rahu peeda, saral upaya

राहु छाया ग्रह माना जाता है । नवग्रह मण्डल में राहु का स्थान नैऋत्य कोण (पश्चिम-दक्षिण) में ‘काले मगर’  के रूप में है ।

सबसे सरल उपाय

राज्य पक्ष से आई विपत्तियों से मुक्ति दिलाने में राहु की उपासना बहुत उपयोगी है ।

विशेष बात—राहु पीड़ा से मुक्ति के लिए मनुष्य को कस्तूरी, लोबान, चन्दन का इत्र, दूर्वा या बिल्व पत्र—इनमें से किसी को भी जल में मिला कर स्नान करना चाहिए । इतना छोटा उपाय करने से ही राहु की पीड़ा काफी कम हो जाती है ।

राहु ग्रह : पूजन, मन्त्र, स्तोत्र, दान व व्रत की सम्पूर्ण जानकारी

राहु ग्रह के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए बुधवार या शनिवार को राहु की उपासना (पूजन, जप, दान, व्रत) इस प्रकार करनी चाहिए—

  • पूजन के लिए उत्तर या पूर्व की ओर सुखासन या पद्मासन में बैठें । राहु उपासना के लिए राहु ग्रह का चित्र या राहु यन्त्र या नवग्रह मण्डल का चित्र चौकी पर स्थापित कर लें ।
  • पूजन के लिए आवश्यक सामग्री पास में ही रखनी चाहिए जिससे पूजा के बीच में बार-बार उठना न पड़े ।
  • राहु पूजन में नीले या काले पुष्प, दूर्वा और अक्षत की आवश्यकता होती है । राहु के पूजन में चावलों को नीला या काला रंग कर प्रयोग करें ।
  • थोड़े से चावल पर एक दीपक अपनी बांयी ओर रख कर जला लें और प्रार्थना करें कि हे दीप ! आप मेरे पूजन के साक्षी हो ।
  • इसके बाद हाथ में थोड़े से चावल, पुष्प, दूर्वा और जल लेकर मन में यह संकल्प करें कि मैं अमुक तिथि, वार, पक्ष, मास, संवत् को राहु का पूजन कर रहा हूँ, हे महान मस्तक वाले बलशाली राहु ! मेरी पीड़ा हरो ।
  • हाथ में नीले काले अक्षत व पुष्प लेकर राहु का आवाहन करें—‘आधी काया (केवल शीश) से चन्द्रमा को दबाने वाले राहु में आपका आवाहन करता हूँ, आप पधारें ।’  राहु यन्त्र या नवग्रह मण्डल में राहु के स्थान पर पुष्प और अक्षत छोड़ दें ।
  • राहु का ध्यान करें—‘राहु का मुख भयंकर है । राहु का रंग और वस्त्र दोनों कृष्ण हैं । उनके चार हाथों में तलवार, ढाल, त्रिशूल और वरमुद्रा हैं । वे नीले रंग के सिंहासन पर आसीन हैं ।
  • अब राहु का पूजन करें—राहु यन्त्र या चित्र पर स्नान के लिए जल का छींटा लगाएं, चंदन, रोली, अक्षत, पुष्प चढ़ाएं । धूप-दीप दिखायें । प्रसाद लगायें व सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा (११, २१ रूपये) चढ़ावें ।
  • अंत में इस मन्त्र का उच्चारण कर राहु को प्रणाम करना चाहिए ।

अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम् ।
सिंहिकागर्भसम्भूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ।।

अर्थात्–जो आधे शरीर वाले हैं, महापराक्रमी हैं, सूर्य और चन्द्र को ग्रसने वाले हैं तथा सिंहिका के गर्भ से उत्पन्न हैं, उन राहु को मैं प्रणाम करता हूँ ।

राहु के जप के लिए मन्त्र

राहु के दो मन्त्र दिए जा रहे हैं । बुधवार या शनिवार को साधक अपनी श्रद्धानुसार जिस भी मन्त्र को चाहे, उसकी 18, 11 या 5 (जितनी हो सकें) माला का जाप करें । राहु का जप गोमेद, सफेद चंदन या कच्चे कोयले की माला से करना चाहिए । जप के समय एक लोटे में जल और दूर्वा डालें और जप के बाद वह पीपल की जड़ में चढ़ा दें ।

  1. पौराणिक मन्त्र : ॐ रां राहवे नम: ।
  2. तान्त्रिक मन्त्र : ॐ भ्राँ भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम: ।

राहु मन्त्र कम-से-कम 18000 जपें लेकिन विशेष लाभ के लिए इसे चौगुना (72000) जपना चाहिए ।

शीघ्र लाभ के लिए करें राहु गायत्री का जप

राहु की उपासना में शीघ्र ही फल प्राप्ति के लिए राहु गायत्री का जप करने का विधान है । साधक अपनी श्रद्धा व सामर्थ्य के अनुसार इसका जितना चाहे जप कर सकता है ।

ॐ शिरोरूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो राहु प्रचोदयात् ।

राहु स्तोत्र का पाठ भी राहु पीड़ा दूर करने में शुभ प्रभाव दिखाता है—

राहुर्दानवमन्त्री च सिंहिकाचित्तनन्दन: ।
अर्धकाय: सदा क्रोधी चन्द्ररादित्यविमर्दन: ।।
रौद्रो रुद्रप्रियो दैत्य: स्वर्भानुर्भानुभीतिद: ।
ग्रहराज: सुधापायी राकातिथ्यभिलाषक: ।।
कालदृष्टि: कालरुप: श्रीकण्ठहृदयाश्रय: ।
विधुं तुद: सैंहिकेयो घोररुपो महाबल: ।।
ग्रहपीड़ाकरो दंष्ट्री रक्तनेत्रो महोदर: ।
पंचविंशति नामानि स्मृत्वा राहुं सदा नर: ।।
य: पठेन्महती पीड़ा तस्य नश्यति केवलम् ।
आरोग्यं पुत्रमतुलां श्रियं धान्यं पशूंस्तथा ।।
ददाति राहुस्तस्मै य: पठते स्तोत्रमुत्तमम ।
सततं पठते यस्तु जीवेद्वर्षशतं नर: ।।

राहु के दान की सामग्री

राहु पीड़ा की शान्ति के लिए बुधवार की संध्या या रात्रि के समय इन चीजों का दान किसी अपाहिज व्यक्ति या शनि का दान लेने वाले को करना चाहिए । यदि ये न मिलें तो किसी शिव मन्दिर में रात्रि में दान सामग्री रख आएं—

गोमेद, काले तिल, काले उड़द, तेल, सरसों का तेल, चाकू, काला कम्बल, नीला वस्त्र, नीले पुष्प, सूप, अभ्रक, नमक, सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा ।

शत्रु-भय के नाश व मुकदमे में जीत के लिए राहु का व्रत

राहु का व्रत शनिवार को अथवा राहु जिस ग्रह के घर में हों, उस ग्रह के वार में करना चाहिए । व्रत के दिन काले वस्त्र धारण करें । भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, रेवड़ी और काले तिल से बने पदार्थ खाएं । राहु का व्रत १८ शनिवारों तक करना चाहिए । जब व्रत का अन्तिम शनिवार हो तो ग्रह-मन्त्र से हवन करके ब्राह्मण को भोजन कराएं व दान दें।

इस प्रकार राहु ग्रह के पूजन, जप व दान से साधक को मानसिक बल के साथ शान्ति मिलती है ।

कौन है राहु ?

राहु दैत्य विप्रचित्त और सिंहिका का पुत्र है । वह अपनी माता के नाम पर सैंहिकेय नाम से जाना जाता है । समुद्र-मंथन से प्राप्त अमृत जब देवता पी रहे थे तो राहु देवता का वेश बनाकर उनकी पंक्ति में जा बैठा और कुछ अमृत पी लिया । सूर्य और चन्द्रमा ने उसका भेद भगवान विष्णु को बता दिया । भगवान विष्णु ने तत्काल राहु का मस्तक अपने चक्र से काट दिया । राहु के अमृत पीने से वह मरा नहीं बल्कि अमर हो गया और उसे तारा मण्डल में छाया ग्रह का स्थान मिला । उसका मस्तकराहु’ और धड़ ‘केतु’ कहलाया । वह सूर्य और चन्द्रमा के प्रति अपना द्वेष नहीं भूला । इसी कारण समय-समय पर वह उन्हें ग्रस लिया करता है जिससे चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण होते हैं । इसलिए ग्रहण के मोक्ष होने पर जो अन्न दान आदि किया जाता है, उसमें राहु के अशुभ प्रभाव दूर हो जाते हैं ।

राहु का स्वभाव

राहु कन्या राशि का स्वामी है । कार्य को शुरु करके बीच में छोड़ देना, किसी वस्तु या पदार्थ को गति देकर फिर गतिहीन कर देना—ये सब राहु के अशुभ प्रभाव के कारण ही होता है । उलझन, परेशानी, घबराहट, असमंजस, समस्या, मानसिक उत्तेजना—ये सब राहु के स्वभाव की विशेषताएं हैं ।

यदि किसी की कुण्डली में राहु उच्च का हो तो वह व्यक्ति की तर्क शक्ति को बलवान बनाता है । ऐसा व्यक्ति राजनीतिज्ञ, जासूस, पहलवान, दार्शनिक, उपदेशक, जेलर, जल्लाद या महंत बनता है । जब कुण्डली में राहु अशुभ स्थान में हो तो व्यक्ति चिन्ताग्रस्त होकर अनिद्रा रोगी व चिड़चिड़ा हो जाता है । उसे एकाकी जीवन अच्छा लगता है ।


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