किसी भी देवता के पूजन में धूप-दीप प्रज्ज्वलित करने का बहुत महत्व है । पूजा के सरलतम रूप जिसे पंचोपचार पूजन कहते हैं; उसमें भगवान का पांच ही चीजों से पूजन करने का विधान है और ये पांच उपचार हैं—१. गंध, २. पुष्प, ३. नैवेद्य, ४. धूप और ५. दीप ।