भगवान के अनेक नाम क्यों होते हैं ?

जानें, परमात्मा के परम प्रभावशाली 11 नाम जिनके जप से मनुष्य कोटि जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है ।

भगवान की आरती क्यों की जाती है ?

आरती शब्द के क्या अर्थ हैं, क्यों की जाती है भगवान की आरती, दोनों हाथों से आरती लेने का क्या भाव है, सच्ची आरती का क्या अर्थ है और क्या है आरती देखने की महिमा

नामदेवजी की अद्भुत परीक्षा

नामदेवजी विसोबा के पांव इधर-उधर करने लगे किन्तु वे जहां भी विसोबा का पांव रखते थे वहीं पर शिवलिंग प्रकट हो जाता था और इस प्रकार सारा मन्दिर शिवलिंग से भर गया । नामदेव यह देखकर आश्चर्य में पड़ गये और गुरु के चरणों में गिर पड़े ।

हिन्दू धर्म में माथे पर तिलक क्यों लगाया जाता है ?

जब हमारे आराध्य, चाहें वह भगवान विष्णु हों या श्रीकृष्ण, श्रीराम हों या सदाशिव, सभी तिलकधारी हैं, तो आराधक कैसे बगैर तिलक के रह सकता है ? वैष्णव खड़े तिलक (उर्ध्वपुण्ड्र) की दो समानान्तर रेखाओं को श्रीमन्नारायण के दोनों चरणकमल मानते हैं । उनका विश्वास है कि मस्तक पर तिलक रूपी चरणकमल धारण करने से मृत्यु के बाद उन्हें उर्ध्वगति (विष्णुलोक) की प्राप्ति होगी ।

बच्चे का मुण्डन संस्कार क्यों कराया जाता है ?

यह समय बच्चे के दांत निकलने का होता है इसके कारण शरीर में कई तरह की परेशानियां होती हैं । बच्चे का शरीर निर्बल होकर उसके बाल झड़ने लगते हैं । ऐसे समय में बच्चे का मुण्डन कराना बहुत लाभकारी होता है ।

लक्ष्मी प्राप्ति के लिए जलायें संध्या काल में दीपक

संध्या काल प्रकाश रूप परमात्मा से जुड़ने का समय है इसलिए इस समय न तो खाना खाना चाहिए क्योंकि इससे अस्वस्थता आती है, न पढ़ना चाहिए क्योंकि पढ़ा हुआ याद नहीं रहता और न ही काम भावना रखनी चाहिए क्योंकि ऐसे समय के बच्चे आसुरी गुणों के होते हैं ।

राहु पीड़ा से मुक्ति के सरल उपाय

राज्य पक्ष से आई विपत्तियों से मुक्ति दिलाने में राहु की आराधना बहुत उपयोगी है । जब कुण्डली में राहु अशुभ स्थान में हो तो व्यक्ति चिन्ताग्रस्त होकर अनिद्रा रोगी व चिड़चिड़ा हो जाता है । उसे एकाकी जीवन अच्छा लगता है ।

हिन्दू धर्म में सिर पर शिखा या चोटी क्यों रखी जाती...

शिखा या चोटी रखना हिन्दुओं का केवल धर्म ही नहीं है, यह हमारे ऋषि-मुनियों की विलक्षण खोज का चमत्कार है । हिन्दू...

कैसे शुरु हुई होली मनाने की परम्परा और क्या है इसके...

हिन्दू धर्म में खेत से आए नवीन अन्न को यज्ञ में हवन करके प्रसाद लेने की परम्परा है । उस अन्न को ‘होला’ कहते हैं । अत: फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को उपले आदि एकत्र कर उसमें यज्ञ की तरह अग्नि स्थापित की जाती है, पूजन करके हवन के चरू के रूप में जौ, गेहूँ, चने की बालियों को आहुति के रूप में होली की ज्वाला में सेकते हैं ।

भगवान की परिक्रमा क्यों की जाती है ?

आज भी करोड़ों लोग व्रज में गोवर्धन पर्वत की तलहटी में नंगे पैर व दण्डवत् परिक्रमा करते हैं । इसके पीछे भाव यही रहता है कि कहीं-न-कहीं भगवान के शरीर से स्पर्श किया हुआ कोई रजकण अभी भी वहां की रज में दबा होगा । शायद किसी पुण्य से वह हमें स्पर्श कर जाए और हमारा जीवन धन्य हो जाए ।