सुबह उठ कर भूमि-वंदन क्यों करना चाहिए ?

वाराहकल्प में जब हिरण्याक्ष दैत्य पृथ्वी को चुराकर रसातल में ले गया, तब भगवान श्रीहरि हिरण्याक्ष को मार कर रसातल से पृथ्वी को ले आए और उसे जल पर इस प्रकार रख दिया, मानो तालाब में कमल का पत्ता हो । इसके बाद ब्रह्मा जी ने उसी पृथ्वी पर सृष्टि रचना की । उस समय वाराहरूपधारी भगवान श्रीहरि ने सुंदर देवी के रूप में उपस्थित भूदेवी का वेदमंत्रों से पूजन किया और उन्हें ‘जगत्पूज्य’ होने का वरदान दिया ।

देवी सरस्वती की पूजाविधि और मन्त्र

देवी सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी हैं और शब्द-ब्रह्म के रूप में इनकी उपासना की जाती है । विद्या को ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ धन माना गया है । देवी सरस्वती की पूजा-उपासना के लिए माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी (बसंत पंचमी) तिथि निर्धारित की गयी है ।

मंगल देवता : कथा, मन्त्र, स्तोत्र, व्रत-विधि, दान और उपाय

धरतीपुत्र मंगल आप ऋण हरने वाले और रोगनाशक हैं । रक्त वर्ण, रक्तमालाधारी, ग्रहों के नायक आपकी आराधना करने वाला अपार धन और पारिवारिक सुख पाता है ।

मल मास को ‘खर मास’ क्यों कहते हैं ?

पौराणिक ग्रंथों में खर मास की कथा भगवान सूर्य से जुड़ी हुई है; इसलिए इन दिनों में सूर्य उपासना का विशेष महत्व बतलाया गया है । मार्कण्डेय पुराण में खर मास के संदर्भ में एक कथा का उल्लेख है ।

भद्रा कौन है और इसमें कौन-से कार्य करने का निषेध है...

एक पौराणिक कथा के अनुसार दैत्यों से पराजित देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शंकर के शरीर से गर्दभ (गधे) के समान मुख वाली, कृशोदरी (पतले पेट वाली), पूंछ वाली, मृगेन्द्र (हिरन) के समान गर्दन वाली, सप्त भुजी, शव का वाहन करने वाली और दैत्यों का विनाश करने वाली भद्रा उत्पन्न हुई ।

एकादशी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा : विधि

एकादशी तिथि को पूजन और व्रत करने वाले मनुष्य को काम, क्रोध, अहंकार, लोभ और चुगली जैसी बुराइयों का त्याग कर इन्द्रिय-संयम का पालन करना चाहिए; तभी उसका व्रत और पूजा पूर्ण होगी; अन्यथा वह निष्फल हो जाएगी । व्रत-पूजन पूरी श्रद्धा और भाव से करना चाहिए ।

दिव्य वृक्ष पीपल की पूजा क्यों और कैसे की जाती है...

भगवान श्रीकृष्ण का विभूतिस्वरूप होने के कारण पीपल दिव्य वृक्ष है और उन्हीं की तरह संसार को कर्मयोग की शिक्षा देता है । पीपल के पत्ते तब भी हिलते रहते हैं, जब अन्य पेड़ों के पत्ते नहीं हिलते हैं । इसी कारण पीपल को ‘चल-पत्र’ भी कहते हैं अर्थात् जिसके पत्ते लगातार वायु से तरंगित होते रहते हैं ।

देवता और पितर दोनों को क्यों प्रिय हैं तिल ?

माघी पूर्णिमा के दिन कांस्य पात्र में तिल भरकर इस भावना से दान करें कि ‘मां इन तिलों की संख्या से अधिक दु:ख तुमने मेरे लिए सहन किए हैं । अत: इस तिलपात्र के दान से मैं तुम्हारे मातृ-ऋण से उऋण हो जाऊं ।’ इस प्रकार इस दिन माता के निमित्त जो भी कुछ दान दिया जाता है, वह अक्षय हो जाता है ।

अक्षय फल देने वाला लक्षवर्ति दान-व्रत

पुण्य के काम में धन व्यय करने से वह घटता नहीं बल्कि बढ़ता है । जैसे छोटे से बीज में महान वट वृक्ष छिपा रहता है, उसी प्रकार शुभ समय में किया गया छोटा-सा भी पुण्य महान फल देता है । लक्षवर्ति दान पूजा-विधि ।

प्रकृति को समर्पित सबसे अनूठा त्यौहार : छठ महापर्व

चढ़ते (उदय होते) व उतरते (अस्त होते) हुए सूर्य—इन दोनों को प्रणाम करने का अर्थ है कि हम समभाव से किसी के उत्कर्ष और अपकर्ष में साथ बने रहते हैं । सूर्य को प्रणाम का अर्थ है अस्त होते यानी बुजुर्गों को सम्मान देने का भाव । सूर्यदेव हमे उष्मा, उर्जा व जीवन में उल्लास प्रदान करते हैं; इसलिए सूर्य को दिए जाने वाले अर्घ्य से हम अपने अंदर की जीवन-अग्नि को जीवित रखते हैं ।